SANATANI HOME STORAGE VS CAPITALIST STORAGE
पूंजी वादी स्टोरेज vs सनातनी गृह भंडारण
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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेगें पूंजी वादी स्टोरेज vs सनातनी गृह भंडारण के बारे में | हम चर्चा करेगें की कैसे सनातनी गृह भंडारण ,पूंजीवादी स्टोरेज से हरेक पैमाने पर अच्छा है | और सनातनी गृह भंडारण हमें बेरोज़गारी , महंगाई , मिलावट , प्रदूषण , किसान और उपभोगता के लूट आदि से छुटकारा दिला सकता है
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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेगें पूंजी वादी स्टोरेज vs सनातनी गृह भंडारण के बारे में | हम चर्चा करेगें की कैसे सनातनी गृह भंडारण ,पूंजीवादी स्टोरेज से हरेक पैमाने पर अच्छा है | और सनातनी गृह भंडारण हमें बेरोज़गारी , महंगाई , मिलावट , प्रदूषण , किसान और उपभोगता के लूट आदि से छुटकारा दिला सकता है
सबसे पहले हम जान लेते हैं कि पूंजी वादी स्टोरेज क्या है | अनाज या अन्य खाद्य पदार्थ जैसे के गेहूं , चावल , मूंगी आदि का भंडारण बहुत बड़ी मात्रा में कुछ सीमित व्यक्तियों ,कुछ सीमित स्थानों पर भंडारण पूंजीवादी भण्डारण कहलाता है | इसे पूंजीवादी भण्डारण इसलिए कहा जाता है क्योकि यहाँ पर आनाज और अन्य खाद्य पदार्थ कुछ गिने चुने पूंजीपतियो के नियंत्रण में होते हैं |
दूसरी और सनातन गृह भंडारण में अनाज या अन्य खाद्य पदार्थ जैसे के गेहूं , चावल , मूंगी आदि का भंडारण बहुत ही सीमित मात्रा में जितना की इक परिवार के लिए आवश्यक है उसका भंडारण उपभोक्ता के अनगिनत घरों में ही होता है |इसे सनातन गृह भंडारण इसलिए कहा जाता है क्योकि यहाँ पर आनाज और अन्य खाद्य पदार्थ कुछ गिने चुने पूंजीपतियो के नियंत्रण में ना होकर अनगिनत व्यक्तिओं के पास होता है |
अब हम पूंजीवादी स्टोरेज vs सनातनी गृह भंडारण के गुण और दोषों के बारे में चर्चा करेगें |
महंगाई और किसान व उपभोगता की लूट :-
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पूंजीवादी स्टोरेज में कुछ चंद पूंजीपति कम्पनीज ही अनाज का खरीद मूल्य और बेच मूल्य तय करते हैं क्योकि इस व्यवस्था में अनाज कुछ पूंजीवादी कम्पनीज ही खरीदती हैं इसलिए वह फसलों की खरीद के समय पर मिल कर खरीद मुले तय करते है जैसे पेप्सी और कोका कोला दो बड़ी पूंजीवादी कम्पनीज हैं टेलीविज़न के परदे पर यह विज्ञपानों में एक दुसरे की दुश्मन प्रतीत होती हैं असल में यह पूर्णतय आपस में मिली हुई हैं इसका प्रमाण है कि आपको पेस्पी और कोका कोला के दाम में एक नए पैसे का अंतर नहीं दिखेगा | बेचने के समय पर भी यह लागत मूल्य से कहीं अधिक बेच मूल्य तय करती हैं क्योकि सारा अनाज इनके नियन्त्रण में होता है इसलिए यह किसान को दाम कम देती हैं और उपभोक्ता से बहुत अधिक दाम वसूलती हैं | उदाहरण के अच्छी से अच्छी बासमती के दाम 35 रूपए किलो हैं एक किलो धान से लगभग 67% चावल निकलता है इस हिसाब से एक किलो का बासमती चावल का लागत मूल्य लगभग 53 रुपए पड़ता है | बाकी 33% RICE BRAN , HUSK आदि भी बिकता है जो प्रोसेसिंग और ट्रांसपोर्टेशन के खर्च निकालने के लिए पर्याप्त है | इसतरह चावल का अधिकतम मूल्य 60 -70 रूपए से अधिक नहीं होना चाहिए | परन्तु आपको घटिया से घटिया चावल भी 100 रूपए किलो से कम नहीं पड़ता | यह 30 -40 रूपए सीधे सीधे किसान और उपभोगता की लूट है |तभी आपने देखा होगा कि किसान आजकल आत्महत्या करने पर मजबूर है और उपभोगता महंगाई से त्रस्त है |
