ਪੂੰਜੀ ਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ vs ਸਨਾਤਨੀ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ ----------------------------------------- ਨਮਸਕਾਰ ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਪੂੰਜੀ ਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ vs ਸਨਾਤਨੀ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ ਦੇ ਬਾਰੇ ਚਰਚਾ ਕਰਾਂਗੇ | ਅਸੀਂ ਚਰਚਾ ਕਰਾਂਗੇ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਸਨਾਤਨੀ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ , ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ ਤੋਂ ਹਰੇਕ ਪੈਮਾਨੇ ਤੇ ਚੰਗੀ ਹੈ | ਅਤੇ ਸਨਾਤਨੀ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ ਸਾਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ , ਮਹਿੰਗਾਈ , ਮਿਲਾਵਟ , ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ , ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖਪਤਕਾਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਆਦਿ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਦਿਲਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸੀਂ ਸਮਝ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ ਕੀ ਹੈ | ਇਸ ਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ ਇਸ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇੱਥੇ ਅਨਾਜ ਆਦਿ ਕੁੱਝ ਗਿਣੇ ਚੁਣੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਦੂਸਰਾ ਸਨਾਤਨ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ ਵਿਚ ਅਨਾਜ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕਣਕ , ਚੌਲ , ਮੂੰਗੀ ਆਦਿ ਦਾ ਸਟੋਰੇਜ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੀਮਤ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਜਿੰਨਾ ਕਿ ਇੱਕ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਉਸ ਦੀ ਸਟੋਰੇਜ ਉਪਭੋਗਤਾ ਦੇ ਘਰਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਇਸ ਨੂੰ ਸਨਾਤਨ ਹੋਮ ਸਟੋਰੇਜ ਇਸ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇੱਥੇ ਅਨਾਜ ਆਦਿ ਕੁੱਝ ਗਿਣੇ ਚੁਣੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਵਿੱਚ ਨਾ ਹੋਕੇ ਅਣਗਿਣਤ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਟੋਰੇਜ
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ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਅਤੇ ਅੱਜ ਦੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ===================================== ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਚਰਚਾ ਕਰਾਗੇਂ ਕੀ ਕਿਵੇਂ ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਹੈ ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ਤੋਂ ਕਿਸਾਨ ਦੇ ਲਈ ਵੀ ਵੱਧ ਫਾਈਦੇਮੰਦ ਹੈ ਅਤੇ ਉਪਭੋਗਤਾ ਦੇ ਲਈ ਵੀ ਜਿਆਦਾ ਜਿਆਦਾ ਫਾਈਦੇਮੰਦ ਹੈ ਅਸੀਂ ਚਰਚਾ ਕਰਾਗੇਂ ਕਿਯੋੰ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ਦੇ ਕਾਰਣ ਕਿਸਾਨ ਸਿਰਫ ਅਤੇ ਸਿਰਫ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਕਿਸਾਨ ਨੂੰ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀ ਤੋਂ ਕਿਵੇਂ ਬਚਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਪਭੋਗਤਾ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਸਹੀ ਕੀਮਤ ਤੇ ਕੇਮੀਕਲ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਤਪਾਦਨ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ | ਅੱਜ ਕਲ ਜੋ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਕ ਜਗ੍ਹਾ ਤੇ ਸਿਰਫ ਇਕ ਹੀ ਕਿਸਮ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਉਗਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਝੋਨਾ ਅਤੇ ਕਣਕ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਹੀ ਉਗਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਖੇਤੀ ਦਾ ਮੁਖ ਸਿਧਾਂਤ ਹੈ ਕੀ ਕਿਸਾਨ ਅਪਣੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ਸਲ ਬਾਜਾਰ ਵਿੱਚ ਬੇਚੇ ਅਤੇ ਅਪਣੀ ਲੋੜ ਦਾ ਸਾਰਾ ਸਮਾਨ ਬਾਜਾਰ ਤੋਂ ਖਰੀਦੇ ਜਿਵੇਂ ਕੀ ਜੇ ਕਿਸਾਨ ਝੋਨਾ ਅਤੇ ਕਣਕ ਵੇਚਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਬ੍ਜ਼ੀ ਦਾਲਾਂ ,ਸਰੋਂ ਦਾ ਤੇਲ ,ਮੂਫਲੀ ,ਜਵਾਰ ,ਬਾਜਰਾ ,ਮੱਕੀ ਆਦਿ ਬਾਜਾਰ ਤੋਂ ਖਰੀਦਦਾ ਹੈ ਜਦਕਿ ਮਿਸ਼੍ਰਿਤ ਖੇਤੀ ਵ
क्या आजकल की पूंजीवादी खेती बेसहारा गोवंश की समस्या जड हैं ?
