मिश्रित खेती से कैसे पराली कि समस्या से निजात पाई जा सकती है ?
1.आजकल की पूंजीवादी एक फसली खेती में सारे क्षेत्र में और सारे किसान एक ही तरह की फसल बीजते हैं । जैसे कि पंजाब में गेहूं और धान की फसल होती है ।गेहूं की फसल अधिकतर अप्रैल के महीने में आ जाती है। गेहूं की फसल से जो भूसी प्राप्त होती है उसको चारे में मिलाकर प्रयोग किया जाता है। धान की अधिकतर फसल अक्टूबर नवंबर के महीने में आती है । पंजाब और हरियाणा में धान की पराली को पशुओं के चारे में प्रयोग नहीं किया जाता । इसलिए किसानों द्वारा पराली को नष्ट करने के लिए पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है जिससे बहुत धूआं उत्पन्न होता है। इस धूयें के कारण पंजाब हरियाणा चैम्बर में बदल जाते हैं। पराली में लगी आग के कारण कई जीव जन्तु इसमें जिन्दा जल जाते हैं कई पशू पक्षियों के नवजात बच्चे इनमें जिन्दा जल जातें हैं । तभी आपने देखा होगा कि आजकल कई पक्षी जैसे कौए आदि लुप्तप्राय हो गए हैं । जबकि सनातन मिश्रित खेती में पराली की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि किसान किसान मिश्रित खेती में गेहूं धान के अतिरिक्त अन्य फसलें जैसे दालें ,सरसों ,मक्का ,जों, बाजरा , जड़ी बूटियां ,फल सब्जियां आदि बीजता है । जोकि अलग अलग समय पर आती हैं ।
2.क्योंकि पूंजीवादी खेती में सारे किसानों की फसल साल में केवल दो बार आती है जैसे कि पंजाब हरियाणा में अधिकतर किसान गेहूं और धान दो ही फसल बीजते हैं और लगभग सारा गेहूं अप्रैल में और धान ओक्टुबर में आ जाता है और बिजाई भी लगभग दो महीने चलती है जिस कारण खेती के लिए मजदूरों की कमी हो जाती है | इन मजदूरों की कमी के चलते किसानों को धान की फसल combine से काटनी पड़ती है । अगर फसल को हाथ से काटा जाए को जड़ से काटा जाता है लेकिन combine केवल ऊपर ऊपर से काटती है जिस कारण बाकि काफी अवशेष बच जाता है । क्योंकि पूंजीवादी एक फसाली खेती में सारी फसल एक ही समय में आती है इस कारण मजदूरों कि कमी के कारण और मजदूरी मंहगी होने के कारण किसानों मजबूरी में पाराली को आग के हवाले कर देते हैं ।
3.दूसरी तरफ हमारे पूर्वज मिश्रित खेती करते थे | सारा साल खेती में कभी मजदूरों की कमी नहीं होती थी | किसानो को इस कारण महँगी मशीनरी खरीदनी नहीं पढ़ती थी और किसान क़र्ज़ से बचा रहता था | मजदूरों को भी सारा साल काम मिलता रहता था | लेकिन आज कल की पूंजीवादी खेती में मजदूरों को वर्ष में केवल मुश्किल से चार पांच महीने काम मिलता है मजबूरन खेत मजदूर को गांवों पलयन करना पड़ता है और यह खेत मजदूर किसी शहर में किसी गन्दी बस्ती में अपनी जिन्दगी बहुत कष्ट में गुजारते हैं । इस तरह पूंजीवादी एक फ़सली खेती के कारण urbanization की समस्या उत्पन्न हो जाती है ।
4. पराली को आग के हवाले करने के कारण किसानों को पशु चारे के लिए भूसी प्राप्त नहीं होती । इस कारण किसानों को पशुओं के लिए सरसों की खल ,कैटल फीड ,चने के छिलके आदि को बाजार से खरीदना पड़ता हैं ।जिस कारण दूध के उत्पादन की लागत बहुत ही बढ़ जाती है ।इस कारण धीरे धीरे दूध का उत्पादन और दूध की गुणवत्ता कम हो रही है। पहले भारत में सनातन वैदिक मिश्रित खेती होती थी एक किसान अपने खेत में कई कई फसलें बीजता था , और ये फसलें अलग अलग समय पर कटाई के लिए तैयार होती थी ।जो खेत काट दिया जाता था , उसमें गाय , भैंस,बकरी, भेड़ों ,बैल आदि को चलने लिए छोड़ दिया जाता था । फिर दूसरे खेत की कटाई शुरू हो जाती थी तो गाय आदि को चरने के लिए दूसरे खेत में छोड़ दिया जाता था ।गाय आदि वहां पर फसल के बचे हुए अवशेष खाकर गोबर मल मूत्र आदि खेत में ही छोड़ देते थे ।जिस कारण खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती थी और किसानों को बाहर से कोई भी खल, कैटल फीड आदि भी नहीं खरीदने पढ़ते थे। गायों को भी अलग अलग तरीके की जड़ी बूटियां और फसलें खाने को मिलती थी और वह आजकल की तरह समय खूंटे से बंधी नहीं होती थी। इस कारण गाय भैंस आदि बहुत ही उत्तम क्वालिटी का दूध देती थी । इसके अतिरिक्त गाय आदि जानवरों की सेहत भी बहुत अच्छी रहती थी। तभी हमारे देश में दूध दही की नदियां बहती थी । सनातन भारत में दूध बेचना पाप समझा जाता था ।लेकिन आजकल की पूंजीवादी खेती के कारण , अच्छी क्वालिटी का दूध आप किसी भी कीमत पर ख़रीद नहीं सकते ।
5.इस तरह आपने देखा सनातन भारत में दूध क्यों निशुल्क उपलब्ध था । अगर हम सनातन वैदिक जैविक मिश्रित खेती की तरफ पुनः लौट चलें । तो पराली समस्या का अंत हो जाएगा और भारत में दूध दही की भी कोई कमी नहीं रहेगी।
6.अंत में हम जानने की कोशिश करते हैं कि किसान ने वैदिक मिश्रित खेती को छोड़ कार आजकल की पूंजीवादी खेती करना क्यों शुरू कर दिया | इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार दोबारा दिया जाने वाला नुयुनतम समर्थन मूल्य (MSP) | नुयुनतम समर्थन मूल्य किसान को किसी एक ही फसल लगातार बीजने पर मजबूर करता है | जैसे पंजाब में केवल गेहूं और धान के MSP के कारण किसान को गेहूं और धान बोने पर मजबूर होना पड़ता है | और किसी फसल की सरकार दुबारा खरीद ना होने के कारण किसान लगातार बार बार बोही फसल बीजता है | किसान को समझना पड़ेगा कीMSP सरकार किसानो को नहीं बल्कि पूंजीपति लोगो को देती है ताकि किसान मिश्रित खेती से दूर रहे और किसान को उर्वरक ,बीज , आदि बाजार से खरीदने पड़े | सरकार अगर किसानो का भला चाहती है तो सरकार को चाहिए जितनी सब्सिडी वह किसानों पर 1 साल में खर्च करती है किसानों के खातों में सीधा ट्रांसफर करें जैसे कि मान लो एक किसान के हिस्से में 10000 रुपए मासिक आते हैं तो बारको चाहिए सरकार को चाहिए कि ₹10000 महीना किसान के खाते में सीधा ट्रांसफर करें और फालतू में किसान को मजबूर ना करें कि वह वही फसलें दीजिए जिससे की सारी सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर हो जाए जैसे कि आजकल की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर है
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