स्वदेशी Sanatan अर्थव्यवस्था में जो चीज़ फ्री में उपलब्ध थीं वह आज कल के पूंजीवादी मॉडल में पैसे देकर प्लास्टिक की पैकिंग में एयरकंडीशनर शोरूम में बेची जाती हैं । और विकास के गुण गये जातें हैं । पहले पूंजीवादी सिस्टम द्वारा एक समस्या खड़ी की जाती है । फिर उसके हल के लिये नई समस्या का अविष्कार किया जाता है । फिर विकास का ढोल पीटा जाता है । उदहारण के लिये पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम जैसे रिफाइंड आयल ,चीनी मिल ,शराब आदि की बड़ी बड़ी पूंजीवादी मिलों द्वारा पहले पानी गंदा किया जाता है । इस समस्या के समाधान के लिये mineral water जिसमें कोई मिनरल नही होता पलास्टिक की बोतलों में भर भर कर आधुनिकता के नाम पर बेचा जाता है । और विकास की डुगडुगी बजायी जाती है । फिर इस गंदे 4-5 महीने केमिकल युक्त पानी से जिससे हड्डियां कमजोर होने लागत हैं और कई बीमारियां उत्पन्न होने लगती है उसके इलाज के नाम पर आपको allopathy के एंटीबायोटिक का चूर्ण चटाया जाता है और आपको बताया जाता जाता है कि देखो medical science ने कितनी तरक्की कर ली । आपके पूर्वज तो कितने बैकवर्ड थे । इस तरह पूंजीवाद का दुष्चक्र चलता रहता है ।
जो निर्मल जल सब अमीर गरीब के लिये सनातन भारत में फ्री में उपलब्ध था उसको अब आप पैसे देकर भी खरीद नही सकते । सनातन प्रोसेसिंग units जैसे तेल के कोहलु, देशी दारू की भट्टी ,गुड़ के कुल्हड़ आदि पूंजीवादी प्रोसेसिंग units जैसे refind oil ,sugar industry, और शराब की फैक्टरियों की तरह ना तो हवा गन्दी करते ,ना पानी । अब आप ही मूल्यांकन करें कि भारत को कौन सा मॉडल अपनाना चाहिये । सनातन और पूंजीवाद के तुलनात्मक अध्ययन के लिये हमारा ब्लॉग पढें

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