इसके विपरीत सनातन गृह भंडारण में उपभोक्ता सबसे पहले यह अनुमान लगता है कि साल भर में उसके परिवार में कितने चावल ,गेहूं ,दालों आदि की जरुरत होगी ,उसके बाद उपभोक्ता सीधा किसान से अपनी जरुरत का अनाज आदि खरीदता है और अपने घर में स्टोर कर लेता है | इस व्यवस्था की सबसे विशेष बात यह है कि किसान के फसल के दाम किसी एक व्यक्ति के द्वारा तय नहीं होते अनगिनत खरीददार और किसानो के कारण ना तो किसान की लूट होती है ना ही उपभोगता की | अगर आप आज भी सीधे किसान से अच्छी किस्म का बासमती धान खरीदते है तो आपको 45 से 50 रूपए किलो मिल जायेगा | किसी चक्की पर चावल निकल कर यह चावल आप को अधिक से अधिक 70 रूपए में पड़ जायेगा और यह क्वालिटी आप को बाज़ार में से 250 किलो वाले चावल में भी नहीं मिलेगी |
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पूंजीवादी स्टोरेज में कुछ चंद पूंजीपति कम्पनीज ही अनाज का खरीद मूल्य और बेच मूल्य तय करते हैं क्योकि इस व्यवस्था में अनाज कुछ पूंजीवादी कम्पनीज ही खरीदती हैं इसलिए वह फसलों की खरीद के समय पर मिल कर खरीद मुले तय करते है जैसे पेप्सी और कोका कोला दो बड़ी पूंजीवादी कम्पनीज हैं टेलीविज़न के परदे पर यह विज्ञपानों में एक दुसरे की दुश्मन प्रतीत होती हैं असल में यह पूर्णतय आपस में मिली हुई हैं इसका प्रमाण है कि आपको पेस्पी और कोका कोला के दाम में एक नए पैसे का अंतर नहीं दिखेगा | बेचने के समय पर भी यह लागत मूल्य से कहीं अधिक बेच मूल्य तय करती हैं क्योकि सारा अनाज इनके नियन्त्रण में होता है इसलिए यह किसान को दाम कम देती हैं और उपभोक्ता से बहुत अधिक दाम वसूलती हैं | उदाहरण के अच्छी से अच्छी बासमती के दाम 35 रूपए किलो हैं एक किलो धान से लगभग 67% चावल निकलता है इस हिसाब से एक किलो का बासमती चावल का लागत मूल्य लगभग 53 रुपए पड़ता है | बाकी 33% RICE BRAN , HUSK आदि भी बिकता है जो प्रोसेसिंग और ट्रांसपोर्टेशन के खर्च निकालने के लिए पर्याप्त है | इसतरह चावल का अधिकतम मूल्य 60 -70 रूपए से अधिक नहीं होना चाहिए | परन्तु आपको घटिया से घटिया चावल भी 100 रूपए किलो से कम नहीं पड़ता | यह 30 -40 रूपए सीधे सीधे किसान और उपभोगता की लूट है |तभी आपने देखा होगा कि किसान आजकल आत्महत्या करने पर मजबूर है और उपभोगता महंगाई से त्रस्त है |
इसके विपरीत सनातन गृह भंडारण में उपभोक्ता सबसे पहले यह अनुमान लगता है कि साल भर में उसके परिवार में कितने चावल ,गेहूं ,दालों आदि की जरुरत होगी ,उसके बाद उपभोक्ता सीधा किसान से अपनी जरुरत का अनाज आदि खरीदता है और अपने घर में स्टोर कर लेता है | इस व्यवस्था की सबसे विशेष बात यह है कि किसान के फसल के दाम किसी एक व्यक्ति के द्वारा तय नहीं होते अनगिनत खरीददार और किसानो के कारण ना तो किसान की लूट होती है ना ही उपभोगता की | अगर आप आज भी सीधे किसान से अच्छी किस्म का बासमती धान खरीदते है तो आपको 45 से 50 रूपए किलो मिल जायेगा | किसी चक्की पर चावल निकल कर यह चावल आप को अधिक से अधिक 70 रूपए में पड़ जायेगा और यह क्वालिटी आप को बाज़ार में से 250 किलो वाले चावल में भी नहीं मिलेगी |
गुणवता :-
