गेंहू का षडयंत्र ,शुगर रोग और हलाल आटा
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हरित क्रांति (विनाश) से पहले तक भारतीय किसान गेहूँ की देशी किस्में जैसे शरबती गेंहू आदि उगाते थे । यह गेहूँ की देशी किस्में कद में ऊँची होती थी । इसी समय अमेरिका आदि देशों के पास जो द्वितीय विश्व युद्घ में बारुद में प्रयोग होने वाले रसायन जैसे नाइट्रोजन आदि के निस्तारण की समस्या उत्पन्न हुई । वहां के नकली वैज्ञनिकों के सुझाव पर इनको fertilizer में बदल दिया गया । औऱ भारत जैसे देशों के नकली विज्ञानिको ने उत्पादन बढ़ने के लिये सरकार को इन केमिकल फेर्टिलिज़र्स के प्रयोग की सलाह दी गयी । लेकिन गेंहु की देशी किस्में जैसे शरबती आदि में जब इन केमिकलों को डाला गया तो इनके प्रयोग से वह झुक गईं और इन देशी किस्मो ने इन केमिकलों को नकार दिया । तब नकली विज्ञान ने गेहूं की ऐसी नकली किस्में विकसित की जो कद में छोटी थी और जो बिना केमिकल फर्टिलाइजर के बढ़ती नहीं थी । इस नकली गेंहूँ की क़िस्म को dwarf अर्थात बौना कहा गया । agriculture यूनिवर्सिटी के नकली वैज्ञानिकों ने रिश्वत लेकर नकली गेंहूँ की इस dwarf बौनी किस्म को किसानों के बीच जोर शोर से प्रचारित किया । जो बिना केमिकल के नहीं होती थीं ।
मधुमेह (sugar) रोग
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Dwarf गेहूँ की क़िस्म का आटा बहुत ही मुलायम होता है । इसके आटे में बनी रोटी बहुत नरम होती है । एक आम इंसान यह रोटियाँ पांच छह की संख्या में आराम से खा लेता है फिर भी एक दो घण्टे बाद फिर भूख लगने लगती है । इस dwarf क़िस्म के आटे के नरम होने की पीछे एक कारण इसमें ग्लूटीन नामक पदार्थ की अधिकता है इसके कारण मोटापा अधिक होता है क्योंकि यह पेट में जाकर चिपक जाता है । इसलिए अपने देखा होगा कि पंजाब के लोग आम भारत के लोगों से अधिक मोटे होते हैं । इस dwarf नामक दैत्य ने sugar नाम की बीमारी घर घर पहुँचा दी है ।तभी अमेरिका की 25% आबादी sugar के रोग से पीड़ित है ।
दूसरी और गेहूं के देशी क़िस्म जैसे शरबती आदि का आटा ठोस होता है । अपनी आंखों के सामने पिसवाएं शरबती गेंहु से बने आटे की रोटी आप 2 से अधिक नहीं खा सकते । और एक बार अपने दो रोटी खा ली आपको जल्दी भूख नहीं लगेगी । क्योंकि इसमें ग्लूटीन की मात्रा बैलेंस होती है । इसलिये मोटापा और sugar रोग आपके पास नहीं फटकते । वर्तमान में यह गेहूं अधिकतर मध्यप्रदेश में होता है ।
शरबती गेहूं का अट्टा कैसे प्राप्त करें
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सबसे पहले अपने किसी जान पहचान के दुकानदार या किसान से यह गेंहु सीधा खरीद लें । पंजाब में यह 30 रुपये किलो पड़ता है । उसके बाद अपनी आँखों के सामने किसी देशी चक्की से पिसवा लें । चक्की बैल चलित हो तो अति उत्तम ,क्योंकि बैल चलित चक्की की speed कम होने से शरबती गेहूँ के गुण नष्ट नहीं होते । गेहूं की पिसाई 3 रुपये किलो पड़ेगी ।
कोई भी हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त पिसा हुआ आटा चाहे वो आशीर्वाद का हो या किसी और ब्रांड का , आपको वह क्वालिटी नहीं दे सकता जो आपको अपना खुद का पिसवाया आटा दे सकता । टेलीविजन पर चाहे कोई कंपनी कितना ही दावा कर ले कि कंपनी के मालिक के माँ ने एक एक गेंहू का दाना आपके लिये खेत में जाकर तोड़ा है । फिर कंपनी के मालिक ने अपने हाथों से चक्की चलाकर पिसा है ।
यह था आटे का षड्यंत्र ,जिससे आपकी सेहत से खिलवाड़ किया गया । आप इसको रोक सकते हैं । लेकिन किसी भी पिसे हुए आटे से परहेज करें ।
और अधिक जानकारी के लिए हमारा ब्लॉग पढें
