उन्हीं चीजों पर सब्सिडी या loan मिलेगा जो पूंजीवादी कंपनियां बनाएंगी । जैसे 1. ट्रैक्टर पर subsidy मिलेगी ,loan मिलेगा बैल पर नहीं ।क्योकि ट्रेक्टर बड़ी कंपनी बनाती है । 2. जैविक खेती पर कोई सब्सिडी नहीं रासायनिक जहर पर सब्सिडी मिलेगी । 3. गैस cylinder पर subsidy देकर हमे विदेशों पर निर्भर कर दिया गया । अब हमारे देश को अगर विदेश से एलपीजी ना मिले तो 90 % लोगों के घर रोटी नहीं बनेगी । 4. पंजाब में ना तो चावल ,ना नही मछली ना ही सुअर का मांस ,मुख्य आहार है और ना ही पंजाब की जलवायु इसके लिए उपयुक्त है । लेकिन तीनों को सब्सिडी मिलती है । एक तरफ यहां पंजाब का भूमिगत जल नीचे जा रहा दूसरी तरफ इन तीनों चीजों को promote किया जा रहा है । इन तीनो में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है । एक तरफ सरकार जल सरक्षण का दिखवा करती है दूसरी तरफ धान को msp दिया जाता है ,fish farming को सब्सिडी ,loan आदि से नवाजा जाता है । 5. एलोपैथी को सरकार का 98% बजट मिलता है क्योंकि एलोपैथी की दवा बड़ी कंपनियों द्वारा ही बनाई जा सकती है । आयुर्वेद की दवा आप घर पर भी बना सकते हैं इसलिये आयुर्वेदिक चिकित्सा को ना तो स
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fd पर व्याज कम करना कर्ज़े की ecomony के लिये जरूरी है इससे saving की आदत कम होगी और कर्ज सस्ता मिलेगा जिससे उपभोग अधिक होगा देश की जीडीपी बढ़ेगी और लोगों के पास सेविंग के स्थान पर कर्ज होगा । बड़ी बड़ी कंपनियों की बल्ले बल्ले होगी । लेकिन सरकार का दांव उल्टा पड़ रहा है । लोग सोने में निवेश करने लगे हैं । करने दो व्याज कम । अब fd पर अधिक से अधिक 6% व्याज है जो tds काट कर 5.40 के लगभग रह जाता है । दूसरी तरफ़ सोना 10% से अधिक का taxfree return दे रहा है । जल्द ही देश सोने की चिड़िया फिर से बन जाएगी
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जिन लोगों के घर में कुत्ते बच्चों के साथ सोते हैं उनके बच्चे थोड़े से पागल हो जाते हैं । क्योंकि कुत्ते हमेशा ऐसे वायरस छोड़ते रहते हैं जिनसे बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है । इसलिए सनातन भारत में कुत्ते का स्थान हमेशा आपकी दहलीज के बाहर होता था और गाएं का स्थान घर के अंदर । अधिकतर अंग्रजों के माता पिता क्योंकि बचपन में ही छोड़ देते हैं और अधिकतर अंग्रजों का परिवार नहीं होता । इसलिये वहां लोग अकेले रहते हैं । इसलिए वहां लोग अकेले पन को दूर करने के लिये कुत्ते को ही अपना जीवनसाथी समझते हैं । क्योंकि कुत्ता कभी अपने मालिक को छोड़ता नहीं । और इंडिया में अंग्रजों के गुलामों ने आव देखा ना ताव ,अपने आप को अंग्रजो जैसा दिखने के लिये कुत्तो को घर में और गाएं को diary farming में रखना शुरू कर दिया । कुत्ते से हमारा कोई वैर नहीं है । इनको भी पूरा सम्मान मिलना चाहिए । लेकिन कुत्ते को घर में पालना खतरनाक है ।
