क्या urbanization विकास है ।
1920 में दिल्ली की आबादी केवल 405000 थी , आज यह 3 करोड़ के आसपास होगी |
यह शहरीकरण क्यों बढ़ा ,क्योकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सब चीज़ बड़े शहरों में केंद्रित होती है चाहे वह न्याय व्यवस्था हो या कर व्यवस्था , governance system हो या शिक्षा व्यवस्था हो या फिर बड़ी बड़ी कंपनियों के आफिस हो या सरकारी कार्यालय आदि । इसलिये रोज़गार की तलाश में लोग बड़े शहरों का रुख कर रहें हैं ।
रही सही कसर पूंजीवादी एक फ़सली खेती ने कर दी ।आजकल की पूंजीवादी खेती में सारे किसानों की फसल साल में केवल दो बार आती है। जैसे कि पंजाब और हरियाणा में अधिकतर किसान गेहूं और धान दो ही तरह की फसल बीजते हैं । लगभग सारा गेहूं अप्रैल में और धान अक्टुबर में आ जाता है ।और बिजाई भी लगभग दो ही महीने चलती है ।जिस कारण खेती के लिए मजदूरों की कमी हो जाती है । मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए किसान को बहुत सारी महंगी मशीनरी की आवश्यकता पड़ती है,जैसेकि ट्रेक्टर,combine इत्यादि। इनको खरीदने के लिए किसान को बहुत सारा क़र्ज़ लेना पडता है । इस मशीनरी के रिपेयर,स्पेयर पार्ट्स,रख रखाव आदि में बहुत खर्च करना पडता है । इस कारण खेती आजकल घाटे का सौदा बनती जा रही है ।दूसरी तरफ हमारे पूर्वज मिश्रित खेती करते थे ।सारा साल खेती में कभी मजदूरों की कमी नहीं होती थी ।किसानो को इस कारण महँगी मशीनरी खरीदनी नहीं पढ़ती थी ।और किसान क़र्ज़ से बचा रहता था ।मजदूरों को भी सारा साल काम मिलता रहता था ।लेकिन आज कल की पूंजीवादी खेती में मजदूरों को वर्ष में केवल मुश्किल से चार पांच महीने ही काम मिलता है। मजबूरन खेत मजदूरों को गांवों से पलायन करना पड़ता है ।और यह खेत मजदूर किसी शहर में किसी गन्दी बस्ती में अपनी जिन्दगी बहुत कष्ट में गुजारते हैं ।अगर हम मिश्रित खेती की और वापसी कर लें ।तो खेत मजदूरों को सारा वर्ष अपने गाँव में मजदूरी मिल सकती है ।और उनके गाँव में उनकी जिन्दगी आराम से कट सकती है ।
रही सही कसर पूंजीवादी एक फ़सली खेती ने कर दी ।आजकल की पूंजीवादी खेती में सारे किसानों की फसल साल में केवल दो बार आती है। जैसे कि पंजाब और हरियाणा में अधिकतर किसान गेहूं और धान दो ही तरह की फसल बीजते हैं । लगभग सारा गेहूं अप्रैल में और धान अक्टुबर में आ जाता है ।और बिजाई भी लगभग दो ही महीने चलती है ।जिस कारण खेती के लिए मजदूरों की कमी हो जाती है । मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए किसान को बहुत सारी महंगी मशीनरी की आवश्यकता पड़ती है,जैसेकि ट्रेक्टर,combine इत्यादि। इनको खरीदने के लिए किसान को बहुत सारा क़र्ज़ लेना पडता है । इस मशीनरी के रिपेयर,स्पेयर पार्ट्स,रख रखाव आदि में बहुत खर्च करना पडता है । इस कारण खेती आजकल घाटे का सौदा बनती जा रही है ।दूसरी तरफ हमारे पूर्वज मिश्रित खेती करते थे ।सारा साल खेती में कभी मजदूरों की कमी नहीं होती थी ।किसानो को इस कारण महँगी मशीनरी खरीदनी नहीं पढ़ती थी ।और किसान क़र्ज़ से बचा रहता था ।मजदूरों को भी सारा साल काम मिलता रहता था ।लेकिन आज कल की पूंजीवादी खेती में मजदूरों को वर्ष में केवल मुश्किल से चार पांच महीने ही काम मिलता है। मजबूरन खेत मजदूरों को गांवों से पलायन करना पड़ता है ।और यह खेत मजदूर किसी शहर में किसी गन्दी बस्ती में अपनी जिन्दगी बहुत कष्ट में गुजारते हैं ।अगर हम मिश्रित खेती की और वापसी कर लें ।तो खेत मजदूरों को सारा वर्ष अपने गाँव में मजदूरी मिल सकती है ।और उनके गाँव में उनकी जिन्दगी आराम से कट सकती है ।
