World bank ने भारत की स्वदेशी पेडों कैसे औऱ क्यों नष्ट की ?


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मित्रो आजकल आप जब सड़कों के किनारों पर देखते हो तो आप पाओगे कि सड़कों के किनारों पर सरकार केवल विदेशी और ऐसे पेड़ रोपित करवाती है  जिसको ना तो आप औषधि के रूप में प्रयोग कर सकते हैं ,ना ही वह कोई फल वाले पेड़ हैं ,ना ही उसमें कोई इमारती लकड़ी मिलती है । इनमें से अधिकतर विदेशी नस्ल के गुणरहित पेड़ हैं । सरकार द्वारा इन पेड़ों की बिजाई ही क्यों की जाती है ? सरकार का उद्देश्य क्या है इन बेकर पेड़ों के पीछे ?

 आज से 50 वर्ष पहले सड़कों के किनारे आपने आप उगने वाले स्वदेशी औषधीय पेड़ों जैसे  नीम बरगद पीपल आदि, फलदार पेड़ों  जैसे आम जामुन ,बेर  आदि, इमारती लकड़ी देने वाले पेड़ जैसे टाहली , सागवान आदि की भरमार होती थी । इन स्वदेशी और गुणों से भरपूर पेड़ों से आम व्यक्ति को उपचार के लिये आयुर्वेदिक दवाइयां , खाने के लिए फल और घर के लिये लकड़ी आदि मुफ्त में प्रकृति से उपलब्ध थीं।
फिर भारत सरकार ने world bank ,IMF आदि से मिलकर भारत के विकास की योजना बनाई और  भारत सरकार को world bank ,IMF आदि ने वरक्षारोपन के सस्ता कर्ज़  का जाल उपलब्ध करवाया और साथ में उन पेड़ों की लिस्ट पकडाई जिनको  भारत सरकार के FOREST DEPARTMENT द्वारा रोपित किया जाना था । और इस तरह वर्ल्ड बैंक IMF आदि ने भारत के स्वदेशी गुण युक्त पेड़ों के स्थान पर गुण रहित विदेशी पेड़ों को REPLACE कर दिया ।
World bank और IMF की इसके पीछे साज़िश क्या थी ?
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1. आयुर्वेद को समाप्त करके एलोपैथी की स्थापना करना ।
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आयुर्वेद के लिये जरूरी जड़ी बूटियां जो पहले FREE में मिलती थी अब वह मोटे पैसे खर्च कर के भी उपलब्ध नहीं हैं । इसलिये धीरे धीरे आयुर्वेद को RAW MATERIAL मिलना बंद हो गया । औऱ उसका स्थान एलोपैथी ने ले लिया । जिसकी सारी दवाइयों पर बड़ी बडी mnc का एकाधिकार है । और यह बड़ी बड़ी MNC आगे WHO ,world bank ,IMF को आगे फंडिंग करती हैं । उदारहण के लिए WHO को BILL GATES लगभग 20% अनुदान देता है । यह बिल गेट्स कई बड़ी pharmaceutical companies का मालिक है ।
2. Fruit juice बनाने वाली कंपनियों के लिये मार्किट तैयार करना ।
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सनातन भारत में जब भारत सरकार और world
 bank आदि ने मिलकर भारत का विकास नहीं किया था , तब सब भारतीयों को ताज़े फल औऱ ताज़ा फ्रूट जूस  मुफ्त में उप्लब्ध थे । अब जैसे जैसे भारत का उपरोक्त तरीके से विकास हो रहा है आपको 6 महीने पुराना जूस जिसमे 85% पानी और chemical हैं ,real ,natural आदि के नाम पर बेचा जा रहा है । जिसको पीकर आप plastic की बोतल कुड़े में फ़ैंक देते हो और  विकास  के गुण गाते हो ।
3. इमारती लकड़ी का बज़ारीकरण करना ।
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पहले आपको भवन निर्माण के लिये स्थानीय स्तर पर ही उत्तम क्वालिटी की लकड़ी मुफ्त के भाव में मिल जाती थी । अब भवन निर्माण करने के लिये लकड़ी पर बड़ी बड़ी पूँजीवादी कंपनियों का एकाधिकार है । यह लकड़ी आजकल जंगलों से या पहाड़ों से बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा काटी जाती हैं जिनको सरकार लाईसेंस देती है । इस तरह बड़े पैमाने पर deforestation हो रहा है । इसको कहते हैं वैज्ञानिक उन्नति ,विकास ,gdp growth आदि ।

उपरोक्त सारी बातों को साबित करने के लिए मै
 आपको एक आजकल की घटना का उल्लेख करूँगा ।
जम्मू और कश्मीर सरकार ने april 2020 में 42000 rusian पॉपुलर को काटने का आदेश दिया है । क्योंकि इन रूसी पॉपुलर के पेड़ों से अप्रैल मई के महीने एक तरह की रूसी गिरती है जिससे वहां के लोगों को एलर्जी होती है । यह बात वहां की सरकार और court भी मानती है । यह रशियन पॉपुलर कश्मीर में नहीं होता था । यह पेड़ विदेशी पेड़ है जिसको वर्ल्ड बैंक के कर्ज के जाल में फंसकर सरकार द्वारा कश्मीर में रोपित किया गया है । वर्ल्ड बैंक ने कश्मीर के अपने स्वदेशी पेड़ों के स्थान पर इन russian पॉपुलर के लगभग 1.5 करोड़ पेड़ जम्मू कश्मीर सरकार से रोपित करवाए हैं । जिनसे यह सारी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं ।

इस तरह आपने देखा क्यों और कैसे world bank ,imf और who मिलकर किसी देश की वैज्ञानिक तरक्क़ी करते हैं । जो चीज़ आपको फ्री में मिलती थी वह जब आपको मोटे पैसे खर्च करके मिलती है तो देश की जीडीपी बढ़ती है ,विकास होता है ,ग्रोथ होती है ।
जय जीडीपी ,जय विकास , जय नकली विज्ञान
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