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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कर तंत्र से उत्पन्न global वार्मिंग के चलते नए नए वायरस आते रहेंगे

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बहुत सारे वायरस बैक्टेरिया या तो मनुष्यों के लिये घातक हैं वह बर्फ के नीचे दवे हुए हैं । लेकिन पूंजीवादी विकास के मॉडल जोकि globalisation और mass production की अवधरणा पर आधरित है उसके कारण जो प्रदूषण उत्पन्न हो रहा । इस प्रदूषण के कारण कई ग्लेशियर पिघल रहें हैं जैसे 2019 में iceland में  मौजूद सबसे बड़े ग्लेशियर का अंत हो गया । अब इससे हो क्या रहा है कि इस बर्फ के नीचे बहुत सारे वायरस और बैक्टेरिया सुरक्षित पड़े हैं जो बर्फ पिघलने पर बाहर आएंगे । क प्लेग ,जिसने दुनियाभर की एक तिहाई आबादी का अंत कर दिया था ,स्पेनिश फ्लू जिसने 1920 में 10 करोड़ लोगों की जान ले ली थी और भी बहुत सारे वायरस और बैक्टेरिया इन कब्रों से बाहर आ रहें हैं जो बर्फ के नीचे सुरक्षित पड़ी थी । अगर विश्व कोरोना वायरस से बच भी गया तो इन हजारों वायरस बैक्टेरिया से कैसे बचेगा । इसके लिये सनातन मॉडल जो localization और small scale production का मॉडल अपनाना पड़ेगा । जिससे प्रदूषण ,global warming औऱ इनसे उत्पन्न बीमारियों से मानव जाति की रक्षा हो सके https://sanatanbharata.blogspot.com/2019/11/blog-post_5.html?m=1,

क्या nation state की अवधारणा को खतरा उत्पन्न हो गया है

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‌यह reverse migration असल में देश का  dUrbanisation हो रहा है । 1920 में दिल्ली की आबादी केवल 405000 थी आज यह 3 करोड़ के आसपास होगी । यह शहरीकरण क्यों बढ़ा ,क्योकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सब चीज़ बड़े शहरों में केंद्रित होती है चाहे वह ज्यूडिशियल सिस्टम हो, taxations system हो  , government system हो  , education system हो ,बड़ी बड़ी कंपनियों के आफिस हो ,आदि । रही सही कसर पूंजीवादी एक फ़सली खेती ने कर दी ।लेकिन कैसे इसके बारे में जानने के  लिए हमारा यह ब्लॉग पढें sanatanbharata.blogspot.com और साथ मे पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम भी urbanisation को बढ़ता है । इस सारी व्यवस्था  जो देश और दुनिया में चल रही है उसको पूँजीवादी मॉडल कहते हैं । इस पूंजीवादी मॉडल की जीवन रेखा  tansportion है । बिना transportion के पूंजीवादी मॉडल एक दिन नहीं चल सकता । कैसे इसको जानने के लिए हमारा यह ब्लॉग पढें https://sanatanbharata.blogspot.com/2019/11/blog-post_5.html?m=1 । जैसे ही पूंजीवादी अर्थतंत्र की जीवन रेखा transportation कोरोना के कारण बन्द हुई । पूंजीवादी मॉडल 7 दिनों में ढ़हने के कगार पर आ पहुंचा । 

कैसे कम्युनिस्ट अनपढ़ माओ जेडोंग ने चीनी लोगों को हर तरह के जंगली को खाने पर मजबूर कर दिया जो आज भी जारी है ।

--------------- मित्रो चीन के लोग हमेशा से ऐसे नही थे । कम्युनिस्टों के कुसाशन से पहले चीन भारत की तरह एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी । मांसाहार वहां पर इतने बड़े स्तर पर नही था । फिर ऐसा क्या हुआ कि चीनी लोग हर तरह के जंगली जानवर ,चमगादड, पैंगोलिन ,सांप ,आदि खाने लगे बात 1958 की है, जब कामरेड माओ जेडोंग ने किसी आजकल के मॉडर्न वैज्ञनिक की सलाह पर एक अभियान शुरू किया था, जिसे Four Pests Campaign का नाम दिया था. इस अभियान के तहत चार पेस्ट को मारने का फैसला किया गया था. पहला था मच्छर, दूसरा मक्खी, तीसरा चूहा और चौथी थी हमारी प्यारी मासूम गौरैया. मासूम कही जाने वाली गौरैया को कॉमरेड माओ जेडोंग ने ये कहकर मारने का फरमान सुना दिया था कि वह लोगों के अनाज खा जाती है. कहा गया कि गौरैया किसानों की मेहनत बेकार कर देती है और सारा अनाज खा जाती है. चीन में उस समय के कम्युनिस्टों  ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह फैला दिया. लोग भी बर्तन, टिन, ड्रम बजा-बजाकर चिड़ियों को उड़ाते. लोगों की कोशिश यही रहती कि गौरैया किसी भी हालत में बैठने न पाए और उड़ती रहे. बस फिर क्या था, अपने नन्ह

