डीज़ल पेट्रोल में एथेनॉल का मिश्रण आपनी जगह ठीक है लेकिन असली आत्मनिर्भरता तो localizaion के मॉडल से आयेगी । जिसमे आपकी जरूरत का सारा सामान आस पास से ही आ जायेगा । जैसे आजकल लोग आश्रीवाद का आटा इस्तेमाल करतें हैं । जिसका एक प्लांट कपूरथला पंजाब में लगा हुआ है । अब होता क्या है पहले अंबाला जोकि कपूरथला से लगभग 190 किलोमीटर दूर है वहां का गेहूँ पहले 190 किलोमीटर दूर कपुरथले के आशीर्वाद के प्लांट में जायेगा । फिर पिसा हुआ आटा वापिस अंबाला आएगा । इस प्रक्रिया में जो यातायात उत्तपन्न होगा उसके लिये विदेशों से तेल आयात करवाना पड़ेगा । इसको globalization का मॉडल कहतें हैं यानि global consumption global production । अब अगर इसके स्थान पर सरकारशून्य तकनीक के उत्पादों जैसे सरसों का तेल , आटे आदि के उत्पादन को कुटीर उद्योग के लिये आरक्षित कर दे । तो यह 90% व्यर्थ की यातायात समाप्त हो जाएगी । और साथ में क्रूड तेल पर विदेशों से निर्भरता कम हो जाएगी । और यकीन मानिये इससे आशीर्वाद का आटा खाने से आप मंगल ग्रह पर नहीं पहुँच जाएंगे ।
निर्भरता चाहे रूस पर हो चाहे अरब पर ,अच्छी नहीं होती । असली आत्मनिर्भरता local consumption local production के मॉडल से ही आएगी । इलेक्ट्रॉनिक वाहन ,एथॉनल आदि तो दिल बहलाने के लिये ग़ालिब एक ख्याल अच्छा है ,वह वाली बात है।
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