क्या आज की पूंजीवादी खेती के कारण विश्व में जल की समस्या उत्पन्न हुई है ?
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नमस्कार मित्रों जैसा कि आप जानते हैं कि भारत में और विश्व में आने वाले दिनों में पानी की बहुत ही ज्यादा समस्या होने वाली है ।मीडिया और सरकार दिन रात भूमिगत जल के बारे में चिल्लाते रहते हैं ।छोटे-छोटे बच्चों को स्कूलों में यह जानकारी दी जाती है कि पानी व्यर्थ ना करें ।होली पर उपदेश दिया जाता है कि पानी व्यर्थ ना बहाएं ।क्या पानी की समस्या का मुख्य कारण यह है या कुछ और।
आजकल अधिकतर पूंजीवादी खेती की जाती है। पूंजीवादी खेती में किसी क्षेत्र में एक ही तरह की फसल पैदा की जाती है ।जैसे कि पंजाब में दो फसलें गेहूं और धान ही पैदा किया जाता जब तक है।
हम अपने प्रतिदिन के भोजन में केवल और केवल गेहूं और धान पर ही निर्भर है। उत्तर नहीं ,? तो फिर सरकार केवल और केवल धान और गेहूं के लिए ही समर्थन मूल्य क्यों देती है क्या हमें दालें ,मोटा अनाज, जड़ी बूटियों, फल सब्जियों आदि की जरूरत नहीं है। फिर सरकार क्यों केवल और केवल गेहूं और धान की ही एमएसपी निर्धारित करती है। एक तरफ तो कि सरकार कह रही है कि पानी व्यर्थ मत करें दूसरी तरफ सरकार ऐसी फसलों को बढ़ावा दे रही है जिनकी पानी की खपत बहुत ही अधिक है जैसे कि उदाहरण के लिए पंजाब और हरियाणा की जमीन और पर्यावरण धान की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। धान की फसल के बारे में एक मशहूर कहावत प्रचलित है कि धान पैर पानी में और सिर धूप में होना चाहिए ।ना तो चावल पंजाब और हरियाणा के दिन प्रतिदिन के आहार में ही कोई जरूरी अन्न है ।धान की फसल बोने के कारण पंजाब का पंजाब और हरियाणा का भूमिगत जल लगातार नीचे और नीचे की ओर जा रहा है। किसान को मजबूर किया जाता है कि वह केवल और केवल धान की फसल की खेती करें ।क्योंकि केवल धान की फसल ही सरकार द्वारा खरीदा जाता है ।एक तो सरकार भूमिगत जल का रोना रोती रहती है लेकिन धान की खरीद फिर भी बंद नहीं करती ।किसान अगर सरकार किसानों का भला चाहती होती तो वह किसानों की जमीन को बहुत बंजर होने से रोकने के लिए धान की फसल को खरीदना बंद करके क्या कारण है कि पंजाब और हरियाणा की मुख्य फसल धान ना होने के बावजूद भी सरकार धान की फसल को बचाने के लिए इतना जोर लगाती है तो इसका उत्तर यह है कि पंजाब और हरियाणा की धरती चाहे बंजर हो जाए लेकिन खाड़ी के देशों और यूरोप की भूख मिटाने के लिए पंजाब और हरियाणा की धरती को बंजर किया जा रहा है । पूंजीवादी खेती एक पूर्णतय अप्राकृतिक खेती है। जिसने पर्यावरण का विनाश और किसानों और उपभोक्ताओं की आर्थिक लूट गई है ।अब समय आ गया है की सरकार को फालतू में कृषि में दखल देने कि अपनी निति से बाज आना चाहिए ।
अगर हम सनातन वैदिक जैविक मिश्रित खेती की तरफ लौटते हैं तो हमको पानी की बहुत ही कम आवश्यकता रह जाएगी । क्योंकि आजकल की पूर्णिमा की खेती जमीन और पानी की उपलब्धता को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि पूंजीवादी कंपनियों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती है।
अंत में हम जानने की कोशिश करते हैं कि किसान ने वैदिक मिश्रित खेती को छोड़ कार आजकल की पूंजीवादी खेती करना क्यों शुरू कर दिया | इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार दुबारा दिया जाने वाला नुयुनतम समर्थन मूल्य (MSP) | नुयुनतम समर्थन मूल्य किसान को किसी एक ही फसल लगातार बीजने पर मजबूर करता है | जैसे पंजाब में केवल गेहूं और धान के MSP के कारण किसान को गेहूं और धान बोने पर मजबूर होना पड़ता है | और किसी फसल की सरकार दुबारा खरीद ना होने के कारण किसान लगातार बार बार बोही फसल बीजता है | किसान को समझना पड़ेगा कीMSP सरकार किसानो को नहीं बल्कि पूंजीपति लोगो को देती है ताकि किसान मिश्रित खेती से दूर रहे और किसान को उर्वरक ,बीज , आदि बाजार से खरीदने पड़े | सरकार अगर किसानो का भला चाहती है तो सरकार को चाहिए जितनी सब्सिडी वह किसानों पर 1 साल में खर्च करती है किसानों के खातों में सीधा ट्रांसफर करें जैसे कि मान लो एक किसान के हिस्से में 10000 रुपए मासिक आते हैं तो बारको चाहिए सरकार को चाहिए कि ₹10000 महीना किसान के खाते में सीधा ट्रांसफर करें और फालतू में किसान को मजबूर ना करें कि वह वही फसलें दीजिए जिससे की सारी सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर हो जाए जैसे कि आजकल की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर है।