स्वाइन फ्लू ,कम्युनिस्ट फ्लू कोरोना और एलोपैथी

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जो लोग अमेरिका के एलोपथिक मेडिसिन सिस्टम का गुणगान करते नहीं थकते उनकी जानकरी के लिये बता दूं इतने बड़े एलोपैथी सिस्टम के होते हुए भी अमेरिका में 2018 में स्वाइन फ्लू जोकि pig फार्मिंग से  पैदा हुआ है उससे 80000 लोग मारे गए थे । स्वाइन फ्लू 2009 में अस्तित्व में आया था । अब सोचने वाली बात यह है कि 11 साल के बाद भी एलोपैथी स्वाइन फ्लू का कोई कारगर उपचार नहीं ढूंढ़ पाया । अब यह जो नया कम्युनिस्ट वायरस ,कॅरोना चला है उसकी संरचना भी स्वाइन फ्लू से मिलती जुलती है । सारा विश्व कॅरोना के आगे नतमस्तक है । अमेरिका जोकि एलोपैथी का गढ़ है वहां के विज्ञानिक इतने वर्षों से स्वाइन फ्लू का तोड़ नही ढूंढ पाए । तो उस एलोपैथी सिस्टम में आप स्वाइन फ्लू की दवा इतनी जल्दी कैसे ढूंढ पाएंगे इस पर मुझे उत्तर चाहिये । एलोपैथी में बैक्टेरिया जो की कोशिका से बने होते हैं उसका तो थोड़ा बहुत उपचार है लेकिन वायरस जो कि प्रोटीन का बना होता है उसका केवल symptomic इलाज है । अगर आपको कम्यूनिस्ट वायरस कॅरोना से गले की नली में सूजन आ गई और आपको साँस लेने में दिक्कत आ गयी टी आपको वेंटिलेटर पर लिटा कर आप गले में सांस की पाइप ड

क्या कॅरोना वायरस जैसे वायरस आते रहेंगे

अगर सरकार या आम जनता इस lock डाउन  से कॅरोना पर काबू भी पा लेती है तो भी आप भविष्य में इस तरह के नए नए वायरस देखते रहेंगे  । जब तक इन वायरस को उत्पन्न करने वाली पूंजीवादी animal farming जिंदा रहेंगे तब तक वायरस भी जिंदा रहेंगें । Hiv का वायरस बंदरों से शुरू हुआ था । बर्ड फ्लू पोल्ट्री फार्मिंग से ,स्वाइन फ्लू pig farming से और कॅरोना bat farming से शुरू हुआ है । कोई सरकार इनके बारे में बिल्कुल बात नही करना चाहती । उल्टा सब्सिडी दी जा रही है ,gst में meat industry cover नही होती । वायरस उत्पन्न करने वाले कारण जब तक मौजूद है तब तक इस तरह के वायरस और हो सकता है इससे भी घातक वायरस आतें रहेंगे । दूसरा वायरस अगर एक स्थान पर उत्पन्न हो गया तो globalistion (global production global consumption के कारण फ़ैलते रहेंगे क्योकि ग्लोबलिसशन के कारण समान ,मीट और लोग बेवजह इधर उधर होते रहते हैं । तीसरा अगर वायरस एक बार सारी दुनिया में फैल गया तो जिस आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के नाम पर जिस फैल allopathy का गुणगान कर कर के आम लोगों की आँखों मे जो धूल झोंकी जा रही है वह अधिक दिनों तक नही चलेगी । allopathy म

आयुर्वेद को कैसे समाप्त किया गया

 सरकार total health budget का 98% एलोपैथी पर खर्च कर रही है वो गरीब लोगों के टैक्स के पैसे हैं । सरकार ने आयुर्वेद को समाप्त करने के लिये सारे medicinal plants जैसे नीम , पीपल आदि को जानबूझ कर समाप्त कर दिया । सारी जैव विवधता को एक फ़सली खेती से समाप्त कर दिया । आयुर्वेद व्यवस्था में गुरु शिष्या परंपरा से जो वैद्य तैयार होते थे उन्हें झोला छाप कहकर बैन कर दिया ।  अब चांद पर जाने की दुहाई देने वालों ने पृथ्वी को रहने लायक नही छोड़ा । अब सरकार लोगों को जवाबदेह है । यह जो आप BAMS डॉक्टर देखते हो वह असल आयुर्वेद का क ख ग भी नहीं जानते । असली आयुर्वेदिक वैद्य नाड़ी देखकर बता देतें हैं । उनको जड़ी बूटियों का ज्ञान होता है । धातू मारनी आती हैं  और ये बैद्य सिर्फ गुरु शिष्य परंपरा से तैयार होते हैं किसी कॉलेज ,यूनिवर्सिटी में  नहीं। गुरु शिष्य परम्परा से तैयार इन वैद्य के पास कोई यूनिवर्सिटी की डिग्री नहीं होती थी सरकार ने डिग्री जरूरी करके इस भारतीय चिकित्सा पद्धति की जड़ों में तेल डाल दिया । रही सही कसर पूंजीवादी एक फ़सली खेती ने पूरी कर दी  । आयुर्वेद के लिये जरूरी जड़ी बूटियों के स्थान पर सब जगह

सनातन investment मॉडल

क्या सनातन investment मॉडल के कारण भारत पुणे पुणे सोने की चिड़िया बन सकता है ---------------------- आजकल की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में जमीन निवेश का एक मुख्य साधन है ।जबकि सनातन भारत में सोना निवेश का एक प्रमुख साधन था। जमीन में निवेश करने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इससे देश में कोई नई चीज नहीं आती ।जैसे कि मान लो  सारे भारतीयों ने मिलकर 1 साल में 100000 करोड रुपए की बचत की ।अगर हम इस एक लाख करोड़ रुपए को जमीन में निवेश कर दे ,तो इससे भारत में कोई नहीं जमीन नहीं बनती ।जमीन में निवेश से होता क्या है ?कि इससे जमीन की कीमतें बढ़ जाती है । जमीन तो उतनी ही रहती है। जमीन की कीमतें बढ़ने से जंगल जानवर और गरीब के लिए 2 गज जमीन भी उपलब्ध नहीं हो पाती ।अगर हम इस एक लाख करोड़ देखो जमीन में ना निवेश करके सोने में निवेश करें तो भारत के बाहर से एक लाख करोड़ रुपए के बराबर का सोना भारत के अंदर आएगा ।जिससे भारत की धन संपदा में 100000 करोड रुपए की वृद्धि हो जाएगी। हमारे पूर्वज भी इसी कारण सोने में निवेश करते थे ।सोने में निवेश करने से हम  गरीब के जमीन के अधिकार को भी सुरक्षित रख सकते हैं । इस तर

क्या allopathy में कॅरोना वायरस का इलाज संभव है ?

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आपकी जानकारी के लिये बता दूं । एलोपैथी में केवल बैक्टेरिया द्वारा उत्पन्न बीमारियों का इलाज है वायरस द्वारा उत्पन्न बीमारियों का नहीं । कॅरोना बैक्टेरिया जनित बीमारी नहीं है बल्कि वायरस जनित बीमारी है । एलोपैथी में वायरस के case में सिर्फ symptoms  का इलाज करती है वायरस का नहीं । जैसे वायरल फीवर में कारण वायरस है बुखार symptom है । केवल बुखार की दवाई दी जाती है इतने में आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस को मार देती है और आप बच जाते हो । इसलिये जो एलोपैथी के हॉस्पिटल कॅरोना वायरस के इलाज का दावा कर रहें हैं वह झूठ बोल रहें है । आपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करें । यही कॅरोना वायरस का इलाज है । तभी कॅरोना वायरस से केवल वोही लोग अधिक मर रहें हैं जो   बुजर्ग हैं  ।कॅरोना वायरस का केवल एक इलाज है वो है अपने शरीर की immunity को बढ़ा दिया जाए । आयुर्वेद में कभी वायरस को सीधा नही मारा जाता आपके शरीर की immunity को बढ़ाया जाता है । आपका शरीर अपने आप वायरस को मार देता है । इसलिये आयुर्वेद को प्रतिदिन नई नई दवाईयां नहीं खोजनी पड़ती। जबकि allopathy में हरेक वायरस को मार कर खत्म करन

सनातन और विज्ञान क्या है ?

