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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पोल्ट्री फार्मिंग और पूंजीवाद का अंत END OF POULTRY FARMING AND CAPITALISM

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पोल्ट्री फार्मिंग और पूंजीवाद का अंत -------------------------------------------- दोस्तो जैसे की आप सब जानते हैं कि आजकल मुर्गियां और अंडे पोल्ट्री फार्म में उगाए जातें हैं मुर्गियों को पिंजरों में बंद रखा जाता है । उन cages में इतनी जगह भी नहीं होती कि मुर्गियां ढ़ंग से हिलजुल सकें । क्या मुर्गियों को कुदरत ने केज्स में पैदा किया है ? अगर हम 50 इंसानों को एक 100 वर्ग फुट के कमरे में बंद कर दें केजेस बना कर और खाना पानी देतें रहें तो वह 100 इंसान कितने दिन तक जिंदा बच पाएं गे । उत्तर है थोड़े दिनों में ही इंसान संक्रमण से मर जायेगें । तो फिर प्रश्न उठता है कि मुर्गियां क्यों नहीं मरती । तो इसका उत्तर है कि उनको एंटीबायोटिक दिया जाता है प्रतिदिन ता कि उनमें संक्रमण ना फैले । विश्व का लगभग 80% एंटीबायोटिक मीट इंडस्ट्री में कंज्यूम होता है । एक नवीन शोध के अनुसार एंटीबायोटिक के दिन अब गिने चुने रह गए । अब अंतिम एंटीबायोटिक चल रहा है । जो चार पांच साल में बेकार हो जाएगा । धीरे धीरे बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के प्रति इम्यूनिटी हासिल कर लेते हैं । जब यह अंतिम एंटीबायोटिक

सनातनी गुड और पूंजीबादी चीनी jaggery vs sugar

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पूंजीबाद मने ऐसा तन्त्र विकसित करना जिससे सारा पैसा कुछ लोगो तक सीमित हो जाये | उदहारण के लिए चीनी मिलें | सनातन भारत में चीनी के स्थान पर गुड का प्रयोग होता था | किसान गन्ना उगता था वो या तो आप गुड तैयार करने के लिए कुल्हाड़ चला लेता या अपना गन्ना किसी कुल्हाड़ पर बेच देता था |   , काफी कुल्हाड़ होने के कारण किसी एक मिल मालिक का एकाधिकार ना होता , पर्यावरण दूषित नहीं नहीं होता था | ग्राहक को यह लाभ था की गुड उसके सामने बन रहा है उसको सही दाम पर रसयन रहित गुड मिल जाता था | एक कुल्हाड़ पर काम करने के लिए 5 दस लोगो की आवश्यकता होती | एक गाँव के आस पास ५ -१० कुल्हाड़ होते | और केवल कुल्हाड़ पर एक गाँव के ५०-६० व्यक्ति रोज़गार प्राप्त करते थे | कुल्हाड़ तो एक उद्धरण है | इस तरह भारत में कोई बेरोज़गारी और धन की असमान बाँट की कोई समस्या नहीं थी | यह थी सनातन व्यवस्था जो इस बात को यकीनी बनाती थी कि धन की आसमान बाँट ना हो , बेरोज़गारी ना हो , पर्यावरण से छेड़छाड़ ना हो और देश की सारे संसधानो पर किसी एक व्यक्ति का नियंत्रण ना हो | और अब अंग्रेजों के आने के साथ भारत में पूंजीवादी व्यवस्था का आगमन

chuna vs cement and indian education system

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चाणक्य ने कहा था कि व्यर्थ है वो   शिक्षा व्यवस्था जो व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं कर सकती | तो क्या आज कल की शिक्षा व्यवस्था व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रही है ? उत्तर है नहीं | आजकल की शिक्षा व्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के ध्यान में रखकर बनाई है, उदाहरण के लिए सीमेंट पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उत्पादन है और चूना सनातनी अर्थव्यवस्था का उत्पाद है | सीमेंट की कुल आयु अधिक से अधिक 75 वर्ष होती है और सीमेंट में 5 वर्ष में ही दरारे उत्पन्न होने लगती हैं और चूने की अधिकतम आयु 2500 वर्ष और कम से कम 500 वर्ष है | आज भी किसी   मिस्त्री   को अगर किसी दीवार मजबूती के बारे में पूछा जाये तो बह कहता है कि जी बस समझ लो चूने में ईट लगा दी I आज भी हम देखते हैं कि जो पुराने पुल हैं वो आज भी खड़े है जबकि नये दो तीन साल में टूटने लगते हैं | कई लोग कहते हैं कि जी अंग्रजों ने बनाया है इसलिए पुराना मजबूत है और नया भारतियो ने बनाया है इसलिए ख़राब है | मैं कहता हूँ मूर्खो पुराना भारतीय तकनीक है इसलिए मजबूत है और नया अंग्रेजों की तकनीक से बना है इसलिए कमजोर हैं | हद है मा

