आधुनिक पूंजीवादी एक फ़सली खेती का सच
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1960-70 के दशक में कृषि में बहुत घटिया बदलाब हुए । apmc एक्ट के जरिये किसानों को गुलाम बनाने का काम 1960-70 के दशक में शुरू हुआ । हरित क्रांति के नाम देशी बीजों को बदल कर हाइब्रिड बीज कर दिए गए, क्योकि देशी किसमें रासायनिक खाद को नकार रहीं थी । द्वितीय विश्व युद्ध के समय गोला बारूद बनाने के लिये बचा हुआ नाइट्रेट आदि हरित क्रांति के नाम पर भारतीय खेतों में झोंका गया । किसानों को जैविक कृषि से हटा कर रासायनिक खेती करने के लिये किसानों का mind wash करने के लिये स्थान स्थान पर agricultural universities खोली गई । जिसमें कार्यरत कृषि वैज्ञानिकों ने agricutlural कंपनियों से मोटा माल लेकर किसानों को रासायनिक खाद ,कीटनाशक ,हाइब्रिड बीज खरीदने के लिये प्रेरित किया गया । दूरदर्शन पर खेती का बेड़ागर्क करने के लिये कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए । all india radio पर भी नकली वैज्ञानिकों ने किसानों के सदियों के अनुसंधान को नकार दिया औऱ किसानों को रासायनिक खेती की तरफ मोड़ दिया गया । किसानों को पूर्णतयः बाजार के अधीन करने के लिये msp का दुष्चक्र रचा गया जिससे मिश्रित खेती के स्थान किसानों ने केवल उन फसलों की खेती शुरू कर दी जिसको सरकार खरीदती थी । बाकि फसलें ,फल ,सब्ज़ियां जिनकी सरकारी खरीद नहीं होती थी उनकी बिजाई बहुत कम हो गई । msp और सरकारी खरीद की गाजर आगे रख कर किसानों को पूंजीवादी बाजार के अधीन कर दिया गया । इस पूंजीवादी कृषि का मूल मंत्र है कि किसान अपनी सारी फसल बाजार में बेचे और अपनी जरूरत का सब समान चाहे वह घर की जरूरत हो या खेत की बाजार से खरीदे । जैसे बैल के स्थान पर ट्रेक्टर , देशी बीज जोकि मुफ्त में खेत से निकलते थे उसके स्थान पर पूंजीवादी कंपनियों द्वारा तैयार किये मंहगे हाइब्रिड बीज , जैविक खाद के स्थान पर मंहगी रासायनिक खाद , जैविक कीटनियंत्रक के स्थान पर रासायनिक कीटनाशक । किसानों को सब्सिडी देने के नाम पर ट्रेक्टर ,कंबाइन , बीज ,खाद,कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों की बिक्री को सब्सिडी दी गई । किसान ट्रेक्टर ,कंबाइन आदि खरीद कर कर्ज़े के जाल में फंस सके इसलिये बैंक्स ने इन कंपनियों की बिक्री को बढ़ाने के लिये किसानों को loan देना शुरू कर दिया । अगर आपने बैल लेना हो उसके लिये बैंक कभी loan नही करता अगर अपने किसी पूंजीवादी कंपनी की कंबाइन ,ट्रेक्टर आदि लेना हो तो बैंक मिनटों में loan कर देता है वह भी बिना सिक्योरिटी के । पशु चारा जो पहले खेत में से ही फ्री में मिल जाता था अब कैटल फीड ,खल आदि के रूप में किसान बाजार से खरिदने लगा ।
यह सब षड्यंत्र एक कहानी के जरिये रचा गया । 1960 के दशक में एक बार गेंहू को आयात करना पड़ा । इसको बड़े ढोल धमके के साथ उछला गया और भारतीय कृषि की दशा और दिशा दोनों हरित क्रांति के हाथों नीलाम कर दी गई ।
किसान जो पहले आसमान में भगवान की तरफ देखता था अब सरकार की तरफ देखता है । खेती को उद्योग में बदल दिया गया । जीरो बजट जैविक खेती के स्थान पर खेती लाखों रुपये निवेश होने लगे । टैक्टर कंबाइन और खेती के टूल्स में लाखों निवेश होने लगे उद्योग की माफिक । उद्योगों की तरह खेती में भी mass production की अवधारणा को लागू कर दिया गया । उद्योगों की तरह कृषि भी कर्ज़े लेकर होने लगी । उद्योगों की तरह कृषि में भी रासायनों का प्रयोग होने लगा । लेकिन खेती ,खेती है उद्योग नहीं । खेती में mass production और economy of scale की अवधारणा लागू नहीं होती । इसलिये आजकल खेती का और किसान का इतना बुरा हाल है ।
आमतौर पर यह कुतर्क दिया जाता है कि पूंजीवादी एक फ़सली खेती से गेंहू और चावल का उत्पादन बहुत बढ़ गया है । हरित क्रांति ने अनाज का उत्पादन इतना बढ़ा दिया है कि पूछो मत । लेकिन सच तो यह है पहले तो केवल गेंहू मंगवानी पड़ी थी वो भी एक दो साल । हो सकता है तब गेंहू के आयात के पीछे भी कोई घोटाला हो ।आजकल गेंहू के अतिरिक्त दालें ,तेल सब कुछ आयात होता है । पहले तो जंगल बहुत थे अब तो इंच इंच भूमि पर खेती होती है । केवल गेहूं औऱ चावल के आंकड़ो को हर साल उछाला जाता है और बाकि की फसलों जैसे तलहन दलहन के आंकड़ों को दावा लिया जाता है । गेंहू और चावल को निर्यात किया जाता है और मोटी दलाली खाने के अवसर निर्मित किये जाते हैं । दालों ,तेलों आदि का आयात में भी मोटा माल अंदर किया जाता है ।
अंत में हम जानने की कोशिश करते हैं। कि किसान ने मिश्रित खेती को छोड़कर आजकल की पूंजीवादी खेती करना क्यों शुरू कर दिया । इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार दुबारा दिया जाने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य । न्यूनतम समर्थन मूल्य किसान को किसी एक ही फसल को लगातार बीजने पर मजबूर करता है । जैसे पंजाब में केवल गेहूं और धान के MSP होने के कारण ही किसान को गेहूं और धान बोने पर मजबूर होना पड़ता है ।और किसी अन्य फसल की सरकार द्वारा खरीद ना होने के कारण,किसान लगातार बार बार एक ही तरह की फसल बीजता रहता है । किसान को समझना पड़ेगा कि MSP सरकार किसानों को नहीं,बल्कि पूंजीपति कम्पनियों को देती है । ताकि किसान मिश्रित खेती से दूर रहे। और किसान को उर्वरक, बीज आदि बाजार से खरीदने पड़ें ।सरकार अगर किसानो का भला चाहती है ,तो सरकार को चाहिए कि जितनी सब्सिडी वह किसानों पर 1 साल में खर्च करती है, वह किसानों के खातों में सीधा ट्रांसफर करें। जैसे कि मान लो एक किसान के हिस्से में 10000 रुपए मासिक आते हैं ।तो सरकार को चाहिए कि ₹10000 महीना किसान के खाते में सीधा ट्रांसफर करें । और सरकार फालतू में किसान को मजबूर ना करें कि वह वही फसलें बार बार बीजें । जिससे की सारी की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर हो जाए। जैसे कि आजकल की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर है ।
किसान भाइयों कभी आपने सोचा है? कि आपके पूर्वज जोकि मिश्रित जैविक खेती करते थे। उन पर ना तो क़र्ज़ था,ना ही वे बीमार थे,ना ही उन्होंने कभी आत्म हत्या की ,ना ही उनको खेत छोड़कर शहरों और विदेशों में भागना पड़ा ।आजकल के किसान को सस्ता क़र्ज़ भी मिलता है ।MSP भी मिलती है । उर्वरक पर अनुदान भी मिलता है ।लेकिन फिर भी किसान आत्म हत्या पर मजबूर और क़र्ज़ के बोझ तले दबा क्यों हैं ।किसान भाईयों जब बैंक ट्रेक्टर आदि पर कम ब्याज लेता है ।और इस पर सरकार SUBSIDY देती है ।तो यह सब्सिडी किसान के लिए नहीं ।बल्कि ट्रेक्टर कम्पनीयों के लिए होती है ।जब सरकार यूरिया आदि पर सब्सिडी देती है। तो वो किसानों के लिए नहीं , बल्कि वह यूरिया कम्पनीयों के लिए होती है ।सरकार कभी बैल खरीदने पर , जैविक खेती पर सब्सिडी क्यों नहीं देती ।आप को इस बात को समझना होगा ।आपको मिश्रित जैविक खेती की और लौटना होगा ।खेती की लागत कम करनी होगी । अपनी उपज सीधे उपभोगता तक पहुंचानी होगी ।और पूंजीवादी बिचोलियों को खत्म करना होगा ।नहीं तो खेती छोड़कर शहर में मजदूरी करनी् पड़ेगी । पूंजीवादी बिचोलियों को ख़त्म करने के लिए सनातन अर्थव्यवस्था फिर से पुनर्जीवित हो रही है ।जिसका उल्लेख हम अपने आने वाले लेखों में करेगें
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम
नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के बारे में। हम चर्चा करेंगे कि कैसे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम से हरेक पैमाने पर अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम कैसे उपभोक्ता के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के अंतर को जाने के लिए सबसे पहले हम एक उदाहरण लेते हैं l इस लेख को पूरी तरह समझने से लेख के साथ जो हमने चार्ट लगाया है उसे ध्यान से देखें । मान लो पंजाब में एक शहर है संगरूर ।इसके इर्द गिर्द लगभग 500 व्यक्ति कुल्फी बनाने के धंधे में लगे हुए हैं। यह लोग गांव से दूध लेकर रात को जमा देते हैं और सुबह तैयार कुल्फी शुरू शहर में आकर बेच देते हैं ।इस तरह आपको ताजा कुल्फी खाने को मिलती है ।यह सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम का एक उदाहरण है। दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में संगरूर शहर के गावों का दूध पहले 72 किलोमीटर दूर लुधियाना में बसंत आइसक्रीम के प्लांट में ट्रकों में भर भर के भेजा जाता है ।वहां पर इस प्रोसेसिंग करके इसकी कुल्फी जमा
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