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अगर कोई अंग्रेजी का गलत उच्चारण करता है तो इसमें गलती अंग्रेजी की है उस व्यक्ति की नहीं। क्योंकि अंग्रेजी में जो आप बोलतें हैं वह लिखतें नहीं और जो आप लिखतें हैं वह बोलतें नहीं । विश्व में 54 पूर्ण ध्वनियां हैं जबकि अंग्रेजी में केवल 26 अक्षर हैं । इसीलिए सभी को इंग्लिश बोलने के लिये रट्टा लगाना पड़ता है जिसने जैसा रट्टा लगा लिया वह वैसे ही बोलेगा और लिखेगा । इसलिए अंग्रेजी के गलत उच्चारण पर आप शर्मिंदा ना हों , बल्कि उन कबीलों को शर्मिंदा होने का मौका दें जिन्होंने इस अपूर्ण भाषा का निर्माण किया है ।
हर बार good morning चिपकाने वालो ध्यान दो । ------- 1.अगर किसी के परिवार में किसी की मृत्यु हो गई हो और आगे से तुम ठोक दो good morning । सामने वाले पर क्या बीतेगी । 2. अगर तुम समझते हो कि good morning good evening करने से तुम्हारी नस्ल परिवर्तित हो जाएगी और तुम अंग्रेज बन जायोगे तो यह तुम्हारी भूल है । 3. अगर तुम समझते हो कि good morning bad morning करने से लोग तुम्हे पढ़ा लिखा या इंटेलीजेंट समझेंगे तो तुम्हें बता दूं कि आजकल लेबर वाले भी गुड मॉर्निंग , संडे , मंडे करने लगें हैं । 4. बाकि दिन रात में कब क्या बोलना है पता ही नहीं चलता । आजकल गुड मॉर्निंग आदि बोलने वाला बेवकूफ अधिक प्रतीत होता है। इसलिये गुड मॉर्निंग छोड़िए नमस्कार अपनाएं । जिसमें good morning से अधिक आत्मीयता झलकती है और गूढ़ अर्थ छिपे हुए हैं ।
बॉलीवुड की अधिकतर फिल्में ड्रग माफिया के पैसों से बनती हैं । इसलिए बॉलीवुड के भांड और वेश्ऐं वह सब करती हैं जो माफिया चाहता है । अगर किसी को लगता है कि बॉलीवुड के भांड या वेश्एं अपनी एक्टिंग के दम पर फिल्मों में कास्ट की जातीं हैं तो आपकी भूल है । माफिया के कहने पर बॉलीबुड की वेश्या अफसरों और नेताओं के बिस्तर गर्म करती है । दिशा पाटनी जो बॉलीवुड की बहुत बड़ी वेश्या है वह उध्दव ठाकरे के विस्तर गर्म करती है फिर उसको फ़िल्म मिलती है । संजय दत्त जो बॉलीवुड का बहुत बड़ा भड़बा था उसके घर से ak 47 निकली थीं जो दाऊद ने रखवाई थी । संजय दत्त भांड की यह सब करना मजबूरी था । नही तो उसको फिल्मे नहीं मिलती । अब यह आयर्न खान और शाहरूख खान यह सब भी नशे के कारोबार में लगे हुये हैं क्योंकि इनको फिल्मे लेनी होती हैं । अगर एक तगड़ा हाथ डाला जाए तो बॉलीवुड के 90% भांड और वेश्याएँ जेल में होंगी । फ़िल्म इंडस्ट्री एक गटर है और कुछ नहीं । कुछ लोग इनको अपना हीरो या आदर्श मानतें हैं ,जो कि बिलकुल गलत है । आप इनका मुजरा देखो लेकिन इनको अपना आदर्श मत बनाओ ।
हिन्दू धर्म को बचाने वाला लौह आवरण हिन्दू समाज व्यवस्था भी अब ढह चुकी है । भारत की धरती पर हिन्दू धर्म का अवसान अब निश्चित है । पहले हिंदुओं के पास से राजनीतिक सत्ता छीन ली गई मुरसमानो और ईसाइयों द्वारा । फिर कांग्रेस ने आज़ादी के बाद गुरुकुल व्यवस्था की जड़ों में तेल डाला गया । जिससे हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार करने वाली धर्म सत्ता छिन गई । परिणाम स्वरूप हिंदुओं के पास अपने धर्म के बारे में ज्ञान देने वाली प्रणाली समाप्त हो गई । और हिन्दू डेरे ,मत पन्थो आदि के पास जाने लगे । कभी सोचा है कि कोई मुरसमान कभी ब्रह्मकुमारी , साई ,राधास्वामी , निरंकारियों के डेरों में क्यों नही जाता । साई को भगवान का दर्जा हिन्दू सनातन धर्म के पतन का सबसे बड़ा चिन्ह है । अंत मे रह गई रही थी हिन्दू समाज व्यवस्था । जिसके लौह आवरण के कारण हिन्दू धर्म पिछले 1000 साल से सुरक्षित रहा । यह हिन्दू समाज व्यवस्था सनातन अर्थव्यवस्था के मॉडल के पतन के साथ आरंभ हुई । पिछले 30 वर्षों में स्नातसन अर्थव्यवस्था बिल्कुल मृतप्राय सी ही गई है । अब इसके कफन में आखिरी कील ठोकी जा रही है । जैसे ही हिंदू समाज का पतन हो जाएगा हि