Sanatanbharata.blogspot.com
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हरित क्रांति (विनाश) से पहले तक भारतीय किसान गेहूँ की देशी किस्में जैसे शरबती गेंहू आदि उगाते थे । यह गेहूँ की देशी किस्में कद में ऊँची होती थी । इसी समय अमेरिका आदि देशों के पास जो द्वितीय विश्व युद्घ में बारुद में प्रयोग होने वाले रसायन जैसे नाइट्रोजन आदि के निस्तारण की समस्या उत्पन्न हुई । वहां के नकली वैज्ञनिकों के सुझाव पर इनको fertilizer में बदल दिया गया । औऱ भारत जैसे देशों के नकली विज्ञानिको ने उत्पादन बढ़ने के लिये सरकार को इन केमिकल फेर्टिलिज़र्स के प्रयोग की सलाह दी गयी । लेकिन गेंहु की देशी किस्में जैसे शरबती आदि में जब इन केमिकलों को डाला गया तो इनके प्रयोग से वह झुक गईं और इन देशी किस्मो ने इन केमिकलों को नकार दिया । तब नकली विज्ञान ने गेहूं की ऐसी नकली किस्में विकसित की जो कद में छोटी थी और जो बिना केमिकल फर्टिलाइजर के बढ़ती नहीं थी । इस नकली गेंहूँ की क़िस्म को dwarf अर्थात बौना कहा गया । agriculture यूनिवर्सिटी के नकली वैज्ञानिकों ने रिश्वत लेकर नकली गेंहूँ की इस dwarf बौनी किस्म को किसानों के बीच जोर शोर से प्रचारित किया । जो बिना केमिकल के नहीं होती थीं ।
मधुमेह (sugar) रोग
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Dwarf गेहूँ की क़िस्म का आटा बहुत ही मुलायम होता है । इसके आटे में बनी रोटी बहुत नरम होती है । एक आम इंसान यह रोटियाँ पांच छह की संख्या में आराम से खा लेता है फिर भी एक दो घण्टे बाद फिर भूख लगने लगती है । इस dwarf क़िस्म के आटे के नरम होने की पीछे एक कारण इसमें ग्लूटीन नामक पदार्थ की अधिकता है इसके कारण मोटापा अधिक होता है क्योंकि यह पेट में जाकर चिपक जाता है । इसलिए अपने देखा होगा कि पंजाब के लोग आम भारत के लोगों से अधिक मोटे होते हैं । इस dwarf नामक दैत्य ने sugar नाम की बीमारी घर घर पहुँचा दी है ।तभी अमेरिका की 25% आबादी sugar के रोग से पीड़ित है ।
दूसरी और गेहूं के देशी क़िस्म जैसे शरबती आदि का आटा ठोस होता है । अपनी आंखों के सामने पिसवाएं शरबती गेंहु से बने आटे की रोटी आप 2 से अधिक नहीं खा सकते । और एक बार अपने दो रोटी खा ली आपको जल्दी भूख नहीं लगेगी । क्योंकि इसमें ग्लूटीन की मात्रा बैलेंस होती है । इसलिये मोटापा और sugar रोग आपके पास नहीं फटकते । वर्तमान में यह गेहूं अधिकतर मध्यप्रदेश में होता है ।
शरबती गेहूं का अट्टा कैसे प्राप्त करें
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सबसे पहले अपने किसी जान पहचान के दुकानदार या किसान से यह गेंहु सीधा खरीद लें । पंजाब में यह 30 रुपये किलो पड़ता है । उसके बाद अपनी आँखों के सामने किसी देशी चक्की से पिसवा लें । चक्की बैल चलित हो तो अति उत्तम ,क्योंकि बैल चलित चक्की की speed कम होने से शरबती गेहूँ के गुण नष्ट नहीं होते । गेहूं की पिसाई 3 रुपये किलो पड़ेगी ।
कोई भी हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त पिसा हुआ आटा चाहे वो आशीर्वाद का हो या किसी और ब्रांड का , आपको वह क्वालिटी नहीं दे सकता जो आपको अपना खुद का पिसवाया आटा दे सकता । टेलीविजन पर चाहे कोई कंपनी कितना ही दावा कर ले कि कंपनी के मालिक के माँ ने एक एक गेंहू का दाना आपके लिये खेत में जाकर तोड़ा है । फिर कंपनी के मालिक ने अपने हाथों से चक्की चलाकर पिसा है ।
यह था आटे का षड्यंत्र ,जिससे आपकी सेहत से खिलवाड़ किया गया । आप इसको रोक सकते हैं । लेकिन किसी भी पिसे हुए आटे से परहेज करें ।
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