सनातन और विज्ञान क्या है ? ------------ जिसमें निम्नलिखित तीनों विशेषताएं है वो ही सनातन है । यही विज्ञान की भी सही परिभाषा है । 1. जो सच है अर्थातजो आज भी उतना ही कारगर है जितना आज से लाखों साल पहले था और आज से हज़ारों साल बाद भी उतना ही कारगर रहेगा अर्थात जो निरंतर है । 2. जो निर्विकार है जिसमे कभी कोई विकार नही उत्पन्न नही हो सकता। 3. जो पूर्णतय: प्राकृतिक है जो प्रकृति को किसी भी तरह हानि नहीं पहुँचाता । इन तीनो पैमानो पर जो चीज़ खरी उतरती है वही विज्ञान है और सनातन है । उदहारण के लिये आयुर्वेद सनातन है , विज्ञान है । 1. आयुर्वेद आज भी उतना कारगर है ,जितना आज से लाखों साल पहले था । दूसरी तरफ 1945 में एलोपैथी की जान कहे जाने वाले पहले एंटीबायोटिक पेन्सिलिन का अविष्कार हुआ । जिसका प्रभाव 5 वर्ष तक रहा । फिर टेट्रासाइक्लिन जोकि एक एंटीबायोटिक था उससे बैक्टेरिया ने 10 वर्ष में ही immunity हासिल कर ली । अब अंतिम एंटीबायोटिक चल रहा है । एक बार यह एंटीबायोटिक खत्म तो फिर एलोपैथी भी खत्म । इसलिए एलोपैथी विज्ञान के और सनातन के निरंतरता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती । दूसरी तरफ किसी भी आ

सुरक्षित और अधिक आमदनी के लिये निवेश कहां करें

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शुद्ध सोने (pure gold ) निवेश के चारों मानकों पर खरा उतरता है |  1.  liquidity  2. Risk  3. Return  4. Morality नैतिकता और कोई भी निवेश इन चारों पैमानों पर खरा नही उतरता ।अब हम विभिन्न निवेशों का उपरोक्त चार पैमानों पर तुलनात्मक अध्ययन करेंगें । 1. Liquidity ------------  तरलता निवेश की उस विशेषता को दर्शाता है कि अगर कल को आपको धन की आवश्यकता पड़ गई वो कितनी जल्द आप को वापिस मिलता है । इस मामले में ज़मीन में निवेश बिल्कुल अच्छा नहीं है । Insurance में निवेश किया गया पैसा आपको जरूरत के समय बिल्कुल नहीं मिलता । अगर अपने  insurance करवाया हुआ है और आपको अचानक धन की आवश्यकता आन पड़ी तो बीमा कंपनी आपको कहेगी कि जो पैसा आपने बीमा में  निवेश किया हुआ वह  पैसा तभी मिल सकता है , अगर आप मर जाएं  या आपको कोई बीमारी हो जाए । अर्थात Insurance में निवेश बिल्कुल liquid नहीं है । आपको अपने पैसे के लिये ही भिखारी की तरह भटकना पड़ता है । शेयर्स में निवेश कभी कभी समय पर बिल्कुल वापिस नहीं मिलता । उदाहरण के लिये आपने किसी ऐसे शेयर में पैसा निवेश कर दिया जिसमें sale purchase नहीं होती ,उस केस म

ENGLISH Judiciary system vs सनातन न्याय व्यवस्था

कौन कौन सनातन न्याय व्यवस्था जोकि पंचायती सिस्टम पर आधारित थी की वापिसी चाहता है | अगर आज कल की न्याय व्यवस्था में आप को कोई थप्पड़ भी मार जाये तो पहले आप को पुलिस स्टेशन के धक्के खाकर 5000 रूपए रिश्वत देकर और 100 -50 लोग इक़ठे कर FIR करवानी पड़ेगी | फिर कोर्ट में कोई 10000 का वकील कर पांच साल कम से कम धक्के खाने पढेंगे | गवाहों को 500 रूपए देकर बढ़िया रोटी का वायदा कर कोर्ट में पेश करना पड़ेगा | हजारों कागज एकत्र करने पड़ेंगें | फिर भी आपको न्याय मिले ना मिले इसकी कोई गारंटी नहीं | दूसरी तरफ सनातन न्याय व्यवस्था जिसमे तवरित और निशुल्क न्याय मिलता था उसको पूंजीवादी भोंपू मीडिया ने चीख चीख कर बंद करवा दिया | और अंग्रेजों का सडा हुआ सिस्टम विकास और मॉडर्न JUDICIDRY सिस्टम के नाम पर हम पर थोप दिया | ---------------- जय संविधान , जय कोरट , जय आधुनिक अन्याय व्यवस्था | Judiciary 