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पूंजीवादी व्यवस्था में अनाज आदि की खरीद और प्रोसेसिंग आदि पर उपभोगता का कोई नियन्त्रण नहीं रहता | जैसे अगर आप बाज़ार से पीसा हुआ आटा खरीदते हैं तो इस आटे में ख़राब गेंहू , पुराना बचा हुआ ब्रेड , और अन्य सस्ता सामान भी पिसा जाता है | चोकर जोकि आपकी सेहत की लिए अच्छा है वो भी निकाल लिया जाता | बड़ी बड़ी आता मिलों में गेंहू बहुत ही तेज गति से चलने वाली मशीनों से पीसा जाता है | जिस कारण गेंहू के कण जल जाते हैं और बहुत सारे शरीर के लिए जरुरी तत्व नष्ट हो जाते है | इन्ही जले हुए कणों के कारण रोटी का सवाद चला जाता है | जब आप बाज़ार से सीधा कोई प्रोसेस्ड किया हुआ आनाज जैसे आटा ,चावल , आदि खरीदते हैं तो आप ORAGNIC तरीके से तैयार हुआ आनाज नहीं खरीद सकते | पिसी हुई हल्दी आदि में से कैंसर रोधक CURCUMIN आदि निकाल लिया जाता है | चावल के ऊपर से जरुरी परत निकाल ली जाती है | सरसों के तेल में बहुत ही घटिया पाम आयल मिलाया जाता है | कुल मिला कर जहाँ पर भी संभव होती है मिलावट की जाती है , जरुरी तत्व निकाल लिए जातें है ,गलत तरीके से प्रोसेसिंग की जाती है |
इसके विपरीत अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद आदि पर पूरी तरह उपभोगता का नियन्त्र रहता है | जैसे की जब आप सीधा किसानों से अनाज आदि खरीदते हैं तो आप ORGANIC तरीके से पैदा किया हुआ अनाज खरीद सकते हैं | प्रोसेसिंग पर भी आप का पूरा नियन्त्रण रहता है | आपके आटे में कोई मिलावट भी नहीं कर सकता | आप अपना अन्न कम गति से चलने वाली चक्की पर निकलवा सकते हैं जिससे आटे , मिर्च आदि के जरुरी तत्व जलते नहीं | इस व्यवस्था में आपके शरीर के लिए जरुरी तत्व कोई निकाल भी नहीं सकता | आप घर में भी चक्की , छोटा तेल आदि निकालने का सयंत्र लगा सकते हैं |जिस मरीज को कैंसर होता है तो उसकों घर में आर्गेनिक तरीके वीट ग्रास का जूस देने उसका कैंसर भी ठीक कर सकते हैं | सोचो अगर आर्गेनिक WHEAT ग्रास का जूस इतना लाभदायक है तो आर्गेनिक अन्न क्या कर सकता है | आप एक प्रयोग करो बाज़ार में से किसी अच्छी कंपनी की हल्दी लेकर आओ उसको देखो उसका रंग चटक पीला होता है लेकिन अगर आप हल्दी घर में पिसते हो तो उसका रंग लाली लिए होता | ऐसा इसलिये होता है क्योकि बाज़ार की हल्दी में मिलावट होती है और उसको रंग दिया जाता है |
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पूंजीवादी व्यवस्था में अनाज आदि की खरीद और प्रोसेसिंग आदि पर उपभोगता का कोई नियन्त्रण नहीं रहता | जैसे अगर आप बाज़ार से पीसा हुआ आटा खरीदते हैं तो इस आटे में ख़राब गेंहू , पुराना बचा हुआ ब्रेड , और अन्य सस्ता सामान भी पिसा जाता है | चोकर जोकि आपकी सेहत की लिए अच्छा है वो भी निकाल लिया जाता | बड़ी बड़ी आता मिलों में गेंहू बहुत ही तेज गति से चलने वाली मशीनों से पीसा जाता है | जिस कारण गेंहू के कण जल जाते हैं और बहुत सारे शरीर के लिए जरुरी तत्व नष्ट हो जाते है | इन्ही जले हुए कणों के कारण रोटी का सवाद चला जाता है | जब आप बाज़ार से सीधा कोई प्रोसेस्ड किया हुआ आनाज जैसे आटा ,चावल , आदि खरीदते हैं तो आप ORAGNIC तरीके से तैयार हुआ आनाज नहीं खरीद सकते | पिसी हुई हल्दी आदि में से कैंसर रोधक CURCUMIN आदि निकाल लिया जाता है | चावल के ऊपर से जरुरी परत निकाल ली जाती है | सरसों के तेल में बहुत ही घटिया पाम आयल मिलाया जाता है | कुल मिला कर जहाँ पर भी संभव होती है मिलावट की जाती है , जरुरी तत्व निकाल लिए जातें है ,गलत तरीके से प्रोसेसिंग की जाती है |
