क्या आज कल की पूंजीवादी खेती प्रकृति के विरुद्ध है ?
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जैसे कि आप जानते ही हो की आज कल की पूंजीवादी खेती में क्षेत्र में एक ही तरह की फसल की बिजाई की जाती है । जैसे कि पंजाब और हरियाणा में गर्मियों में धान और सर्दियों में अधिकतर गेहूं की कृषि की जाती है । अगर आप सर्दियों में पंजाब के खेतों में लिखेंगे देखोगे तो आपको गेहूं की गेहूं नजर आएगी गर्मियों में आपको धान ही धान नजर आएगी क्या प्रकृति में केवल और केवल एक ही तरीके की वनस्पति होती है अगर आप प्रकृति को देखोगे तो आप आओगे कि आपको वनस्पति में विभिन्नता दिखाई देगी जोकि आजकल कि पूंजीवादी वादी खेती में बिल्कुल ही दिखाई नहीं देती । लेकिन सनातन मिश्रित खेती में किसान केवल धान जागे या गेहूं की फसल ही पैदा नहीं करता था वह विभिन्न प्रकार की दालें , मोटे अनाज , फल सब्जियां, जड़ी बूटियां, लकड़ी के लिए विभिन्न तरीके के वृक्ष और पौधे उगाता था ।सनातन मिश्रित खेती प्रकृति के अनुकूल है क्योंकि इसमें प्रकृति की तरह ही अलग अलग फसलें दाल सब्जी ,फल ,जड़ी बूटियां आदि बोई जाती है जोकि जैव विविधता के लिए बहुत ही आवश्यक है यह कई फसलें एक दूसरे के अनुकूल भी है इस तरह हम कह सकते हैं कि सनातन मिश्रित खेती पूर्णता कृति प्राकृतिक खेती है और आजकल कि पूंजीवादी खेती अप्राकृतिक खेती है इसलिए क आजकल की खेती को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है । आजकल की पूंजीवादी खेती प्रकृति के बिल्कुल ही विपरीत है। देर सबेर या तो प्रकृति पूंजीवादी खेती को समाप्त कर देगी या प्रकृति स्वयं नष्ट हो जाएगी।
दूसरा क्या हम अपने प्रतिदिन के भोजन में केवल और केवल गेहूं और धान पर ही निर्भर है। उत्तर नहीं ,? तो फिर सरकार केवल और केवल धान और गेहूं के लिए ही समर्थन मूल्य क्यों देती है क्या हमें दालें ,मोटा अनाज, जड़ी बूटियों, फल सब्जियों आदि की जरूरत नहीं है। फिर सरकार क्यों केवल और केवल गेहूं और धान की ही एमएसपी निर्धारित करती है। एक तरफ तो कि सरकार कह रही है कि पानी व्यर्थ मत करें दूसरी तरफ सरकार ऐसी फसलों को बढ़ावा दे रही है जिनकी पानी की खपत बहुत ही अधिक है जैसे कि उदाहरण के लिए पंजाब और हरियाणा की जमीन और पर्यावरण धान की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। धान की फसल के बारे में एक मशहूर कहावत प्रचलित है कि धान पैर पानी में और सिर धूप में होना चाहिए ।ना तो चावल पंजाब और हरियाणा के दिन प्रतिदिन के आहार में ही कोई जरूरी अन्न है ।धान की फसल बोने के कारण पंजाब का पंजाब और हरियाणा का भूमिगत जल लगातार नीचे और नीचे की ओर जा रहा है। किसान को मजबूर किया जाता है कि वह केवल और केवल धान की फसल की खेती करें ।क्योंकि केवल धान की फसल ही सरकार द्वारा खरीदा जाता है ।एक तो सरकार भूमिगत जल का रोना रोती रहती है लेकिन धान की खरीद फिर भी बंद नहीं करती ।किसान अगर सरकार किसानों का भला चाहती होती तो वह किसानों की जमीन को बहुत बंजर होने से रोकने के लिए धान की फसल को खरीदना बंद करके क्या कारण है कि पंजाब और हरियाणा की मुख्य फसल धान ना होने के बावजूद भी सरकार धान की फसल को बचाने के लिए इतना जोर लगाती है तो इसका उत्तर यह है कि पंजाब और हरियाणा की धरती चाहे बंजर हो जाए लेकिन खाड़ी के देशों और यूरोप की भूख मिटाने के लिए पंजाब और हरियाणा की धरती को बंजर किया जा रहा है । पूंजीवादी खेती एक पूर्णतय अप्राकृतिक खेती है। जिसने पर्यावरण का विनाश और किसानों और उपभोक्ताओं की आर्थिक लूट गई है ।अब समय आ गया है की सरकार को फालतू में कृषि में दखल देने कि अपनी निति से बाज आना चाहिए ।
अंत में हम जानने की कोशिश करते हैं कि किसान ने वैदिक मिश्रित खेती को छोड़ कार आजकल की पूंजीवादी खेती करना क्यों शुरू कर दिया | इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार दुबारा दिया जाने वाला नुयुनतम समर्थन मूल्य (MSP) | नुयुनतम समर्थन मूल्य किसान को किसी एक ही फसल लगातार बीजने पर मजबूर करता है | जैसे पंजाब में केवल गेहूं और धान के MSP के कारण किसान को गेहूं और धान बोने पर मजबूर होना पड़ता है | और किसी फसल की सरकार दुबारा खरीद ना होने के कारण किसान लगातार बार बार बोही फसल बीजता है | किसान को समझना पड़ेगा कीMSP सरकार किसानो को नहीं बल्कि पूंजीपति लोगो को देती है ताकि किसान मिश्रित खेती से दूर रहे और किसान को उर्वरक ,बीज , आदि बाजार से खरीदने पड़े | सरकार अगर किसानो का भला चाहती है तो सरकार को चाहिए जितनी सब्सिडी वह किसानों पर 1 साल में खर्च करती है किसानों के खातों में सीधा ट्रांसफर करें जैसे कि मान लो एक किसान के हिस्से में 10000 रुपए मासिक आते हैं तो बारको चाहिए सरकार को चाहिए कि ₹10000 महीना किसान के खाते में सीधा ट्रांसफर करें और फालतू में किसान को मजबूर ना करें कि वह वही फसलें दीजिए जिससे की सारी सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर हो जाए जैसे कि आजकल की सारी कृषि पूंजीवादी कंपनियों पर निर्भर है।
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