water park और cinema hall की सच्चाई

कॅरोना वायरस , आपको दो जगह होने की बहुत अधिक संभावना है। पहला water park और दूसरा movie theater । water park में एक भी संक्रमित व्यक्ति नहा गया तो सारा पानी संक्रमित हो जाएगा । दूसरा वाटर पार्क का पानी महीनों महीनों तक बदला नहीं जाता ,क्योकि वाटर पार्क में सबसे अधिक खर्च पानी बदलने में ही होता है । पानी में बदबू ना मारे इसको रोकने के लिये इन वाटर पार्क में chemical मिला दिया जाता है जिससे आपकी चमड़ी काली पड़ सकती है। लोग नहाने के दौरान पिसाब आदि कर देते हैं ।बाकी जिन लोगों को त्वचा संबंधी रोग होते हैं उनकी एलर्जी भी पानी में घुल जाती है । लोग आधुनिकता के नाम पर बड़े चाव से यह मल मूत्र ,एलर्जी युक्त ,महीनों पुराने पानी में बड़े चाव से नहाते है । यह गंदा पानी आपकी नाक ,कान गले में चला जाता है । इससे केरोना वायरस होने का खतरा अधिक है । दूसरा कॅरोना वायरस movie hall में होने की अत्याधिक संभावना है । मूवी हाल में आप एक दूसरे से सट कर बैठते हैं । मूवी हॉल को क्योकि ठंडा रखना पड़ता है इसलिए air कंडीशनर द्वारा जनित ठंडी हवा बाहर ना निकल जाए और बाहर की शुद्ध और ताज़ी  हवा अंदर ना आ जाए इसका खास ध्

पूंजीवादी processing system कैसे जल को प्रदूषित क्र रहा है

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पूंजीवादी processing system ने पहले भूमिगत जल और नदियों के जल को प्रदूषित किया  । फिर इस गन्दे पानी को साफ करने के लिये एक नई समस्या( RO और mineral water ) को जन्म दिया ।और फिर RO औऱ mineral water को विकास ,तरक्क़ी का नाम दे दिया । अब यह यह RO औऱ MINERAL WATER लोगों की हड्डियां कमजोर कर रहा है । अब इसका समस्या के समाधान के नाम पर पूंजीवादी तंत्र को नई समस्या को  ,विकास के नाम पर ,आपको बेच देगा । अगर मूल समस्या जो की पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम है जिससे जल दूषित हो रहा उसको सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम से replace कर दिया जाए, तो ना जल गन्दा होगा, ना Ro और mineral water की जरुरत होगी , ना ही ro और मिनरल water पीने से आपकी हड्डियां कमजोर होंगी ।  मूल समस्या पूंजीवादी processing सिस्टम ,जैसे रिफाइंड तेल की मिलें हैं ।जिसमें तेल निकालने की प्रक्रिया को सस्ता करने के लिये अत्याधिक घातक  रसायन Hexane ,जो की कच्चे तेल के साथ निकलता है, उसका प्रयोग किया जाता है। और जब इन used गंदे रासायनों जैसे hexane आदि को ,नदियों में या धरती में inject कर दिया जाता है ,तो जल प्रदूषित हो जाता है ।अगर इन पूंजीव