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आजकल की पूंजीवादी खेती में क्योंकि सारे क्षेत्र में और सारे किसान एक ही तरह की फसल बीजते हैं । इस कारण किसानों को पशुओं के आहार को प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठिनाई होती है ।जैसे कि पंजाब में गेहूं और धान की फसल होती है ।गेहूं की फसल अधिकतर अप्रैल के महीने में आ जाती है। गेहूं की फसल से जो भूसी प्राप्त होती है उसको चारे में मिलाकर प् रयोग किया जाता है । लेकिन धान की फसल से कोई भी भूसी आदि प्राप्त नहीं होती और पशु सारा साल केवल भूसी पर तो निर्भर रह नहीं सकता । इस कारण किसानों को पशुओं के लिए सरसों की खल ,कैटल फीड ,चने के छिलके आदि को बाजार से खरीदना पड़ता हैं ।जिस कारण दूध के उत्पादन की लागत बहुत ही बढ़ जाती है । दूध के उत्पादन की लागत अधिक होने के कारण गाय पालन खर्चीला हो रहा है इस कारण धीरे धीरे किसान गाएं को खुला छोड़ रहे हैं। पहले भारत में सनातन वैदिक मिश्रित खेती होती थी एक किसान अपने खेत में कई कई फसलें बीजता था , और ये फसलें अलग अलग समय पर कटाई के लिए तैयार होती थी ।जो खेत काट दिया जाता था , उसमें गाय , भैंस,बकरी, भेड़ों ,बैल आदि को चलने लिए छोड़ दिया जा
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क्या आज की पूंजीवादी खेती के कारण विश्व में जल की समस्या उत्पन्न हुई है ? --------- नमस्कार मित्रों जैसा कि आप जानते हैं कि भारत में और विश्व में आने वाले दिनों में पानी की बहुत ही ज्यादा समस्या होने वाली है ।मीडिया और सरकार दिन रात भूमिगत जल के बारे में चिल्लाते रहते हैं ।छोटे-छोटे बच्चों को स्कूलों में यह जानकारी दी जाती है कि पानी व्यर्थ ना करें ।होली पर उपदेश दिया जाता है कि पानी व्यर्थ ना बह ाएं ।क्या पानी की समस्या का मुख्य कारण यह है या कुछ और। आजकल अधिकतर पूंजीवादी खेती की जाती है। पूंजीवादी खेती में किसी क्षेत्र में एक ही तरह की फसल पैदा की जाती है ।जैसे कि पंजाब में दो फसलें गेहूं और धान ही पैदा किया जाता जब तक है। हम अपने प्रतिदिन के भोजन में केवल और केवल गेहूं और धान पर ही निर्भर है। उत्तर नहीं ,? तो फिर सरकार केवल और केवल धान और गेहूं के लिए ही समर्थन मूल्य क्यों देती है क्या हमें दालें ,मोटा अनाज, जड़ी बूटियों, फल सब्जियों आदि की जरूरत नहीं है। फिर सरकार क्यों केवल और केवल गेहूं और धान की ही एमएसपी निर्धारित करती है। एक तरफ तो कि सरकार कह रही है कि पा
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क्या आज कल की पूंजीवादी खेती प्रकृति के विरुद्ध है ? ----------------------------- जैसे कि आप जानते ही हो की आज कल की पूंजीवादी खेती में क्षेत्र में एक ही तरह की फसल की बिजाई की जाती है । जैसे कि पंजाब और हरियाणा में गर्मियों में धान और सर्दियों में अधिकतर गेहूं की कृषि की जाती है । अगर आप सर्दियों में पंजाब के खेतों में लिखेंगे देखोगे तो आपको गेहूं की गेहूं नजर आएगी गर्मियों में आपको धान ही धान नजर आएगी क्या प्रकृति में केवल और केवल एक ही तरीके की वनस्पति होती है अगर आप प्रकृति को देखोगे तो आप आओगे कि आपको वनस्पति में विभिन्नता दिखाई देगी जोकि आजकल कि पूंजीवादी वादी खेती में बिल्कुल ही दिखाई नहीं देती । लेकिन सनातन मिश्रित खेती में किसान केवल धान जागे या गेहूं की फसल ही पैदा नहीं करता था वह विभिन्न प्रकार की दालें , मोटे अनाज , फल सब्जियां, जड़ी बूटियां, लकड़ी के लिए विभिन्न तरीके के वृक्ष और पौधे उगाता था ।सनातन मिश्रित खेती प्रकृति के अनुकूल है क्योंकि इसमें प्रकृति की तरह ही अलग अलग फसलें दाल सब्जी ,फल ,जड़ी बूटियां आदि बोई जाती है जोकि जैव विविधता के लिए बहु
