पूंजीवादी कॉपीराइट और पेटेंट प्रणाली --------------------
नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे पूंजीवादी व्यवस्था के एक प्रमुख टूल कॉपीराइट पेटेंट के बारे में ।जैसे कि आप जानते हो कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अगर आप जकुछ नया अविष्कार करते हो तो उसको आप कॉपीराइट या प्रिंट करवा सकते हो। इसके बाद उस चीज का कोई भी अन्य व्यक्ति प्रयोग नहीं कर सकता। अगर वह व्यक्ति प्रयोग करता है तो उसको कॉपीराइट के मालिक<;को हर्जाना देना पड़ता है ।जैसे कि पेप्सी ने एक आलू की किस्म को कॉपीराइट अधिनियम 2001 के तहत कॉपीराइट करवा रखा है। गुजरात के कुछ किसानों ने पेप्सी की अनुमति के बगैर इस आलू की किस्म का उत्पादन कर लिया ।पेप्सी को जब पता लगा तो उसने किसानों पर मुकदमा दर्ज कर दिया और जुर्माने के तौर पर इन किसानों से लगभग डेढ़ करोड़ रूपया मांगे आजकल की पूंजीवादी न्याय व्यवस्था (कोर्ट )में भी पेप्सी की जीत हुई। दूसरी और सनातन अर्थव्यवस्था में कॉपीराइट और पेटंट का कोई भी प्रावधान नहीं है ।सनातन व्यवस्था में अगर कोई व्यक्ति कोई नई चीज का आविष्कार करता है तो सारे समाज का उस पर बराबर का अधिकार होता है ।जैसे कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखी जा हमारे ऋषि मुनियों ने आयुर्वेद की औषधियों का अविष्कार किया है सनातन भारत ने पर इन ऋषि-मुनियों ने तो कभी अपने अविष्कार की कभी कोई रायल्टी नहीं मांगी ।तुलसीदास ने कभी राम चरित्र मानस को कॉपीराइट नहीं किया ।पूंजीवादी कंपनियों ने एक आलू क्या ढूंढ लिया , उसको भी पेटेंट करवा लिया। पश्चिम की कोई भी खोज होती है तो उस पर त इस तरह पूंजीवादी व्यवस्थाएं इस बात को निश्चित करती है कि देश के सारे धन और संसाधनों पर कुछ चंद पूंजी पतियों का ही अधिकार हो ।जबकि सनातन व्यवस्थाओं में इस बात को यकीनी बनाया जाता है कि देश के धन और संसाधनों का समान रूप से वितरण हो ।क्या यह पूंजीवादी व्यवस्था है समाज और देश का भला कर सकती है या सनातन व्यवस्थाएं देश और विश्व के लिए उचित है। पूंजीवादी व्यवस्थाओं के कारण गरीब और गरीब होगा और अमीर के पास ही सारे धन और संसाधन इकट्ठे हो जाएंगे दूसरी तरफ सनातन मॉडल डिजाइन ही इस तरीके से किया गया है कि देश के संसाधनों पर कुछ चंद लोगों का नियंत्रण ना हो।
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