इसके विपरीत अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद आदि पर पूरी तरह उपभोगता का नियन्त्र रहता है | जैसे की जब आप सीधा किसानों से अनाज आदि खरीदते हैं तो आप ORGANIC तरीके से पैदा किया हुआ अनाज खरीद सकते हैं | प्रोसेसिंग पर भी आप का पूरा नियन्त्रण रहता है | आपके आटे में कोई मिलावट भी नहीं कर सकता | आप अपना अन्न कम गति से चलने वाली चक्की पर निकलवा सकते हैं जिससे आटे , मिर्च आदि के जरुरी तत्व जलते नहीं | इस व्यवस्था में आपके शरीर के लिए जरुरी तत्व कोई निकाल भी नहीं सकता | आप घर में भी चक्की , छोटा तेल आदि निकालने का सयंत्र लगा सकते हैं |जिस मरीज को कैंसर होता है तो उसकों घर में आर्गेनिक तरीके वीट ग्रास का जूस देने उसका कैंसर भी ठीक कर सकते हैं | सोचो अगर आर्गेनिक WHEAT ग्रास का जूस इतना लाभदायक है तो आर्गेनिक अन्न क्या कर सकता है | आप एक प्रयोग करो बाज़ार में से किसी अच्छी कंपनी की हल्दी लेकर आओ उसको देखो उसका रंग चटक पीला होता है लेकिन अगर आप हल्दी घर में पिसते हो तो उसका रंग लाली लिए होता | ऐसा इसलिये होता है क्योकि बाज़ार की हल्दी में मिलावट होती है और उसको रंग दिया जाता है |
व्यर्थ का यायायात
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पूंजीवादी स्टोरेज में व्यर्थ में अनाज इधर उधर होता रहता है | उदहारण के लिए धान ले लेते हैं , सबसे पहले धान ट्रेक्टर ट्रालीयों में भर भर के खेत से मंडीयों तक लाया जाता है फिर कोई बड़ी पूंजीपति कम्पनी जैसे KRBL LIMITED खरीद कर अपने गोदामों तक लेकर जाती है उदहारण के लिए जैसे KRBL लिमिटेड ने मान लो हरियाणा से धान ख़रीदा ,फिर ट्रकों में भरकर अपने पंजाब के प्लांट में पंहुचाया | उसके बाद धान से चावल निकाला ,फिर यह चावल ट्रकों में भर कर फिर हरियाणा के डिस्ट्रीब्यूटर तक गया , डिस्ट्रीब्यूटर के बाद उस शहर के रिटेल दुकानों तक ट्रकों में पहुंचता है जहाँ से धान चला था | उसके बाद हमारे घरों तक पंहुचा |
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पूंजीवादी स्टोरेज में व्यर्थ में अनाज इधर उधर होता रहता है | उदहारण के लिए धान ले लेते हैं , सबसे पहले धान ट्रेक्टर ट्रालीयों में भर भर के खेत से मंडीयों तक लाया जाता है फिर कोई बड़ी पूंजीपति कम्पनी जैसे KRBL LIMITED खरीद कर अपने गोदामों तक लेकर जाती है उदहारण के लिए जैसे KRBL लिमिटेड ने मान लो हरियाणा से धान ख़रीदा ,फिर ट्रकों में भरकर अपने पंजाब के प्लांट में पंहुचाया | उसके बाद धान से चावल निकाला ,फिर यह चावल ट्रकों में भर कर फिर हरियाणा के डिस्ट्रीब्यूटर तक गया , डिस्ट्रीब्यूटर के बाद उस शहर के रिटेल दुकानों तक ट्रकों में पहुंचता है जहाँ से धान चला था | उसके बाद हमारे घरों तक पंहुचा |
इसके विपरीत सनातन गृह भण्डारण व्यवस्था में किसान के खेत से सीधा धान उपभोगता तक पंहुचता था | उपभोगता धान सीधा छोटी चक्किओं पर निकलवा लेता था और अपने घर में स्टोर कर लेता था |
पूंजीवादी व्यवस्था में इतना सारा ताम झाम करने के बाबजूद हमें क्या मिला ? चावल | सनातनी व्यवस्था में हमें क्या मिला चावल | सनातनी व्यवस्था में नाममात्र यतायात के साधनों की जरूरत पड़ी जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में बेकार में चीज़े इधर उधर घूमती रहती हैं और प्रदुषण की समस्या पैदा होती रहती है | सनातन व्यवस्था में प्लास्टिक के पैकिंग की भी कोई आवश्यकता नहीं जबकि पूंजीवादी व्यवस्था बिना पैकिंग के नहीं चाल सकती |
रोज़गार
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सनातन व्यवस्था में बहुत से छोटी छोटी चक्किओं पर लाखों लोगो को रोजगार मिलता है जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में केवल कुछ हज़ार लोगो को रोज़गार मिलता है |