सनातन माँडल के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारा you tube चैनल subsrcibe करें https://youtu.be/ zNq3zTYktn0
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नमस्कार मित्रों जैसा कि आप जानते हैं कि भारत में और विश्व में आने वाले दिनों में पानी की बहुत ही ज्यादा समस्या होने वाली है ।मीडिया और सरकार दिन रात भूमिगत जल के बारे में चिल्लाते रहते हैं ।छोटे-छोटे बच्चों को स्कूलों में यह जानकारी दी जाती है कि पानी व्यर्थ ना करें ।होली पर उपदेश दिया जाता है कि पानी व्यर्थ ना बहाएं ।क्या पानी की समस्या का मुख्य कारण यह है या कुछ और।
आजकल अधिकतर पूंजीवादी खेती की जाती है। पूंजीवादी खेती में किसी क्षेत्र में एक ही तरह की फसल पैदा की जाती है ।जैसे कि पंजाब में दो फसलें गेहूं और धान ही पैदा किया जाता जब तक है।
हम अपने प्रतिदिन के भोजन में केवल और केवल गेहूं और धान पर ही निर्भर है। उत्तर नहीं ,? तो फिर सरकार केवल और केवल धान और गेहूं के लिए ही समर्थन मूल्य क्यों देती है क्या हमें दालें ,मोटा अनाज, जड़ी बूटियों, फल सब्जियों आदि की जरूरत नहीं है। फिर सरकार क्यों केवल और केवल गेहूं और धान की ही एमएसपी निर्धारित करती है। एक तरफ तो कि सरकार कह रही है कि पानी व्यर्थ मत करें दूसरी तरफ सरकार ऐसी फसलों को बढ़ावा दे रही है जिनकी पानी की खपत बहुत ही अधिक है जैसे कि उदाहरण के लिए पंजाब और हरियाणा की जमीन और पर्यावरण धान की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। धान की फसल के बारे में एक मशहूर कहावत प्रचलित है कि धान पैर पानी में और सिर धूप में होना चाहिए ।ना तो चावल पंजाब और हरियाणा के दिन प्रतिदिन के आहार में ही कोई जरूरी अन्न है ।धान की फसल बोने के कारण पंजाब का पंजाब और हरियाणा का भूमिगत जल लगातार नीचे और नीचे की ओर जा रहा है। किसान को मजबूर किया जाता है कि वह केवल और केवल धान की फसल की खेती करें ।क्योंकि केवल धान की फसल ही सरकार द्वारा खरीदा जाता है ।एक तो सरकार भूमिगत जल का रोना रोती रहती है लेकिन धान की खरीद फिर भी बंद नहीं करती ।किसान अगर सरकार किसानों का भला चाहती होती तो वह किसानों की जमीन को बहुत बंजर होने से रोकने के लिए धान की फसल को खरीदना बंद करके क्या कारण है कि पंजाब और हरियाणा की मुख्य फसल धान ना होने के बावजूद भी सरकार धान की फसल को बचाने के लिए इतना जोर लगाती है तो इसका उत्तर यह है कि पंजाब और हरियाणा की धरती चाहे बंजर हो जाए लेकिन खाड़ी के देशों और यूरोप की भूख मिटाने के लिए पंजाब और हरियाणा की धरती को बंजर किया जा रहा है । पूंजीवादी खेती एक पूर्णतय अप्राकृतिक खेती है। जिसने पर्यावरण का विनाश और किसानों और उपभोक्ताओं की आर्थिक लूट गई है ।अब समय आ गया है की सरकार को फालतू में कृषि में दखल देने कि अपनी निति से बाज आना चाहिए ।
अगर हम सनातन वैदिक जैविक मिश्रित खेती की तरफ लौटते हैं तो हमको पानी की बहुत ही कम आवश्यकता रह जाएगी । क्योंकि आजकल की पूर्णिमा की खेती जमीन और पानी की उपलब्धता को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि पूंजीवादी कंपनियों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती है।
अंत में हम जानने की कोशिश करते हैं कि किसान ने वैदिक मिश्रित खेती को छोड़ कार आजकल की पूंजीवादी खेती करना क्यों शुरू कर दिया | इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार दुबारा दिया जाने वाला नुयुनतम समर्थन मूल्य (MSP) | नुयुनतम समर्थन मूल्य किसान को किसी एक ही फसल लगातार बीजने पर मजबूर करता है | जैसे पंजाब में केवल गेहूं और धान के MSP के कारण किसान को गेहूं और धान बोने पर मजबूर होना पड़ता है | और किसी फसल की सरकार दुबारा खरीद ना होने के कारण किसान लगातार बार बार बोही फसल बीजता है | किसान को समझना पड़ेगा कीMSP सरकार किसानो को नहीं बल्कि पूंजीपति लोगो को देती है ताकि किसान मिश्रित खेती से दूर रहे और किसान को उर्वरक ,बीज , आदि बाजार से खरीदने पड़े | सरकार अगर किसानो का भला चाहती है तो सरकार को चाहिए जितनी सब्सिडी वह किसानों पर 1 साल में खर्च करती है किसानों के खातों में सीधा ट्रांसफर करें जैसे कि मान लो एक किसान के हिस्से में 10000 रुपए मासिक आते हैं तो बारको चाहिए सरकार को चाहिए कि ₹10000 महीना किसान के खाते में सीधा ट्रांसफर करें और फालतू में किसान को मजबूर ना करें कि वह वही फसलें दीजिए जिससे की सारी सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर हो जाए जैसे कि आजकल की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर है।
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