शहरीकरण की समस्या के लिए काफी हद तक पूंजीवादी एक फसली खेती ही उत्तरदाई और साथ मे पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम जोकि mass production और global consumption global product की अवधरणा पर adharit है । यह पूँजीवादी processing system भी urbanization को बढ़ता है । यह सारी व्यवस्था जो भारत और दुनिया में चल रही है उसको पूंजीवादी व्यवस्था कहते हैं । इस व्यवस्था में सब कुछ केन्द्रीकृत होता है अर्थात धन ,संपदा ,नियंत्रण कुछ चन्द लोगों तक होता है ।
क्या urbanization विकास है ।
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आजकल की पूंजीवादी व्यवस्था ने एक समस्या को जन्म दिया जिसको urbanization कहते हैं लेकिन पूंजीवादी दुष्पचार तंत्र और शिक्षा व्यवस्था इस शहरीकरण की समस्या को ही विकास कहकर आम लोगों की आंखों में धूल झोंक रही है । हमारे वेदों में कहा गया है कि किसी भी नगर ग्राम की जनसंख्या अधिक से अधिक 10000 होनी चाहिए नहीं तो बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जैसे कि साफ पानी की समस्या , sanitization की समस्या ,traffic की समस्या ,crime में वृद्धि आदि । राजा राम के समय अयोध्या जी की कुल जनसंख्या 10000 से कम थी । भगवान राम और महाराज विक्रमादित्य ने सनातन अर्थव्यवस्था जोकि small production और local consumption local production के सिद्धान्त पर आधारित थी ,उस अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया था और शासन व प्रशासन के लिये भी ग्राम आधारित विकेंद्रीकृत मॉडल को अपनाया था । जिस कारण महानगरों की जनसंख्या 10000 से कम थी । इसलिये महाराज विक्रमादित्य के काल को भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है । और रामराज्य के बारे में तुलसीदास जी लिखते हैं
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आजकल की पूंजीवादी व्यवस्था ने एक समस्या को जन्म दिया जिसको urbanization कहते हैं लेकिन पूंजीवादी दुष्पचार तंत्र और शिक्षा व्यवस्था इस शहरीकरण की समस्या को ही विकास कहकर आम लोगों की आंखों में धूल झोंक रही है । हमारे वेदों में कहा गया है कि किसी भी नगर ग्राम की जनसंख्या अधिक से अधिक 10000 होनी चाहिए नहीं तो बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जैसे कि साफ पानी की समस्या , sanitization की समस्या ,traffic की समस्या ,crime में वृद्धि आदि । राजा राम के समय अयोध्या जी की कुल जनसंख्या 10000 से कम थी । भगवान राम और महाराज विक्रमादित्य ने सनातन अर्थव्यवस्था जोकि small production और local consumption local production के सिद्धान्त पर आधारित थी ,उस अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया था और शासन व प्रशासन के लिये भी ग्राम आधारित विकेंद्रीकृत मॉडल को अपनाया था । जिस कारण महानगरों की जनसंख्या 10000 से कम थी । इसलिये महाराज विक्रमादित्य के काल को भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है । और रामराज्य के बारे में तुलसीदास जी लिखते हैं
''दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥''
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥''
भावार्थ
'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं॥1॥
इसलिये अगर हम सनातन अर्थव्यवस्था का मॉडल अपना लें तो भारत में आज भी भगवान राम का रामराज्य और महाराज विक्रमादित्य का स्वर्ण काल आ सकता है ।
इसलिये अगर हम सनातन अर्थव्यवस्था का मॉडल अपना लें तो भारत में आज भी भगवान राम का रामराज्य और महाराज विक्रमादित्य का स्वर्ण काल आ सकता है ।
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पूंजीवादी खेती और सनातन मिश्रित खेती के मॉडल के बारे में अधिक जानने के लिये हमारा यह ब्लॉग पढें
sanatanbharata.blogspot.com और localization और globalization और पूंजीवादी procesing system के बारे में अधिक जानकारी के लिये यह ब्लॉग पढें ।https://sanatanbharata.blogspot.com/2019/11/blog-post_5.html?m=1
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