अजरबैजान और आर्मीनिया के दरमियान जो जंग है उससे एक बात साफ है कि ईसाई फिलहाल जंग हार रहें हैं । अज़रबैजान पर शुरू में आर्मीनिया भारी पड़ रहा था लेकिन मुस्लिम उम्मा के कांसेप्ट ने आर्मीनिया को back foot पर धकेल दिया । सीरिया और दूसरे मुस्लिम मुमालिक के जिहादी गुंडे अज़रबैजान की तरफ से लड़ने चले गए । दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक खैर खबह पाकिस्तान भी इस जंग में आर्मीनिया के खिलाफ लड़ा । खिलफते तुर्क ने भी अज़रबैजान पर भरपूर गोला बारूद फेंका ।लेकिन मजाल है कि ईसाई देश के किसी ने आर्मीनिया का साथ दिया हो । आर्मीनिया और अज़रबैजान के जंग से एक बात साफ है कि इस्लाम के लिये अब यूरोप का रास्ता साफ है। अब यूरोप को #यूरिबिया बनने से बचाने के लिए शायद ही कोई पॉलैंड का राजा आये। यूरोप के लोग अब पूरी तरह से ऐय्याश हो चुके हैं । पूँजीवाद और कम्युनिज्म ने यूरोप की परिवार व्यवस्था की जड़ों में मट्ठा डाल दिया है । यूरोप में 90% लोगों का कोई परिवार नहीं है । यूरोप की ईसाई आबादी दिन ब दिन कम हो रही है। बेल्जियम के सेना की औसत आयु और कमर दोनों 44 हो चुकी है । यूरोप अब हिन्दुओं की तरह किसी मशीहा का इंतजार कर रहा है जो उनकी तरफ से इस्लाम से लड़े और वह किसी बियर बार में बैठ कर hold the drink करते हुए इस जंग का आनंद लें बिल्कुल हमारी तरह जो किसी राम का इंतजार कर रहें हैं । अब लौटते हैं आर्मीनिया पर । अज़रबैजान के उलट इस छोटे से देश की किसी भी ईसाई देश ने मदद नहीं की । भविष्य में तुर्की के नेतृत्व में यूरोप और भारत पर isलाम का काला स्याह झंडा फिर काफिरो के सिर नेज़ों पर टांग देगा। यूरोप और भारत का वामपंथी दुष्प्रचार तंत्र इस सब पर पर्दा डाल कर खिलाफत और मुस्लिम उम्मा की सबसे बड़ी लाठी बना हुआ है। आर्मीनिया और अज़रबैजान की लड़ाई से एक बात और सामने आई कि इसराएल से बड़ा बेगैरत मुल्क और दूसरा नहीं है। जिस islआम ने छित्तर मार मार कर यहूदियों को अरब से बाहर फेंक दिया,उसी की इस्राएल चंद टुकड़ों की खातिर सहायता कर रहा है। आर्मीनिया एक अज़रबैजान से निपट भी लेता लेकिन इस जंग में इसराएल ने अज़रबैजान को एक से एक आधुनिक हथियार दिये । जंगें केवल जज़्बे और scarifice से जीतीं जाती हैं। लेकिन अब यूहदी और ईसाईयत में यह जज़्बा और त्याग करने का माद्दा नहीं है। भारत में हिन्दुओं के पक्ष में यह बात जाती है कि उनका एक संगठन है जो islaम के खिलाफ जंग में हिंदुओ को गोलबंद कर सकता है । दिल्ली के दंगे इसका उदाहरण हैं। लेकिन हिन्दुओं को अपने एकमात्र संगठन की जड़ें खोदने में जो मज़ा आता है वह कहीं और नहीं । अगर 1% हिंदू भी शाखा में जाने लगें तो भारत का काफिर यह जंग जीत सकता है । इसीलिए वामपंथी मीडिया हर किसी तरह संघ को समाप्त करने पर तुला हुआ है । भारत के काफिरों एक बात समझ लो, तुम्हारी होंना इस बात पर निर्भर है कि तुम संघ को कितना मजबूत करते हो । संघ है तो तुम हो । नहीं तो तुम लड़ाई हार चुके हो ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम

सनातन मिश्रित खेती और आज की पूंजीवादी खेती

SANATANI HOME STORAGE VS CAPITALIST STORAGE