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अगर देश की जीडीपी बढ़ानी है तो अमेरिका ,इंग्लैंड की तरह भारत की परिवार व्यवस्था को भी खत्म कर होगा । क्योंकि अगर आप की मां खाना बनाती है तो वह जीडीपी में count नही होता ,अगर आपकी बहन अचार बनाती है यो वह जीडीपी में काउंट नहीं होता ,अगर आपकी पत्नी घर को साफ रखती है तो वह जीडीपी में काउंट नहीं होता ,अगर आप किसान से सीधा गेहूं लेकर पिसवाते हो तो देश की जीडीपी गिरती है । लेकिन जब यही काम हम पैसे देकर करवाते हैं तो यह जीडीपी में count होता है । इसलिये जब तक हमारा परिवार है तो भारत grow नहीं कर सकता । जब भारत में परिवार नहीं रहेगा तो हम भी अमेरिका ,इंगलैंड की तरह तरक्की कर जायेंगें । अमेरिका इंग्लैंड में 90% लोगों का परिवार ना होने के कारण अधिकतर लोग बाहर खाना खाते हैं या फिर फैक्टरी मेड ब्रेड आदि खाते हैं ।जिस कारण इन देशों की जीडीपी इतनी अधिक है। इसलिए अधिकतर भारतीय गुलाम को ,जो विदेशों में जाते हैं, उनको food business में ही नॉकरी मिलती है । अगर भारत ने भी जल्द विकसित देश बनाना है तो जीडीपी की राह में रुकावट परिवार व्यवस्था को तोड़ना होगा । आज़ादी के बाद से सरकार ,मीडिया , फ़िल्म उद
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Family किसान ----------------------- जिस दिन आपने फैमिली डॉक्टर के स्थान पर किसी किसान को फैमिली किसान बना लिया आप आधी बीमारियों से बच जायोगे और आपकी जीभ का स्वाद कई गुणा बढ़ जाएगा । कैसे? 1. फैमिली किसान आपको किसी कंपनी के पांच दिन पुराने दूध के स्थान पर, ताज़ा दूध ,ताज़ी लस्सी ,देशी घी आप के घर पर ही उपलब्ध करवा सकता । 2. फ़ैमिली किसान आप को दूध के साथ साथ प्रतिदिन जैविक सब्ज़ी आपके घर में उपलब्ध करवा सकता है। इससे आपका समय भी बचेगा और सेहत भी । 3. फैमिली किसान से आप वर्ष भर के लिये आवश्यक जैविक गेंहू ,धान , साबुत हल्दी ,साबूत मिर्च ,साबूत धनिया , आचार के लिये आम ,निम्बू,गुड़ आदि खरीद सकते हैं । 4. फैमिली किसान से आप जड़ी बूटियां ,अगर घर में हारा जो की उपलों से चलता है उसके लिये उपले , अगर घर में बागवानी की हुई है उसके लिये जीवमृत खाद ,वर्मी कम्पोस्ट ,आदि भी खरीद सकते हैं । 5. अगर आप घर की निकली औषधिय गुणों युक्त देशी दारू के शौकीन हैं वह भी फैमिली किसान से खरीद सकते हैं। जरूरत है family किसान ढूंढने की । बस एक बात का ध्यान अवश्य रखें । फैमिली किसान से कोई भी वस्तु मुफ़्त में ना
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यह है भारत की आर्थिक तरक़्क़ी जो पूंजीवादी ,समाजवादी और साम्यवादी अर्थव्यवस्था के मॉडल ने हमें दी है । सन 1991 में विदेशी कर्ज़ 83.80 अरब डॉलर था अब 2019 में यह बढ़ कर 563.90 अरब डॉलर हो चुका है । कुछ लोग यह कहते नहीं थकते की भारत ने बहुत आर्थिक तरक्की की है । वह जबाब दें । जब तक हम महाराज विक्रमादित्य की बचत की सनातन अर्थव्यवस्था का मॉडल नहीं अपनाते तो ना तो सरकार पर कर्ज उत्तर सकता है ना ही आम लोगों पर । इस पूंजीवादी कर्ज़े के मॉडल के हिसाब से जितना कर्ज़े आपके ऊपर चढ़ेगा उतनी ही आपकी तरक्की होगी । महाराज विक्रमादित्य ने सेविंग की सनातन अर्थव्यवस्था का मॉडल अपना का देश का और समस्त प्रजा का कर्ज उतार दिया था । तभी उन्होंने विक्रमी पंचाग चलाया था । आज भी भारत सरकार अगर पूंजीवादी कर्ज़े की इकॉनमी को छोड़कर सनातन बचत की अर्थव्यवस्था का मॉडल अपना ले तो भारत और भारतीयों पर एक रुपये का कर्ज ना रहे और भारत का महाराज विक्रमादित्य वाला स्वर्णिम काल फिर से आ सकता है । पूंजीवादी debt की economy और सनातन saving economy मॉडल के बारे में और अधिक जानकारी के लिये हमारा यह ब्लॉग पढें https://sanatanbharata.