जब से नारी मुक्ति आंदोलन की आड़ में भारतीय नारियों को चरित्र हीन बनाने का काम चला है । तबसे भारतीय नारियों को मिलने वाले सन्मान में बहुत कमी आ गई है । पहले बस गाड़ियों में लोग औरतों को देख कर लोग सीट छोड़ देते थे ऐसे नारी का सन्मान करने वाले भारतीय समाज को वामपंथियों को नारी आंदोलन चला कर इतना जलील किया कि भारतीय समाज ने नारी सन्मान करना छोड़ दिया । सनातन परिवार व्यवस्था में जब स्त्रियों को माहवारी आती थी तो उनका रसोई में प्रवेश करना वर्जित था तांकि इस समय में नारियों को आराम मिल सके । लेकिन वामपंथियों ने इसको लेकर सनातन धर्म को crticize करना शुरू कर दिया और पूंजीवादी कंपनियों ने periods में भी ना रुको, गधों की तरह काम करते रहो ,इसका नारा उछाला । इसका नुकसान किसको हुआ भारतीय नारी को । सनातन परिवार व्यवस्था में भारतीय नारी परिवार नामक संस्था की मुखिया थी । सब काम नारियों से पूछ कर किये जाते थे । रुपया पैसा , सोना आदि सब घर की औरतें संभालती थी । पैसा कमाकर लाने का दायित्व पुरुषों पर औऱ ध्यान पूर्वक खर्च करने और बचत करने की जिम्मेदारी औरतों की थी । इस सारी व्यवस्था को जो सदियों से प्र
आजकल की दुनिया का सबसे घटिया शब्द है competition । आजकल की व्यवस्था में हर जगह competition हो गया है । पहले पढ़ाई में competition फिर job के लिये competition फिर शादी के लिए competition । जिंदगी में सबसे आगे निकलने का competition । एक मेरा जैसा इंसान जो इस complex environment के हर competition में last आता है उसके लिये क्या इस पूंजीवादी व्यवस्था में कोई जगह है या नही । यह survival of fittest की westarn theory से मैं त्रस्त हो गया हूँ । अधिकतर लोग मेरे जैसे है उनको इस competition से अब हार मान कर अपनी जिंदगी अपने अनुसार व्यतीत करनी शुरू कर देनी चाहिये । सब तरह के competition को नकार कर भारतीय दर्शन survival of all जो कि प्रकृति का भी सिद्धान्त है उस पर आ जाना चाहिये । जैसे जंगल में सब के लिये जगह है कमजोर के लिये भी और शक्तिशाली के लिये भी , शहर में कमजोरों के लिये जगह कयों नहीं हैं ? मेरे जैसे लोग जिन्होंने केवल अपनी जिंदगी के 50 -60 इस संसार में निकालने हैं जिनको किसी को नहीं हराना जो बिना किसी fame के जीना चाह तें हैं उनके लिये इस पूंजीवादी व्यवस्था में जगह क्यों नहीं है ? जबकि सन
वैदिक व्यवस्था के अनुसार भौतिक स्वर्ण ही सही है । gold bonds सरकार लेकर ही इसलियें आई है कि लोग सवर्ण ना खरीदें । चाणक्य के अनुसार धन को चोरों से और राजपुरुषों से बचा कर रखना चाहिये । कल को अगर सरकार कोई अंट संट केस लगाकर आपकी सम्पत्ति जब्त कर लेती है तो भौतिक सवर्ण ही काम आयगा । बाकी एक बात और है जो लोग बिल्कुल नहीं देखते वह है transferabilty इसका अर्थ है कि अचानक मृत्यु हो जाने पर आपकी सम्पत्ति आपकी अगली पीढ़ी तक पहुंच सकती है या नही । भौतिक सवर्ण को छोड़कर बाकि सब चीजों की ट्रांस्फेरबिल्टी बहुत खराब है । अधिकतर लोग पैसा निवेश कर भूल जातें है। बाकि सरकार औऱ कंपनियां नए नए शिगूफे लेकर आती रहती है जैसे kyc आदि । जिसके चलते कम से कम 25% पैसा कंपनियों या सरकार के पास रह जाता है ।