सनातन भारत में हम लोगों को अपना भोजन स्वयं process करने के लिये कहतें हैं जैसे कि सरसो का तेल स्वयं निकलवाओ , नमक ,हल्दी , मिर्च मसाला ,आटे की प्रोसेसिंग अपनी आँखों के सामने करवाओ । तांकि पूंजीवादी व्यवस्था की जड़ पर प्रहार हो सके । लेकिन west अब इस मामले में हमसे एक कदम आगे चल पड़ा है वहाँ पर लोगों को अपना भोजन स्वयं उगाने का एक अभियान चल पड़ा है । लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जा रहा कि अपना lawn ,food forest में बदल डालो । जो चीज़ आपके बगीचे में अधिक हो रही वह पड़ोसी को दे दो बदले जिस चीज़ की आपको आवयश्कता है वह आपके पास स्वयं आ जायेगी । इस को कहते हैं असली समाज । जो पूरी तरह जीवंत है । indendent होने की फ़र्ज़ी अवधारणा को अब नकारा जाने लगा है जो आपको केवल अकेलापन देती है । power to give यानि देने की ताकत को पहचानिए इससे ही रिश्तों का निर्माण होता है । पहले हमारे समाज मे हर अवसर पर रिश्तेदारों और पड़ोसियों को कुछ ना कुछ दिया जाता था । और यह होता था आपके यहाँ उगने वाली चीज़े जैसे सब्ज़ियाँ ,अनाज ,फल आदि , आपके घर तैयार होने वाली वस्तुएं जैसे कपड़ा , मुरब्बा आदि । कालांतर में इस पर बाज़ार ने कब्जा कर लिया । अब भारतीय दिवाली आदि पर कंपनियों के घटिया जूस ,बिस्कुट आदि gift देतें हैं जिसमे किसी तरह का अपनापन नहीं छलकता । अगर आप अपना फ़ूड खुद नहीं ऊगा सकते तो कोई बात नहीं gift देनें के अचार ,मुरव्वा तो तैयार हो ही सकता है । इस दिवाली यह प्रण ले । और नहीं सेब का सिरका ही तैयार कर लें , जिसको apple cide vinegar भी कहतें है । पीली सरसों का तेल ,घर मे बनी साबुन भी एक विकल्प हो सकता है ।
West सनातन संस्कृति को अपना रहा है । हमें भी अपनी सनातन संस्कृति की ओर लौटना चाहिये । हमना भोजन स्वयं उगाये , process करें और दूसरों को gift करें तांकि समाज का निर्माण पुनः हो सके ।
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