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आज कल की पूंजीवादी खेती जैव विवधता को कैसे नष्ट कर रही है सनातन जैविक मिश्रित खेती में किसान केवल अनाज , दालों , सब्जियों , तिलहन , दलहन आदि का उत्पादन नहीं करता था , बल्कि फल , जड़ी बूटियों और विभिन्न तरीके के वृक्ष आदि की भी खेती करता था। क्योंकि सनातन भारत में चिकित्सा की मुख्य पद्धति आयुर्वेद थी और आयुर्वेद की हर एक औषधि जड़ी बूटियों से तैयार होती है इसलिए सनातन भारत में किसान जड़ी बूटियों की खेती भी करता था । लेकिन आजकल पूंजीवादी एलोपैथिक सिस्टम चल रहा है। जिसमें दवाइयों में कोई जड़ी बूटी प्रयोग नहीं होती , बल्कि इन एलोपैथिक दवाइयों में विभिन्न तरीके के कैमिकल डाले जाते हैं ।जिसके लिए खेती की कोई आवश्यकता नहीं होती ।सनातन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और आजकल की पूंजीवादी एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के बारे में हम अपने आने वाले लेखों में विस्तार से चर्चा करेंगे । आजकल की पूंजीवादी खेती व्यवस्था में किसी क्षेत्र में एक ही तरह की फसल होने के कारण वहां पर जैव विविधता नहीं रहती ।जैसे कि पंजाब में केवल गेहूं और धान आदि की फसलें होने के कारण अधिकतर ऐसी जड़ी बूटियां और जीव जंतु
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क्या हमारे देश में दूध दही की नदियां फिर से वह सकती हैं ? आजकल की पूंजीवादी खेती में क्योंकि सारे क्षेत्र में और सारे किसान एक ही तरह की फसल बीजते हैं । इस कारण किसानों को पशुओं के आहार को प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठिनाई होती है ।जैसे कि पंजाब में गेहूं और धान की फसल होती है ।गेहूं की फसल अधिकतर अप्रैल के महीने में आ जाती है। गेहूं की फसल से जो भूसी प्राप्त होती है उसको चारे में मिलाकर प्रयोग किया जाता है। लेकिन धान की फसल से कोई भी भूसी आदि प्राप्त नहीं होती और पशु सारा साल केवल भूसी पर तो निर्भर रह नहीं सकता । इस कारण किसानों को पशुओं के लिए सरसों की खल , कैटल फीड , चने के छिलके आदि को बाजार से खरीदना पड़ता हैं ।जिस कारण दूध के उत्पादन की लागत बहुत ही बढ़ जाती है ।इस कारण धीरे धीरे दूध का उत्पादन और दूध की गुणवत्ता कम हो रही है। पहले भारत में सनातन वैदिक मिश्रित खेती होती थी एक किसान अपने खेत में कई कई फसलें बीजता था , और ये फसलें अलग अलग समय पर कटाई के लिए तैयार होती थी ।जो खेत काट दिया जाता था , उसमें गाय , भैंस , बकरी , भेड़ों , बैल आदि को चलने लिए छोड़
सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था और पूंजीवादी NO FAMILY SYSTEM
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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था और पूंजीवादी NO फैमिली सिस्टम के बारे में |हम चर्चा करेंगे की कैसे सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था ,आजकल की पूंजीवादी NO फैमिली सिस्टम से हरेक पैमाने पर अच्छी थी | हम चर्चा करेंगे कि आजकल की पूंजीवादी व्यवस्था ,सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था क्यों और कैसे तोड़ रही है और आजकल की पूंजीवादी व्यवस्था यह क्यों चाहती है की व्यक्ति का कोई परिवार ना हो | मित्रो सनातन भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था चलती थी | इस परिवार व्यवस्था में चाचा का परिवार ,ताऊ का परिवार आदि सब रहते थे | परिवार के साथ साथ व्यापार , धंधा ,खेती आदि भी सांझी होती थी | बड़ा परिवार होने के कारण सब एक दुसरे के दुःख सुख के सांझीदार थे | पुरुष लोग उद्योग धंधा ,खेती बाड़ी आदि सँभालते थे और औरतें घर संभालती थी |आजकल पूंजीवादी NO फैमिली सिस्टम में हर व्यक्ति चाहे वह महिला हो या पुरुष अकेले अकेले रहतें हैं | हर महिला और पुरुष एक 9 से 5 की नौकरी करता है |अपना कमाता है अपना खाता है | अमेरिका ,कनाडा , ऑस्ट्रेलिया ,इंग्लैंड और यूरोप के देशों में जिनमे पूंजीवादी