जब से नारी मुक्ति आंदोलन की आड़ में भारतीय नारियों को चरित्र हीन बनाने का काम चला है । तबसे भारतीय नारियों को मिलने वाले सन्मान में बहुत कमी आ गई है । पहले बस गाड़ियों में लोग औरतों को देख कर लोग सीट छोड़ देते थे ऐसे नारी का सन्मान करने वाले भारतीय समाज को वामपंथियों को नारी आंदोलन चला कर इतना जलील किया कि भारतीय समाज ने नारी सन्मान करना छोड़ दिया ।
सनातन परिवार व्यवस्था में जब स्त्रियों को माहवारी आती थी तो उनका रसोई में प्रवेश करना वर्जित था तांकि इस समय में नारियों को आराम मिल सके । लेकिन वामपंथियों ने इसको लेकर सनातन धर्म को crticize करना शुरू कर दिया और पूंजीवादी कंपनियों ने periods में भी ना रुको, गधों की तरह काम करते रहो ,इसका नारा उछाला । इसका नुकसान किसको हुआ भारतीय नारी को ।
सनातन परिवार व्यवस्था में भारतीय नारी परिवार नामक संस्था की मुखिया थी । सब काम नारियों से पूछ कर किये जाते थे । रुपया पैसा , सोना आदि सब घर की औरतें संभालती थी । पैसा कमाकर लाने का दायित्व पुरुषों पर औऱ ध्यान पूर्वक खर्च करने और बचत करने की जिम्मेदारी औरतों की थी । इस सारी व्यवस्था को जो सदियों से प्रामाणिक और सही थी उसको वामपंथियों और पूंजीवाद ने छिन भिन्न कर दिया । नारियों को अपने पैरों पर खड़ा करने नाम पर कमाकर लाने के लिये और दिन भर खपते रहने के लिये प्रेरित किया गया । आज position यह है कि औरतें पहले दिन भर खपती हैं ।पीरियड में भी उन्हें काम करना पड़ता है फिर जाकर घर का काम करना पड़ता है । ना बच्चों की ढंग से देखभाल होती है ना खुद की । नौकरी करने के दौरान तरह तरह के compromise करने पड़तें हैं । बच्चों ,पति और परिवार के लिये समय ना होने के कारण इनका अब जो जुड़ाव अपनी माँ ,पत्नी और बहू से पहले था अब नहीं है ।
इस सारे नारी मुक्ति आंदोलन में सबसे अधिक नुकसान किसको हुआ है वह है भारतीय नारी । उसके नसीब में अब ना परिवार रहा ना बच्चे । ना आराम रहा ना सेहत । ना धर्म रहा ना त्यौहार ।
खड़े होकर पिसाब करने की आज़ादी से अच्छा है कि नकली नारी मुक्ति के चक्रव्यूह से बाहर निकालो । उस व्यक्ति से शादी करो जो तीन वक्त की रोटी , तुम्हें बिठा कर खिला सके । नौकरी के स्थान पर परिवार को ,स्वयं को प्राथमिकता दो ।
सनातन परिवार व्यवस्था में फिर लौट आओ अभी भी समय है । नहीं तो चीन ,जापान ,अमेरिका की तरह देर ना हो जाये जहाँ पूरी परिवार व्यवस्था चरमरा गई है और औरतों की दशा बहुत दयनीय है ।
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम
नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के बारे में। हम चर्चा करेंगे कि कैसे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम से हरेक पैमाने पर अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम कैसे उपभोक्ता के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के अंतर को जाने के लिए सबसे पहले हम एक उदाहरण लेते हैं l इस लेख को पूरी तरह समझने से लेख के साथ जो हमने चार्ट लगाया है उसे ध्यान से देखें । मान लो पंजाब में एक शहर है संगरूर ।इसके इर्द गिर्द लगभग 500 व्यक्ति कुल्फी बनाने के धंधे में लगे हुए हैं। यह लोग गांव से दूध लेकर रात को जमा देते हैं और सुबह तैयार कुल्फी शुरू शहर में आकर बेच देते हैं ।इस तरह आपको ताजा कुल्फी खाने को मिलती है ।यह सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम का एक उदाहरण है। दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में संगरूर शहर के गावों का दूध पहले 72 किलोमीटर दूर लुधियाना में बसंत आइसक्रीम के प्लांट में ट्रकों में भर भर के भेजा जाता है ।वहां पर इस प्रोसेसिंग करके इसकी कुल्फी जमा
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