क्या urbanization विकास है ।
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1920 में दिल्ली की आबादी केवल 405000 थी , आज यह 3 करोड़ के आसपास होगी | यह शहरीकरण क्यों बढ़ा ,क्योकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सब चीज़ बड़े शहरों में केंद्रित होती है चाहे वह न्याय व्यवस्था हो या कर व्यवस्था , governance system हो या शिक्षा व्यवस्था हो या फिर बड़ी बड़ी कंपनियों के आफिस हो या सरकारी कार्यालय आदि । इसलिये रोज़गार की तलाश में लोग बड़े शहरों का रुख कर रहें हैं । रही सही कसर पूंजीवादी एक फ़सली खेती ने कर दी ।आजकल की पूंजीवादी खेती में सारे किसानों की फसल साल में केवल दो बार आती है। जैसे कि पंजाब और हरियाणा में अधिकतर किसान गेहूं और धान दो ही तरह की फसल बीजते हैं । लगभग सारा गेहूं अप्रैल में और धान अक्टुबर में आ जाता है ।और बिजाई भी लगभग दो ही महीने चलती है ।जिस कारण खेती के लिए मजदूरों की कमी हो जाती है । मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए किसान को बहुत सारी महंगी मशीनरी की आवश्यकता पड़ती है,जैसेकि ट्रेक्टर,combine इत्यादि। इनको खरीदने के लिए किसान को बहुत सारा क़र्ज़ लेना पडता है । इस मशीनरी के रिपेयर,स्पेयर पार्ट्स,रख रखाव आदि में बहुत खर्च करना पडता है । इस कारण खेती
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गेंहू का षडयंत्र ,शुगर रोग और हलाल आटा ---- हरित क्रांति (विनाश) से पहले तक भारतीय किसान गेहूँ की देशी किस्में जैसे शरबती गेंहू आदि उगाते थे । यह गेहूँ की देशी किस्में कद में ऊँची होती थी । इसी समय अमेरिका आदि देशों के पास जो द्वितीय विश्व युद्घ में बारुद में प्रयोग होने वाले रसायन जैसे नाइट्रोजन आदि के निस्तारण की समस्या उत्पन्न हुई । वहां के नकली वैज्ञनिकों के सुझाव पर इनको fertilizer में बदल दिया गया । औऱ भारत जैसे देशों के नकली विज्ञानिको ने उत्पादन बढ़ने के लिये सरकार को इन केमिकल फेर्टिलिज़र्स के प्रयोग की सलाह दी गयी । लेकिन गेंहु की देशी किस्में जैसे शरबती आदि में जब इन केमिकलों को डाला गया तो इनके प्रयोग से वह झुक गईं और इन देशी किस्मो ने इन केमिकलों को नकार दिया । तब नकली विज्ञान ने गेहूं की ऐसी नकली किस्में विकसित की जो कद में छोटी थी और जो बिना केमिकल फर्टिलाइजर के बढ़ती नहीं थी । इस नकली गेंहूँ की क़िस्म को dwarf अर्थात बौना कहा गया । agriculture यूनिवर्सिटी के नकली वैज्ञानिकों ने रिश्वत लेकर नकली गेंहूँ की इस dwarf बौनी किस्म को किसानों के बीच जोर शोर से प्रचारित किया
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असली corruption क्या है ? क्या पछमी पूंजीवादी देशों में सब कुछ हरा हरा है ? ----------------- भारत में अधिकतर लोगों को अपने कहते सुना होगा '' मेरा भारत महान 100 में से 99 बेइमान " और अक्सर भारतीय यह कहते हैं कि जी विकसित देशों जैसे अमेरिका ,यूरोप आदि देशों में भ्रष्टाचार बहुत कम है , और भारत में बहुत अधिक । आइए आज देखते हैं कि भ्रष्टाचार होता क्या है । क्या पछमी पूंजीवादी देशों में भ्रष्टाचार नहीं है । मानव जीवन की तीन आधार भूत जरूरतें हैं। रोटी ,कपड़ा और मकान । सबसे पहले मकान को ले लेतें हैं । कनाडा की जनसंख्या आज तीन करोड के लगभग है और भारत की जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है । कनाडा का क्षेत्रफल भारत से लगभग 8 गुना है । इस हिसाब से कनाडा की आबादी अगर 8 गुना यानि कि 1100 करोड़ हो, तो कनाडा के प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता भारत के प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता के बराबर होगी । लेकिन कनाडा कुल जनसंख्या बहुत थोड़ी होने के कारण प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता भारत के मुकाबले बहुत अधिक होनी चाहिये ,जो है भी । और कनाडा में जमीन कोड़ियों के दाम में होनी चाहिये । लेकिन कनाडा में अगर
