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पूंजीवादी वस्तुओं की Packaging इतनी जबरदस्त क्यों की जाती है ?

नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे कि पूंजीवादी वस्तुओं की पैकिंग पर इतना ध्यान क्यों दिया जाता है। जैसे कि आपने देखा ही होगा कि पूंजीवादी कंपनियों के प्रोडक्ट जैसे शैंपू साबुन रिफाइंड तेल आदि की पैकिंग पर इतना ध्यान क्यों दिया जाता है । तो उसका उत्तर है कि जब हम मार्केटिंग मैनेजमेंट पढ़ते हैं ।तो उसमें यह पढ़ाया जाता है कि चाहे वस्तुओं की गुणवत्ता कितनी भी कम क्यों ना हो , उनकी पैकिंग उत्तम हो नी चाहिए । यह पूंजीवादी सिस्टम दो चीजों पर सबसे अधिक टिका हुआ है , एक है पैकिंग , दूसरी है उसकी एडवरटाइजमेंट ।अगर पूंजीवादी वस्तु की पैकिंग और एडवर्टाइजमेंट ढंग की ना हो , तो वह दो दिन भी मार्किट में टिक नहीं सकती। जैसे कि उदाहरण के लिए हम कोल्ड ड्रिंक को ले लेते हैं। कोल्ड ड्रिंक में जो रसायन पड़ते हैं उनका मूल्य केवल और केवल 50 पैसे से अधिक नहीं होता ।लेकिन कोल्ड ड्रिंक की पैकिंग पर खास ध्यान दिया जाता है । एक 25 रूपए की कोल्ड ड्रिंक की बोतल में अधिक से अधिक 50 पैसे का material होता है , 5 रुपए पैकिंग के होते हैं। 5 रुपए एडवर्टाइजमेंट पर खर्च किए जाते हैं , ₹10 की trans

बैंकिंग सिस्टम मुद्रा कैसे छापता है ?

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अगर आपके पास 10 लाख रुपए हैं । तो आप अधिक से अधिक 10 लाख रुपए ही उधार दे सकते हो । आप किसी को 11 लाख रुपए उधार नहीं दे सकते ।लेकिन बैंकिंग में यह प्रतिबंध लागू नहीं होता । इसको हम एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। सन 2018 के अंत तक भारत में कुल मुद्रा लगभग 20 लाख करोड रुपए चल रही थी। और सारे बैंकों ने मिलाकर लगभग 60 लाख करोड रूपया उधार दे रखा था। इसका अर्थ यह हुआ कि बैंकों के पास अधिक से अधिक 20 लाख करोड रुपए की मुद्रा थी। फिर सारे बैंकों ने मिलकर 60 लाख करोड रुपए कैसे उधार दे दिए । इसी को बैंक द्वारा मुद्रा छापना कहा जाता है। देश में 2 तरीके की मुद्राएं चलती हैं। एक तो जो सरकार ने छपाई होती हैं ।और दूसरा जो बैंकों ने इस मुद्रा के अतिरिक्त जो लोन दिए होते हैं ।वह भी एक तरीके की मुद्रा ही है। इसको virtual करंसी कहते है । इससे आप वह सब काम कर सकते हैं जो सरकार द्वारा प्रिंट की गई मुद्रा से कर सकते हैं । अगर सरकार बैंकों पर यह रोक लगा दे। कि जितनी बैंक के पास मुद्रा है । बैंक उससे अधिक लोन नहीं दे सकता। तो देश की आम जनता के बारे नियारे हो जाएं । उपरोक्त उदहारण में सरकार लगभग 40 लाख कर

सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम

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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के बारे में। हम चर्चा करेंगे कि कैसे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम से हरेक पैमाने पर अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम कैसे उपभोक्ता के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के अंतर को जाने के लिए सबसे पहले हम एक उदाहरण लेते हैं l इस लेख को पूरी तरह समझने से लेख के साथ जो हमने चार्ट लगाया है उसे ध्यान से देखें ।  मान लो पंजाब  में एक शहर है संगरूर ।इसके इर्द गिर्द लगभग  500 व्यक्ति कुल्फी बनाने के धंधे में लगे हुए हैं। यह लोग गांव से दूध लेकर रात को जमा देते हैं और सुबह तैयार कुल्फी शुरू शहर में आकर बेच देते हैं ।इस तरह आपको ताजा कुल्फी खाने को मिलती है ।यह सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम का एक उदाहरण है।  दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में संगरूर शहर  के गावों का दूध पहले 72 किलोमीटर दूर लुधियाना में बसंत आइसक्रीम के प्लांट में ट्रकों में भर भर के भेजा जाता है ।वहां पर इस प्रोसेसिंग करके इसकी कुल्फी जमा

पूंजीवादी processing और distribution system से होती लूट

अगर आप अपना बेसन आप पिस्वाते हैं तो 1. अच्छे से अच्छा चना 60 रुपए का किलो है । 10 रुपए किलो पिसाई । आपको अच्छे से अच्छा बेसन खुद पिसवा कर 70 रुपए किलो पड़ता है । दूसरी तरफ पूंजीवादी कंपनीज द्वारा पैकेट बन्द बेसन 90 रुपए किलो बेचा जाता है । सीधा सीधा 20 रुपए प्रति किलो की लूट । 2. अपने पिस्वाए बेसन में कोई मिलावट नहीं हो सकती क्योंकि प्रोसेसिंग आपके सामने होती है । जबकि पूंजीवादी बेसन में कई घटिया और सस्ती चीज़ों की मिलावट की जाती है । 3. खुद के पिस्वाये बेसन में से चने का छिलका जिसमें असली जान होती है वो आपके बेसन में मौजूद रहता है । जबकि पूंजीवादी बेसन में इसको निकाल लिया जाता है । 4. घर के पिसवाए बेसन के बने पकोड़े नरम होते है और जीभ पर रखते सार ही मुंह में रस खुल जाता है । जबकि पूंजीवादी बेसन के पकोड़े सख्त और बिल्कुल स्वादिष्ट नहीं होते । 5. खुद के पिसवाए सनातनी बेसन से हजारों लाखों चक्की वाले गरीब लोगों को रोज़गार मिलता । दूसरी तरफ पूंजीवादी packaged बेसन से सारा पैसा कुछ चन्द पूंजीपतियों तक सीमित हो जाता है । 6. अगर आप चने के खुद के पिसवाए बेसन को आटे में मिला कर रोटी तैय

मिश्रित खेती से कैसे पराली कि समस्या से निजात पाई जा सकती है ?

‌1.आजकल की पूंजीवादी एक फसली खेती में सारे क्षेत्र में और सारे किसान एक ही तरह की फसल बीजते हैं । जैसे कि पंजाब में गेहूं और धान की फसल होती है ।गेहूं की फसल अधिकतर अप्रैल के महीने में आ जाती है। गेहूं की फसल से जो भूसी  प्राप्त होती है उसको  चारे में मिलाकर  प्रयोग किया जाता है।  धान की अधिकतर फसल अक्टूबर नवंबर के महीने में आती है । पंजाब और हरियाणा में धान की पराली को पशुओं के चारे में प्रयोग नहीं किया जाता । इसलिए किसानों द्वारा पराली को नष्ट करने के लिए पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है जिससे बहुत धूआं उत्पन्न होता है। इस धूयें के कारण पंजाब हरियाणा चैम्बर में बदल जाते हैं। पराली में लगी आग के कारण कई जीव जन्तु इसमें जिन्दा जल जाते हैं कई पशू पक्षियों के नवजात बच्चे इनमें जिन्दा  जल जातें हैं । तभी आपने देखा होगा कि आजकल कई पक्षी जैसे कौए आदि लुप्तप्राय हो गए हैं । जबकि सनातन मिश्रित खेती में पराली की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि किसान किसान मिश्रित खेती में गेहूं धान के अतिरिक्त अन्य फसलें जैसे दालें ,सरसों ,मक्का ,जों, बाजरा , जड़ी बूटियां ,फल सब्जियां आदि बीजता है ।