सनातन धर्म का ह्रास क्यों हो रहा है ।
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वर्तमान पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल उपभोग की अवधारणा पर टिका हुआ है । पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार का सारा ध्यान इस तरफ लगा रहता है कि consumption अधिक से अधिक हो । इसलिये दिन रात टेलीविजन पर प्रोडक्ट्स के भजन एडवरटाइजिंग के रूप में चलते रहते है आपको अधिक से अधिक कर्जा देने की सरकार की कोशिश रहती है तांकि आप कर्ज़े लेकर अधिक से अधिक चीज़े खरीदो तांकि आप कर्ज़े चाहे जितना मर्ज़ी चढ़ता रहे उपभोग अधिक से अधिक होना चाहिए । यह अधिक से अधिक उपभोग की अवधारणा अब्राहिमक रिलिजन (यहूदी ,ईसाई ,इस्लाम )की केवल एक जन्म की थ्योरी पर टिकी हुई । क्योंकि इन religion के अनुसार आपका केवल एक जन्म होना है इसलिये अधिक से अधिक एन्जॉय करो यानि उपभोग करो । इन मजहबों का मूल मंत्र है 'जिंदगी मिलेगी ना दोबारा'
दूसरी तरफ सनातन धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है । सनातन धर्म के अनुसार आपको अगर बार बार जन्म के बंधन से मुक्त होना है तो आपको त्याग का मार्ग अपनाना पड़ेगा । जब तक आपकी कोई इच्छा शेष है आपको बार बार जन्म मिलता रहेगा ।
इस तरह अर्थव्यवस्था का कोई भी मॉडल धर्म की मान्यताओं में से निकला होता है । आजकल का पूंजीवादी मॉडल अब्राहिमक मजहबों की मान्यताओं के अनुसार draft किया है । लेकिन यह पूंजीवादी मॉडल सनातन की त्याग की अवधरणा के बिलकुल विपरीत है । चाणक्य के अनुसार धर्मस्य मूल : अर्थ । अर्थात धर्म का मूल अर्थतंत्र है । इसलिये जैसा अर्थतंत्र होगा धर्म भी वैसा ही होगा । इसीलिए आजकल सनातन धर्म का ह्रास हो रहा है क्योंकि आजकल इंडिया में प्रचलित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल सनातन धर्म के बिल्कुल विपरीत है । जोकि उपभोग को बढ़ावा देता है जबकि सनातन त्याग की अवधारणा पर टिका हुआ है । इसलिए जब तक हम पूँजीवाद की जूली उतार कर नहीं फेंकते और सनातन अर्थव्यवस्था के मॉडल को नहीं अपनाते तो नाही भारत कभी विश्व गुरु बनेगा औऱ ना ही सनातन की धर्म ध्वजा विश्व में लहराएगी ।
जय सनातन जय भारत ,जय सनातन भारत
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वर्तमान पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल उपभोग की अवधारणा पर टिका हुआ है । पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार का सारा ध्यान इस तरफ लगा रहता है कि consumption अधिक से अधिक हो । इसलिये दिन रात टेलीविजन पर प्रोडक्ट्स के भजन एडवरटाइजिंग के रूप में चलते रहते है आपको अधिक से अधिक कर्जा देने की सरकार की कोशिश रहती है तांकि आप कर्ज़े लेकर अधिक से अधिक चीज़े खरीदो तांकि आप कर्ज़े चाहे जितना मर्ज़ी चढ़ता रहे उपभोग अधिक से अधिक होना चाहिए । यह अधिक से अधिक उपभोग की अवधारणा अब्राहिमक रिलिजन (यहूदी ,ईसाई ,इस्लाम )की केवल एक जन्म की थ्योरी पर टिकी हुई । क्योंकि इन religion के अनुसार आपका केवल एक जन्म होना है इसलिये अधिक से अधिक एन्जॉय करो यानि उपभोग करो । इन मजहबों का मूल मंत्र है 'जिंदगी मिलेगी ना दोबारा'
दूसरी तरफ सनातन धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है । सनातन धर्म के अनुसार आपको अगर बार बार जन्म के बंधन से मुक्त होना है तो आपको त्याग का मार्ग अपनाना पड़ेगा । जब तक आपकी कोई इच्छा शेष है आपको बार बार जन्म मिलता रहेगा ।
इस तरह अर्थव्यवस्था का कोई भी मॉडल धर्म की मान्यताओं में से निकला होता है । आजकल का पूंजीवादी मॉडल अब्राहिमक मजहबों की मान्यताओं के अनुसार draft किया है । लेकिन यह पूंजीवादी मॉडल सनातन की त्याग की अवधरणा के बिलकुल विपरीत है । चाणक्य के अनुसार धर्मस्य मूल : अर्थ । अर्थात धर्म का मूल अर्थतंत्र है । इसलिये जैसा अर्थतंत्र होगा धर्म भी वैसा ही होगा । इसीलिए आजकल सनातन धर्म का ह्रास हो रहा है क्योंकि आजकल इंडिया में प्रचलित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल सनातन धर्म के बिल्कुल विपरीत है । जोकि उपभोग को बढ़ावा देता है जबकि सनातन त्याग की अवधारणा पर टिका हुआ है । इसलिए जब तक हम पूँजीवाद की जूली उतार कर नहीं फेंकते और सनातन अर्थव्यवस्था के मॉडल को नहीं अपनाते तो नाही भारत कभी विश्व गुरु बनेगा औऱ ना ही सनातन की धर्म ध्वजा विश्व में लहराएगी ।
जय सनातन जय भारत ,जय सनातन भारत
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