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पूंजीवादी दुष्पचार तंत्र --------- 1. पांच दिन पुराना दूध नाम है ताज़ा 2. जिस जूस 85% नकली flavours है नाम है real 2. जिस fruit juice में कुछ natural नहीं है नाम है B Natural 3. कई महीने पुराना अट्टा जिसने कभी चक्की का मुंह नही देखा हो नाम है चक्की फ्रेश अट्टा 5. जिस water में से सारे mineral निकाल लिए गए हों उसका नाम है mineral water 6. जिन universites ने खेती की विनाश कर दिया उनका नाम है agriculture universities । 7. जिस से गरीब लोगों की आमदन काम हो जाये उसको कहते है GDP ग्रोथ 8. जिस व्यवस्था से किसी को न्याय ना मिलता हो उसका नाम है न्याय व्यवस्था 9. जिससे देश का ,परिवार का , ,नदियों का ,पहाड़ों का ,जीव जंतुओं का ,समुद्रों का ,पेड़ पौधों का और आम लोगों का विनाश हो रहा हो उसको कहते है विकास ।
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आदरणीय मोदी जी नमस्कार अगर सरकार अनाज के प्लास्टिक की बोरियों के स्थान पर पटसन (जूट) की बोरियों को बढ़ावा दे । तो देश को निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं । 1. Plastic का कचरा बहुत कम हो सकता है क्योंकि पटसन bio degradable है जबकि plastic की बोरियां non bio degradable हैं । इससे आपके स्वच्छ् भारत अभियान को बल मिलेगा 2. पटसन का उत्पादन स्थानीय स्तर पर भारत में ही होता है। जबकि प्लास्टिक raw material विदेशों से आता है । इससे आपके आत्म निर्भर भारत के अभियान को बल मिलेगा 3. क्योंकि पटसन का उत्पादन किसान करते है । इससे आपके स्वप्न कि किसानों की आय वर्ष 2022 तक दुगनी करनी है उसमें सहयोग मिलेगा । दूसरी तरफ प्लास्टिक का raw material का किसान से कोई संबद्ध नहीं है । 4. भारत जैसे गर्म देश में पटसन की बोरियों में अनाज को हवा लगती रहती है । जबकि प्लास्टिक की बोरियों में अनाज को हवा ना लगने के कारण अनाज के खराब होने की संभावना अधिक रहती है । 5. प्लास्टिक की बोरियों में अगर थोड़ा सा भी छेद ही जाए तो उसको re use करना कठिन है । जबकि पटसन की थैलियों को बार बार प्रयोग किया जाता है । 6. प्लास्टिक का प्रयोग क
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पूंजीवादी westarn culture में क्योंकि परिवार एक छत के नीचे नहीं रहता । मां कहीं और पिता कहीं और ,भाई कहीं और ,बहन कहीं ,बच्चे कहीं रहते है इसलिये वहां वर्ष में एक दिन सब अपने मां से मिलने जाते हैं ,एक दिन बाप से मिलने जाते हैं एक दिन अपने भाई से ,एक दिन अपनी बहन से मिलने जाते हैं इसलिये पूंजीवादी व्यवस्था में mother day ,father day आदि का concept आया । सनातन व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था और सारा परिवार एक छत के नीचे रहता था इसलिये सनातन भारत में mother day ,father day की कोई अवधारणा प्रचलित नहीं थी । इसलिए सनातन भारत में mother day, father