जीडीपी की सच्चाई
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मान लो एक शहर में 1000 सब्जी विक्रेता है। वह 1 साल में सब्जी बेचकर 2-2 लाख कमा लेते हैं ।लेकिन वे देश की जीडीपी में कोई भी योगदान नहीं देगें क्योंकि उनकी आय सरकार की किसी बही खाते मे दर्ज नहीं होती।
मान लो अगर उसी शहर में एक Reliance Fresh की दुकान खुलती है ,जो कि सब्जी भी बेचती है । धीरे धीरे वह दुकान 1000 सब्जी वालों को खत्म कर देती है ,और साल में 2000 लाख रुपया कमा लेती है ।तो देश की जीडीपी 2000 लाख रुपया बढ़ जाएगी।
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इस तरह हमने देखा की कैसे अगर बड़ी पूंजीवादी कंपनीज़ आमदनी बढ़ती है ,तो देश की जीडीपी ही बढ़ जाएगी ,और अगर गरीब की आमदन बढ़ती है तो जीडीपी कम हो जाएगी।
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यह जीडीपी का प्रोपेगेंडा पूंजीवादी Information Warfare की आंकड़ों की बाजीगरी है ,और कुछ भी नहीं। पूंजीवादी कंपनीज की आमदन के बढ़ने को विकास ,GDP Growth कहते हैं ।
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पूंजीवादी व्यवस्था, वह व्यवस्था है जो कि देश के सारे संसाधन और धन लूटकर चंद व्यक्तियों तक सीमित कर देती है। इसके विपरीत सनातन अर्थव्यवस्था यह यकीनी बनाती है कि देश के संसाधनों और धन की समान बांट हो
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मान लो एक शहर में 1000 सब्जी विक्रेता है। वह 1 साल में सब्जी बेचकर 2-2 लाख कमा लेते हैं ।लेकिन वे देश की जीडीपी में कोई भी योगदान नहीं देगें क्योंकि उनकी आय सरकार की किसी बही खाते मे दर्ज नहीं होती।
मान लो अगर उसी शहर में एक Reliance Fresh की दुकान खुलती है ,जो कि सब्जी भी बेचती है । धीरे धीरे वह दुकान 1000 सब्जी वालों को खत्म कर देती है ,और साल में 2000 लाख रुपया कमा लेती है ।तो देश की जीडीपी 2000 लाख रुपया बढ़ जाएगी।
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इस तरह हमने देखा की कैसे अगर बड़ी पूंजीवादी कंपनीज़ आमदनी बढ़ती है ,तो देश की जीडीपी ही बढ़ जाएगी ,और अगर गरीब की आमदन बढ़ती है तो जीडीपी कम हो जाएगी।
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यह जीडीपी का प्रोपेगेंडा पूंजीवादी Information Warfare की आंकड़ों की बाजीगरी है ,और कुछ भी नहीं। पूंजीवादी कंपनीज की आमदन के बढ़ने को विकास ,GDP Growth कहते हैं ।
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पूंजीवादी व्यवस्था, वह व्यवस्था है जो कि देश के सारे संसाधन और धन लूटकर चंद व्यक्तियों तक सीमित कर देती है। इसके विपरीत सनातन अर्थव्यवस्था यह यकीनी बनाती है कि देश के संसाधनों और धन की समान बांट हो
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