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सनातन व्यवस्था में बहुत से छोटी छोटी चक्किओं पर लाखों लोगो को रोजगार मिलता है जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में केवल कुछ हज़ार लोगो को रोज़गार मिलता है |
आपात कालीन स्थिति
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आपातकालीन स्थिति जैसे बाढ़ ,सुखा , युद्ध आदि में पूंजीवादी स्टोरेज किसी काम की नहीं | आपने देखा होगा की जब बाढ़ आ जाती है तो सरकार को तुरंत हलिकोप्टर आदि से रासन पहुँचाना पड़ता है | दो तीन दिन में ही बाढ़ में फैसे लोगो की हालत पतली हो जाती है | युद्ध आदि की पूंजी वादी स्टोरेज बिलकुल बेकार है | सेना दुश्मन से युद्ध लड़ेगी या रासन की व्यवस्था करेगी | पूंजीवादी स्टोरेज में क्योकि आनाज आदि का भण्डारण बड़े बड़े गोदामों में होता है दुश्मन देश इनको उड़ा सकता है | और युद्ध में सडकों ,पुल्लों आदि को नुक्सान पंहुचने पर हमारी सप्लाई लाइन कट जाती है | युद्ध में हम अपनी सेना की कोई मदद नहीं कर सकते | कुल मिलाकार पूजीवादी स्टोरेज से आप कोई लम्बा युद्ध नहीं लड़ सकते | आपात कालीन स्थितियों जैसे युद्ध बाढ़ सूखे आदि में आनाज आदि की जमकर कालाबाजरी होती है | जीवन के लिए जरुरी आनाज दो तीन गुने दामों पर बेचा जाता है
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आपातकालीन स्थिति जैसे बाढ़ ,सुखा , युद्ध आदि में पूंजीवादी स्टोरेज किसी काम की नहीं | आपने देखा होगा की जब बाढ़ आ जाती है तो सरकार को तुरंत हलिकोप्टर आदि से रासन पहुँचाना पड़ता है | दो तीन दिन में ही बाढ़ में फैसे लोगो की हालत पतली हो जाती है | युद्ध आदि की पूंजी वादी स्टोरेज बिलकुल बेकार है | सेना दुश्मन से युद्ध लड़ेगी या रासन की व्यवस्था करेगी | पूंजीवादी स्टोरेज में क्योकि आनाज आदि का भण्डारण बड़े बड़े गोदामों में होता है दुश्मन देश इनको उड़ा सकता है | और युद्ध में सडकों ,पुल्लों आदि को नुक्सान पंहुचने पर हमारी सप्लाई लाइन कट जाती है | युद्ध में हम अपनी सेना की कोई मदद नहीं कर सकते | कुल मिलाकार पूजीवादी स्टोरेज से आप कोई लम्बा युद्ध नहीं लड़ सकते | आपात कालीन स्थितियों जैसे युद्ध बाढ़ सूखे आदि में आनाज आदि की जमकर कालाबाजरी होती है | जीवन के लिए जरुरी आनाज दो तीन गुने दामों पर बेचा जाता है
इसके विपरीत सनातन गृह भंडारण में सभी जरुरी आनाज आदि हमारे घरों में स्टोर होने के कारण हम आपात कालीन स्थिति का बिना सरकार आदि पर निर्भर हुए डट कर मुकाबला कर सकते हैं | युद्ध आदि की स्थिति में हम अपनी फोज़ की मदद कर सकते हैं |
मित्रो एक अंग्रेजो के आने से पहले सन 1700 तक भारत दुनिया का सबसे आमीर देश था | उस अमीरी का कारण कोई न कोई व्यवस्था रही होगी वो क्या थी व्यवस्था | यह प्रयास है उस सनातन व्यवस्था को खोजने का जिसने भारत को लगातार 10000 साल तक विश्व का सबसे अमीर देश बना कर रखा |
Jabardast hm bhi kuch aisa hi katna chhte hai
जवाब देंहटाएंस्वयं यदि ये उपाय अपनाएं तो अति उत्तम रहे साथ ही हम अपने आसपास के सकारात्मक सोच वाले लोगों को इस प्रकार के कार्य करने को प्रेरित करें तो सुधार अवश्य ही होगा।
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन शनै शनै ही होगा।
Bahut hi utkrast aalekh hai।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी
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