day कभी नहीं मनाये जाते । धीरे धीरे जैसे जैसे हम सनातन अर्थव्यवस्था के मॉडल को छोड़ कर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपना कर अपना विनाश कर रहें है तो हमारी परिवार व्यवस्था टूट रही है । और जैसे जैसे हम पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से अपना विकास ( सर्वनाश) कर रहें हैं हमारी परिवार व्यवस्था भी खत्म हो रही है । जबतक भारत में सनातन अर्थव्यवस्था का मॉडल चलता था सारा गांव ही परिवार होता था । फिर जैसे जैसे इंडिया ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था भारत पर थो
पूंजीवादी कर्जे की इकॉनमी vs सनातन सेविंग की अर्थव्यवस्था
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बैंको को सीतारमण का आदेश लोगों को कर्ज अधिक से अधिक बांटों तांकि लोग उपभोग अधिक करें और जीडीपी बढ़े तांकि और सरकार के आमदन बढ़े । इसको कहते हैं कर्ज़ की अर्थव्यवस्था । सरकार बैंको से कहेगी की 10 लाख करोड़ के कर्ज़े बांटों । इस तरह बैंक 10 लाख करोड़ की virtual currency छाप देगा । और बैंको के मालिकों को 10 लाख करोड़ का सीधा लाभ होगा और आम लोगों पर 10 लाख करोड़ का कर्ज चढ़ जाएगा । अगर सरकार बैंकों के loan बांटने के स्थान पर 10 लाख करोड़ खुद छापती तो देश को दस लाख करोड़ का फायदा होता और आम लोगों पर 10 लाख करोड़ का कर्जा ना चढता बल्कि 10 लाख करोड़ की saving होती । इसको कहते हैं saving की economy । सरकार इस 10 लाख करोड़ से कुछ भी कर सकती थी । लोगों का टैक्स माफ कर सकती थी । 10 लाख करोड़ सेना पर निवेश कर सकती थी । किसानों का कर्ज माफ कर सकती थी । सनातन मॉडल सेविंग की अर्थव्यवस्था है इसमें आपके पास हर साल सेविंग इकट्ठा होती है । सम्राट विक्रमादित्य ने इसी मॉडल से समस्त प्रजा का कर्ज उतरा था । जबकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल आप पर हर साल कर्ज़ चढ़ता रहता है । तभी आपने महसूस किया होगा कि आपके पूर्वजों के
भारत मे रामराज्य कैसे आ सकता है
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जब तक सनातन मिश्रित खेती का मॉडल लागू नहीं होगा । कोई भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था ,localization स्वदेशी का concept लागू नहीं हो सकता । चाणक्य के अनुसार धर्म का मूल अर्थतन्त्र है । और अर्थतन्त्र का मूल कृषि है । सनातन भारत मे किसी राजा के राज्य अभिषेक के समय पुरोहित यह कहता था 'राजन यह राज्य आपको कृषि की उन्नति के लिये दिया जाता है ' । चाणक्य ने यह अवधारणा बदल कर व्यापार को प्राथमिकता दी । चाणक्य ने ही सबसे पहले localization {local consumption local production} के स्थान पर globalization की अवधारणा दी । चाणक्य केन्द्रीकृत सत्ता चाहते थे । चाणक्य के अनुसार जो चीज़ जहाँ manufacture होती है वहाँ पर sale नही होनी चाहिये तांकि टैक्स की चोरी ना हो सके और सारा समाज सरकार पर निर्भर हो सके । इसलिये आजकल सभी सरकारें globalization को बढ़ावा देती है । तांकि trade की उन्नति हो और सरकार को अधिक से अधिक टैक्स collect हो । अगर सरकार localization को बढ़ावा देगी तो सरकार को टैक्स की हानि होगी और सरकार पर लोगों की निर्भरता कम हो जाएगी । आजकल का पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का मॉडल जो कि भारत सहित पूरे विश्
देश में अब बहुसंख्यक हो चुके मुसरमान समाज की immunity, काफ़िरों से अधिक क्यों है ?