YES BANK LTD क्यों धराशायी हुआ

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जो लोग yes bank पर ज्ञान पेल रहें हैं । उनकी जानकरी के लिए बता दूं कि अगर मुझे किसी भी बैंक का central statutory auditor बना दिया जाए तो 7 दिन में इतने npa निकाल दूँ कि सारे बैंक दिवालिया हो जाएं । एक बार मैंने एक बैंक की ब्रांच का statutory audit किया था उस बैंक ब्रांच को loss में ला कर खड़ा कर दिया था । अगले तीन वर्षों तक बैंक ने मुझे ऐसी ब्रांच allot की ,जिनमें जा तो कोई loan ही नही था ,या सर्विस ब्रांच थी ,या नई खुली ब्रांच थी । अगर बैंक्स का सही ऑडिट हो तो सारे बैंक्स की capital negative हैं । सारे बड़े loan बिना security के केवल share गिरवीं रखकर दिए जाते हैं ,consumer loan ,vehicle loan , सबमें बहुत npa है लेकिन बैंक के parmoter पागल थोड़ी हैं कि उनको पता नहीं की loan वापिस नही आएगा लेकिन बैंक में उनका पैसा ना मात्र का लगा होता है और जनता का पैसा बहुत अधिक । जैसे y bank में r kapoor का अधिक से अधिक 500 करोड़ लगा है और depositors की fd ,saving आदि में 200000 करोड़ रुपये लगा है । अगर y बैंक डूबता है तो राणा कपूर को कुछ नहीं होगा । अब सारा खेल 200000 करोड़ लूटने का है । बैंकिंग system
आजकल उसी reasearch पर पैसा निवेश हो रहा है जिसमें कुछ चन्द पूंजीपतियों का लाभ हो । अगर कोई व्यक्ति या संस्था की खोज समाज भलाई के लिए हो तो कोई सरकार या कंपनी उसको प्रोत्साहित नही करती । कुछ चन्द पूंजीपतियों के लाभ पहुँचने के लिए जो टेक्नोलॉजी का निर्माण होता है उसको विकास के नाम पर बेचा जाता है । उदहारण के लिये बैंकिंग । बैंकिंग की खोज आम लोगों की भलाई के लिये नही हुई । जब बैंकिंग आई है तबसे बेरीज़गारी ,महंगाई बढ़ी ही है कम नहीं हुई । हानिकारक रासायनों और पेस्टीसाइड को उन्नत खेती के नाम पर बेचा जाता है । अगर आप खेती का कोई ऐसा मॉडल ढूंढ लो जिसमे हानिकारक रसायनो की जरूरत ना पड़ती हो तो आप को कोई नही पूछेगा । ना सरकार ना कोई कंपनी । उदहारण के लिये राजीव भाई दिक्सित क्योकि उनकी reasearch समाज भलाई के लिये थी । उनको किसी सरकार ,किसी विदेशी संस्था ने कोई भारत रत्न , मैग्ससे या नोबेल पुरस्कार से नही नवाज़ा । इसके विपरीत अमर्त्य सेन ने कंपनियों को कैसे अधिक अधिक लाभ हो उसके लिये research की उसको नोबल पुरस्कार दिया गया । अगर राजीव दिक्सित जी ने गरीबों के स्थान पर कंपनियों के लिये काम किया होता तो
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पूंजीवादी कम्पनियों की mass production की अवधारणा ने समुद्र का भी विकास करके सत्यानाश कर दिया । पहले स्थानीय मछुआरे सीमित मात्रा में तट के नजदीक केवल अपने गुजर बसर के लिये मछली पकडते थे वह भी सप्ताह में कुछ दिन । फिर बैंकों द्वारा जबरदस्त फंडिंग प्राप्त और सरकारी अनुदान द्वारा प्रायोजित बड़ी बडी पूंजीवादी फिशिंग कंपनियों का धरती पर अवतरण हुआ । और विकास और तरक्की का प्रकाश से आम लोगों की आंखे चुँधिया गई । इन बड़े बड़े पूंजीवादी राक्षसों के पास ये बड़ी बड़ी जहाज होते थे । जो वहां जा कर मछली पकड़ते थे जहां पर इन मछलियों के प्रजनन स्थल थे । इनके जाल भी बहुत बारीक थे जिसमें नवजन्मे मछलियों के बच्चे भी होते थे । जिनको यह बड़े बड़े दैत्य अलग कर ऊँचें दाम पर बेचते थे । जिस कारण समुद्रों में मछलियों की संख्या कम होने लगी और सारा समुंद्री जीवन नष्ट होने लगा । मछलियों की संख्या कम होने के कारण जिन चीजों पर यह मछलियां पलती थी उनकी बढ़ोतरी होने लगी और समुद्र का नाजुक संतुलन बिगड़ने लगा । जो समुद्र लाखों सालों से नष्ट नहीं हुआ । आधुनिक पूंजीवादी तरक्क़ी ने उसे कुछ ही समय पर नष्ट कर दिया । बाकि पूंजीवादी कंप