सनातन शिक्षा पद्धति VS आज कल की पूजीं वादी शिक्षा पद्धति Modern Education System Vs Gurukul Education Systems

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नमस्कार मित्रो आज हम चर्चा करेंगे सनातन गुरुकुल शिक्षा पद्धति और   आज कल की पूजीं वादी शिक्षा पद्धति के बारे में | हम चर्चा करेगें की कैसे सनातन गुरुकुल शिक्षा पद्धति ,   आज कल की पूजीं वादी शिक्षा पद्धति से हरेक पैमाने पर अच्छी है I सनातन भारत में चार   चीजें बिलकुल मुफ्त थीं , पहला शिक्षा ,दूसरी चिकित्सा ,तीसरी रहने के लिए जमीन ,चोथा था न्याय   | हमारे प्राचीन ऋषि मुनिओं का मानना था कि अगर शिक्षा , चिकित्सा ,जमीन और न्याय में पैसा घुस गया तो यह पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी | आजकल की पूंजीवादी व्यवस्था में यह चारों पैसे वालों की जरखरीद गुलाम हैं इसलिए चारों तरफ अफरातफरी मची हुई है | आज हम यहाँ   केवल शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा करेगें   | सनातन भारत में शिक्षा हर वर्ग के लिए बिलकुल फ्री थी | जो आचार्य   शिक्षा देता था इसके बदले में छात्रों से कुछ फीस आदि नहीं लेता था | तो सवाल उठता है कि आचार्यों का खर्च कैसे चलता था तो इसका उत्तर है समाज के द्वारा | गुरुकुलिया शिक्षा व्यवस्था का दयित्व सामाज पर था | शिक्षा व्यवस्था में राज्य का कोई रोल नहीं था | राजा केवल तीन चीजों मुद्रा ,

Sanatan ways to Make India No.1

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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे की कैसे भारत को पुनः विश्व गुरु और विश्व का नंबर एक अमीर देश बनाया जा सकता है| मित्रों जैसे कि आप जानते ही हैं कि भारत को पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था | भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहते थे ,यह हमें समझना होगा |भारत में सोना ना निकलने के बावजूद भी भारत के पास इतना सोना आया कहां से ?तो उसका उत्तर है भारत की manufacturing industry | भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री इतनी समृद्ध थी ,कि एक बार यूरोप के एक राजा ने कहां था ,कि हम भारत के गुलाम हैं, हमारे तन पर कपड़ा है भारत में बना हुआ है , हमारे खाने के टेबल पर जो भोजन है ,वह भारत से आयात किए हुए मसालों से बना हुआ है , भारत से बनी हुई इस्पात से हमारी तलवारें बनी हुई हैं जिनसे हम युद्ध लड़ते हैं । भारत का बना हुआ इस्पात इतना अच्छा था कि भारत की राजधानी दिल्ली में जो लौह स्तंभ बना हुआ है उसको आज तक भी कभी भी जंग नहीं लगी,| आजतक भी दुनिया भर के वैज्ञानिक वैसा लोहा नहीं बना सके । भारत में बनी हुई ढाका की मलमल इतनी महीन थी ,कि कपड़े का एक पुरे का पूरा थान एक अंगूठी से निकल जाता था । आजकल

सनातन मिश्रित खेती और आज की पूंजीवादी खेती

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नमष्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे ।कि कैसे सनातन मिश्रित खेती पूंजीवादी खेती से हरेक पैमाने पर अच्छी है ।पूंजीवादी खेती की तुलना में मिश्रित खेती किसान के लिए भी अधिक उपयोगी है ।और उपभोक्ता के लिए भी अधिक उपयोगी है। हम चर्चा करेंगे कि क्यों और कैसे पूंजीवादी खेती के कारण किसान केवल और केवल सरकार और पूंजीवादी कम्पनीओं पर निर्भर हो रहा है। और मिश्रित खेती किसान को  कैसे आत्महत्या से  बचा सकती है। और मिश्रित खेती से उपभोक्ता को कैसे सही दाम पर रसायन रहित उत्पादन मिल सकता है | आजकल जो खेती की जा रही है। उसमें एक स्थान पर केवल एक ही तरह की फसल उगाई जाती है ।जैसे कि पंजाब में केवल धान और गेहूं की फसल ही उगाई जाती है ।पूंजीवादी खेती का मूल मंत्र है ।कि किसान अपनी सारी की सारी फसल बाजार में बेचे ।और अपनी जरूरत का सारा समान बाजार से खरीदे ।जैसे कि अगर किसान धान और गेहूं बेचता है। तो उसको सब्जी,दालें,सरसों का तेल,मूंगफली,ज्वार बाजरा,मक्की आदि बाजार से खरीदने पड़ते हैं ।जबकि मिश्रित  खेती में किसान अपने घर की जरूरत का अधिकतर समान जैसे दाल,सब्जी आदि खुद ही बीजता था । और जो फसल अधिक होती थी  उस