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1. मुसरमान बहुसंख्यक समाज ने आज तक खाना पकाने के लिये अलुमिनियम के बर्तनों का प्रयोग नहीं किया । मुसरमान बहुसंख्यक हमेशा पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करता है जो की तांबे और zinc की मिश्रित धातु है । zinc वायरस का दुश्मन no 1 है । 2. मुसरमान बहुसंख्यक समाज ने आज तक खाना पकाने के लिये refind oil का इस्तेमाल नहीं किया । खाने के लिये refind oil से गन्दा कुछ है ही नहीं । मुसरमान बहुसंख्यक समाज अधिकतर सरसों का तेल जोकि उसके सामने निकला हो उसका प्रयोग करता है जिससे शरीर की immunity बढ़ती है ।दूसरी और refind तेल , safola,कनोला आदि तेल खाने से शरीर में कार्बन जमा होने लगती है जिससे heart की समस्या उत्पन्न होती है । काफ़िरों के आधे लोग तो stunt डलवा कर भी refined oil खाते हैं और सुबह की सैर करते हैं । 3. मुसरमान बहुसंख्यक समाज cold ड्रिंक के नाम पर दो महीने पुराना केमिकलों से भरपूर गन्दा पानी नहीं पीता । मुसरमान समाज यह मानता है कि कोका कोला और पेप्सी यहूदी कंपनी है । 4. अधिकतर मुसरमान समाज का family system अभी भी सुरक्षित है क्योंकि मुसरमान बहुसंख्यक नौकरी के पीछे नहीं भागता । बल्कि अपना
बड़े शहर में आपको क्या मिला
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1. छत की जगह बालकनी ,यहां आपके पास ना तो धूप है ना ताज़ी हवा लेने की आज़ादी ,ना छत पर पड़े रहकर तारे गिनने की आज़ादी 2. साफ हवा की जगह प्रदूषित हवा 3. आधी उम्र आपकी ट्रैफिक में निकल जाती है और पूरी किस्तें चुकने में 4. रहने के लिये दड़बे जैसे flats जैसे की जानवरों के पिंजरे 5. अपने काम की जगह किसी की 9 to 5 की ग़ुलामी , हर समय boss का डर , अपनी कोई पहचान नहीं कंपनी के नाम से जाने जाना 6. बच्चों का डरावना भविष्य 7. ताज़े दूध की जगह पांच दिन पुराना दूध, जिसको आप जैसे पढें लिखों को ताज़ा कहकर बेचा जाता है । क्या मिला आपको बड़े शहर में रहकर । क्या यह विकास है या विनाश
जिस सनातन गुरुकुलों को अंग्रेज ना खत्म कर पाये उसको कांग्रेस ने कैसे खत्म किया ------
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आज़ादी के बाद भी देश के हर छोटे बड़े कस्बे में गुरुकुल चलते थे । क्योंकि कहने को कोई कुछ कहे सारे देश में अंग्रजों का एकछत्र राज़ नहीं चलता था । देशी राजे राजवंशों का गुरुकुलों को सरक्षंण मिलता रहता था । आज़ादी के बाद हिन्दूओं की जड़ों में तेल डालने के लिए कांग्रेस ने हिंदुओ को जात पात में बांटने के अतिरिक्त हिन्दू धर्म को जड़ से नष्ट करने के लिये एक और जहाँ temple endownment act के जरिये हिन्दू मंदिरों की धन संपदा को कंट्रोल कर लिया तांकि हिन्दू मंदिरों का धन हिन्दू धर्म के काम ना आ सके लेकिन दूसरी तरफ बहुसंख्यक मुसरमान समाज के धर्मस्थानों पर कोई कंट्रोल नहीं किया । हिन्दुओं का पैसा सरकारें लूट कर ले गईं । और दूसरी और जो गुरूकुल चलते थे उनको इस बात के लिये मजबूर किया गया कि वह society registration act में अपना रजिस्ट्रेशन करवा लें । एक बार किसी हिन्दू संस्था का रजिस्ट्रेशन हो गया तो समझो वह संस्था कमेटी मेम्बर्स की personal प्रॉपर्टी बन जाती है । वह कमेटी मेंबर चाहे कुछ करें आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते । कानूनन वह संस्था के मालिक बन जाते हैं । इसलिए हिन्दू संस्थाओं में आज चोर लूटेरे घ