समाज के निर्माण के लिये दो चीज़ें होना अत्यंत आवश्यक है ।पहला है किसी गाँव या शहर की जनसंख्या 10000 से कम होना ।दूसरा है लोगों का स्थायी रूप से पीढ़ियों तक एक स्थान पर निवास करना । अगर यह दो कारण पूरे हो तभी समाज का निर्माण होता है ।
हर व्यक्ति पर सरकार का नियंत्रण यह पूंजीवादी व्यवस्था है । व्यक्ति पर समाज का नियंत्रण यह सनातन व्यवस्था है । सनातन व्यवस्था में सबसे पहले व्यक्ति होता है व्यक्ति के ऊपर फिर परिवार होता है ,परिवार के ऊपर समाज और समाज के ऊपर राष्ट्र होता है जो एक सांस्कृतिक अवधारणा है । जबकि पछमी पूंजीवादी व्यवस्था में परिवार और समाज नाम की इकाई ना होने के कारण व्यक्ति को सीधा सरकार नियंत्रित करता है। इसलिये पछमी पूंजीवादी व्यवस्था में परिवार और समाज का कोई स्थान नहीं है । और सरकार सीधा व्यक्ति को नियंत्रित करती है । क्योंकि सरकार और व्यक्ति का सीधा कोई सम्पर्क नहीं होता और दोनों एक दूसरे को नहीं जानते तो व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिये सरकार को विभिन्न नियम और कानून बनाने पड़ते है । क्योंकि सरकार और व्यक्ति एक दूसरे से बहुत दूर होते हैं इसलिये व्यक्ति पर नियंत्रण करने के लिये सरकार को बहुत सारे documents की जरूरत पड़ती है । जैसे पंजाब के किसी व्यक्ति को केंद्र सरकार ने दिल्ली में बैठ कर नियंत्रित करना है तो सरकार उसको विभिन्न तरह के डाक्यूमेंट्स जैसे आधार कार्ड ,पैन कार्ड आदि द्वारा नियंत्रित करेगी । औऱ इस पूंजीवादी पछमी शासन व्यवस्था को चलाने के लिये बहुत सारे सरकारी विभाग और कर्मचारी चाहिए । अब यह कर्म चारी करते हैं करप्शन । अब इस करप्शन को कम करने के लिए minimum government maximum governance का शिगूफा छोड़ा गया है ताकि छोटी करप्शन पर रोक लगे औऱ लोगों पर अधिक से अधिक नियंत्रण हो ।
दूसरी तरफ सनातन व्यवस्था में व्यक्ति के ऊपर पहले उसका परिवार फिर समाज और फिर राष्ट्र का नियंत्रण होता है इसलिये सनातन व्यवस्था में इतने सारे कानून और documents की जरूरत नहीं पड़ती थी । कैसे इसके लिये एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं कि मान लो आपके भाई और आपके बीच सम्पत्ति का कोई विवाद हो गया । और अपने हाई कोर्ट में case कर दिया । आपके भाई ने high court में कह दिया कि यह तो मेरा भाई ही नही है । अब ना तो हाई कोर्ट का जज आपको जानता है ना आपके भाई को । आपको यह छोटी सी बात सिद्ध करने के लिये विभिन्न तरह के डाक्यूमेंट्स रासन कार्ड ,आधार कार्ड ,जन्म प्रमाण पत्र आदि कोर्ट में पेश करने पडेंगे । दूसरी तरफ सनातन व्यवस्था में क्योंकि शहर का scale छोटा है और सदियों से परिवार वहीं पर रहने के कारण यह बात मिनटों में सिद्ध हो जाएगी आपको कोई डाक्यूमेंट्स आदि नहीं लाने पड़ेंगे । और आपको चुटकियों में न्याय मिल जाएगा ।
आजकल अंग्रेज़ो द्वारा दी गई इस पूँजीवादी व्यवस्था के डाक्यूमेंट्स और कानून आदि को ही भारत का विकास कहा जा रहा है । जबकि यह डाक्यूमेंट्स और कानून आदि पूंजीवादी व्यवस्था की जरूरत है आप पर नियंत्रण के लिये ।कोई विकास नही । सनातन व्यवस्था में क्योंकि को डाक्यूमेंट्स आदि की जरूरत नहीं पड़ती थी इसलिये यह आधार कार्ड आदि नहीं थे । सनातन व्यवस्था में न्याय देने के लिये ऋषि मुनियों द्वारा दिये गए मार्गदर्शक सिद्धान्त थे जिसमें रहकर व्यक्ति को नियंत्रित किया जाता था । ना कि आजकल की तरह ऐसे कानून थे जिसमें केवल निर्दोष ही फसता है । दोषी को कुछ नहीं होता । अगर आपने भी अपनी जिंदगी ठीक करनी है तो हमे सनातन व्यवस्था की तरफ लौटना ही होगा । और पछमी पूंजीवादी व्यवस्था को अलविदा कहना होगा । धन्यवाद

