मोदी जी को आखिर आयुर्वेदिक काढ़े का सेवन करने के लिए क्यों कहना पड़ा


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अगर हैंड सैनिटाइजर के अतिरिक्त भारत सरकार लोगों को  गिलोय ,तुलसी ,अदरक ,हल्दी आदि युक्त आयुर्वेदिक काढ़ा वितरित करती । तो कम्युनिस्ट वायरस को काफी हद तक काबू किया जा सकता है । लेकिन भारत सरकार को केवल एलोपैथी पर विश्वास है । सरकार अपने हेल्थ बजट का 98% एलोपैथी पर खर्च करती है और आयुर्वेद को समाप्त करने के लिये नए नए हथकण्डे अपनाये जाते हैं । नीम पीपल और अन्य औषधि पेड़ों के स्थान पर विदेशी गुणरहित पेडों को बीजा जाता है । आयुर्वेद को झोला छाप की संज्ञा दी जाती है । आयुर्वेद के लिये आवश्यक संस्कृत का मजाक उड़ाया जाता है । जिस एलोपैथी पर सरकार को पूरा विश्वास था अब उसने हाथ खड़े कर दिए हैं । ले देकर मुश्किल से एक दवा HCQ ढूंढ़ी गई है जो मलेरिया की दवा है । इसका क्या कुछ प्रभाव होता है या नही अभी पता नहीं । अन्धेरे में तीर छोड़े जा रहें हैं । यहां एक तरफ एलोपैथी का दिन रात गुणगान किया जा रहा है दूसरी तरफ आयुर्वेदिक दवा की दुकानों पर ताले जड़ दिए गए हैं । एलोपैथी में अधिकतर वायरस जनित बीमारी की कोई दवा नही । जैसे Aids की बीमारी जोकि HIV नामक वायरस से होती है उसकी कोई भी दवा आज 30 सालों बाद भी  एलोपैथी से नही बन सकी । swine flu ,bird flu ,zika ,niph ,ebola ,sars ,mers यह सब वायरस जनित बीमारियां हैं । यह सब कम से कम 10 से 20 वर्ष पुरानी हैं। इसके इलाज के लिए एलोपैथी से आज तक भी कोई वैक्सीन नही बन सकी । और दूसरी बात जिस पूंजीवादी animal farming के कारण हर रोज़ नए नए वायरस यह नकली विज्ञान दे रहा उसी एनिमल फार्मिंग को विकास की चाशनी में डूबा कर बेचा जा रहा है । जिन चमगादडों की और पैंगोलिन की animal farming से यह कम्युनिस्ट वायरस कोरोना पैदा हुआ उसके खिलाफ किसी की जुबान नहीं खुल रहीं । आजकल विश्व मे जितनी भी बीमारियां है उनमें से 60 प्रतिशत पूंजीवादी animal farming के कारण हैं जिसे नकली विज्ञान ने दुनिया को दिया है । बाबजूद इसके ANILMAL FARMING ,जैसे पोल्ट्री फार्मिंग , FISH FARMING को बढ़ावा दिया जा रहा SUBSIDY दी जा रही है इन पर कोई GST भी नहीं लगता ।
इसलिए मुझे नहीं लगता जबतक वायरस के SOURCE पूंजीवादी ANIMAL फार्मिंग को खत्म नही किया जाता इन बीमारियों पर LOCK DOWN जैसे मौके के उपाय कुछ अंकुश लगाएंगे ।
दूसरा अगर विश्व मे किसी एक स्थान पर कोई बीमारी शुरू होती है तो GLOBALISATION  के कारण यह बीमारियां बहुत जल्द दूसरे देशों में फैल जाती हैं  । तीसरा इन बीमारियों की रोकथाम में बिल्कुल फैल एलोपैथी के स्थान पर जब तक आयुर्वेद चिकित्सा की शरण मे जब तक विश्व नहीं जाएगा तब तक इनका इलाज कठिन है ।
अब प्रधानमंत्री जी को भी एलोपैथी की विफलता का अहसास हो रहा है इसलिए उन्होंने ने आयुर्वेदिक काढ़ा पीने की सलाह दी है ।
प्रधानमंत्री जी जब तक आप आयुर्वेद के ECO SYSTEM को नहीं ठीक करेंगें तब तक आजकल जो आयुर्वेद चल रहा है वह भी विश्व का कुछ भला नही कर सकेगा । आयुर्वेद के ECO SYSTEM के पुनर्निर्माण के लिये और बीमारियों की रोकथाम के लिये आपको निम्नलिखित उपाय करने पड़ेगें ।
1. सबसे पहले आपको पूंजीवादी एक फ़सली खेती के स्थान पर सनातन मिश्रित खेती को शुरू करवाना पड़ेगा ।जिससे आयुर्वेद के लिये जरूरी जड़ी बूटियां मिल सकें ।
2. GLOBALIZATION की जगह LOCALIZATION को अपनाना पड़ेगा । जिससे बीमारियों के फैलाव पर रोकथाम लग सके ।
3. आयुर्वेद की सनातन गुरु शिष्य परंपरा से जो असली नाड़ी वैद्य तैयार होते थे उनको डिग्री और examination के मक्कड़जाल से मुक्त करना पड़ेगा ।
4. हेल्थ बजट में 98% बजट केवल एलोपैथी को दिया जाता है उसके स्थान पर सबको बराबर बजट और मान्यता देनी पड़ेगी ।
5. पूंजीवादी mass production के concept animal farming पर पाबंदी लगानी पड़ेगी । जिस से नए नए वायरस ना पैदा हो। जिनकी जीभ meat के लिये लप लपाये वह आप मुर्गियाँ ,बकरा पाल लेगा ।
6. World bank के साथ मिलाकर सरकार जो नीम पीपल आदि पेड़ों के स्थान पर जो विदेशी हानिकारक पेड़ों को लगाया जा रहा है उसके स्थान पर स्थानीय वृक्ष लगने पड़ेगें ।
अगर आप ने कोई उपाय नहीं किये तो प्रकृति को दुनिया को सीधे रास्ते पर लाना आता है । अभी तो शुरूआत है । नकली विज्ञान और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मॉडल के कारण जो ध्रूवों पर जमी pramaforst पिघल रही है । उसमें प्लेग एंथ्रेक्स जैसे वायरस दवे पड़े हैं जो जल्द ही नकली विज्ञान और पूँजीवाद को उसकी औकात दिख देंगे ।
मिश्रित खेती ,पूंजीवादी खेती localization आदि के बारे में अधिक जानने के लिये हमारा ब्लॉग पढें sanatanbharata.blogspot.com

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