हर व्यक्ति पर सरकार का नियंत्रण यह पूंजीवादी व्यवस्था है । व्यक्ति पर समाज का नियंत्रण यह सनातन व्यवस्था है । सनातन व्यवस्था में सबसे पहले व्यक्ति होता है व्यक्ति के ऊपर फिर परिवार होता है ,परिवार के ऊपर समाज और समाज के ऊपर राष्ट्र होता है जो एक सांस्कृतिक अवधारणा है । जबकि पछमी पूंजीवादी व्यवस्था में परिवार और समाज नाम की इकाई ना होने के कारण व्यक्ति को सीधा सरकार नियंत्रित करता है। इसलिये पछमी पूंजीवादी व्यवस्था में परिवार और समाज का कोई स्थान नहीं है । और सरकार सीधा व्यक्ति को नियंत्रित करती है । क्योंकि सरकार और व्यक्ति का सीधा कोई सम्पर्क नहीं होता और दोनों एक दूसरे को नहीं जानते तो व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिये सरकार को विभिन्न नियम और कानून बनाने पड़ते है । क्योंकि सरकार और व्यक्ति एक दूसरे से बहुत दूर होते हैं इसलिये व्यक्ति पर नियंत्रण करने के लिये सरकार को बहुत सारे documents की जरूरत पड़ती है । जैसे पंजाब के किसी व्यक्ति को केंद्र सरकार ने दिल्ली में बैठ कर नियंत्रित करना है तो सरकार उसको विभिन्न तरह के डाक्यूमेंट्स जैसे आधार कार्ड ,पैन कार्ड आदि द्वारा नियंत्रित करेगी । औऱ इस पूंजीवादी पछमी शासन व्यवस्था को चलाने के लिये बहुत सारे सरकारी विभाग और कर्मचारी चाहिए । अब यह कर्म चारी करते हैं करप्शन । अब इस करप्शन को कम करने के लिए minimum government maximum governance का शिगूफा छोड़ा गया है ताकि छोटी करप्शन पर रोक लगे औऱ लोगों पर अधिक से अधिक नियंत्रण हो ।
दूसरी तरफ सनातन व्यवस्था में व्यक्ति के ऊपर पहले उसका परिवार फिर समाज और फिर राष्ट्र का नियंत्रण होता है इसलिये सनातन व्यवस्था में इतने सारे कानून और documents की जरूरत नहीं पड़ती थी । कैसे इसके लिये एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं कि मान लो आपके भाई और आपके बीच सम्पत्ति का कोई विवाद हो गया । और अपने हाई कोर्ट में case कर दिया । आपके भाई ने high court में कह दिया कि यह तो मेरा भाई ही नही है । अब ना तो हाई कोर्ट का जज आपको जानता है ना आपके भाई को । आपको यह छोटी सी बात सिद्ध करने के लिये विभिन्न तरह के डाक्यूमेंट्स रासन कार्ड ,आधार कार्ड ,जन्म प्रमाण पत्र आदि कोर्ट में पेश करने पडेंगे । दूसरी तरफ सनातन व्यवस्था में क्योंकि शहर का scale छोटा है और सदियों से परिवार वहीं पर रहने के कारण यह बात मिनटों में सिद्ध हो जाएगी आपको कोई डाक्यूमेंट्स आदि नहीं लाने पड़ेंगे । और आपको चुटकियों में न्याय मिल जाएगा ।
आजकल अंग्रेज़ो द्वारा दी गई इस पूँजीवादी व्यवस्था के डाक्यूमेंट्स और कानून आदि को ही भारत का विकास कहा जा रहा है । जबकि यह डाक्यूमेंट्स और कानून आदि पूंजीवादी व्यवस्था की जरूरत है आप पर नियंत्रण के लिये ।कोई विकास नही । सनातन व्यवस्था में क्योंकि को डाक्यूमेंट्स आदि की जरूरत नहीं पड़ती थी इसलिये यह आधार कार्ड आदि नहीं थे । सनातन व्यवस्था में न्याय देने के लिये ऋषि मुनियों द्वारा दिये गए मार्गदर्शक सिद्धान्त थे जिसमें रहकर व्यक्ति को नियंत्रित किया जाता था । ना कि आजकल की तरह ऐसे कानून थे जिसमें केवल निर्दोष ही फसता है । दोषी को कुछ नहीं होता । अगर आपने भी अपनी जिंदगी ठीक करनी है तो हमे सनातन व्यवस्था की तरफ लौटना ही होगा । और पछमी पूंजीवादी व्यवस्था को अलविदा कहना होगा । धन्यवाद

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें