कैसे कम्युनिस्ट अनपढ़ माओ जेडोंग ने चीनी लोगों को हर तरह के जंगली को खाने पर मजबूर कर दिया जो आज भी जारी है ।
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मित्रो चीन के लोग हमेशा से ऐसे नही थे । कम्युनिस्टों के कुसाशन से पहले चीन भारत की तरह एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी । मांसाहार वहां पर इतने बड़े स्तर पर नही था । फिर ऐसा क्या हुआ कि चीनी लोग हर तरह के जंगली जानवर ,चमगादड, पैंगोलिन ,सांप ,आदि खाने लगे
बात 1958 की है, जब कामरेड माओ जेडोंग ने किसी आजकल के मॉडर्न वैज्ञनिक की सलाह पर एक अभियान शुरू किया था, जिसे Four Pests Campaign का नाम दिया था. इस अभियान के तहत चार पेस्ट को मारने का फैसला किया गया था. पहला था मच्छर, दूसरा मक्खी, तीसरा चूहा और चौथी थी हमारी प्यारी मासूम गौरैया.
मासूम कही जाने वाली गौरैया को कॉमरेड माओ जेडोंग ने ये कहकर मारने का फरमान सुना दिया था कि वह लोगों के अनाज खा जाती है. कहा गया कि गौरैया किसानों की मेहनत बेकार कर देती है और सारा अनाज खा जाती है.
चीन में उस समय के कम्युनिस्टों ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह फैला दिया. लोग भी बर्तन, टिन, ड्रम बजा-बजाकर चिड़ियों को उड़ाते. लोगों की कोशिश यही रहती कि गौरैया किसी भी हालत में बैठने न पाए और उड़ती रहे. बस फिर क्या था, अपने नन्हें परों को आखिर वो गौरैया कब तक चलाती. ऐसे में उड़ते-उड़ते वह इतनी थक जाती कि आसमान से सीधे जमीन पर गिर कर मर जाती. कोई गौरैया बच न जाए, ये पक्का करने के लिए उनके घोंसले ढूंढ़-ढूंढ़ कर उजाड़ दिए गए, जिनमें अंडे थे उन्हें फोड़ दिया गया और अगर किसी घोंसले में चिड़िया के बच्चे मिले तो उन्हें भी कम्युनिस्टों की क्रूरता का शिकार होना पड़ा.
जो कामरेड जितनी अधिक गौरैया का कत्ल करता, उसे उतना ही बड़ा इनाम भी मिलता. स्कूल-कॉलेज में होने वाले आयोजनों में गौरैया का कत्ल करने वालों को मेडल मिलते. जो जितनी अधिक गौरैया मारता, उसे उतनी ही अधिक तालियों से नवाजा जाता. जाहिर सी बात है, कम्यूनिस्टों ने लोगों में इस अभियान को इस तरह से फैलाया गया था कि लोगों को गौरैया का कत्ल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती थी
बहुत सारी गौरैया झुंड बनाकर पीकिंग स्थित पोलैंड के दूतावास में जा छुपीं. गौरैया को मारने के लिए दूतावास में घुसने जा रहे लोगों को वहां के अधिकारियों ने बाहर ही रोक दिया. लेकिन इंसान तो इंसान है, खासकर चीन के वो लोग जिनके सिर पर खून सवार हो. पूरे पोलिश दूतावास को चारों तरफ से घेर लिया गया. दो दिन तक लगातर ड्रम पीटे गए. आखिरकार ड्रमों के शोर से गौरैया के झुंड ने दम तोड़ दिया.
इस तरह सिरफिरी कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव में चीन में एक अभियान के तहत गौरैया का मारने का पाप तो लोगों ने कर दिया था. लेकिन महज दो सालों में ही अप्रैल 1960 आते-आते लोगों को इसका बेहद खौफनाक अंजाम भुगतना पड़ा. दरअसल, गौरैया सिर्फ अनाज नहीं खाती थी, बल्कि उन कीड़ों को भी खा जाती थी, जो अनाज की पैदावार को खराब करने का काम करते थे. गौरैया के मर जाने का नजीता ये हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने के बजाए घटने लगी. अक्ल से पैदल कामरेड माओ को समझ आ चुका था कि उनसे भयानक भूल हो गई है. उन्होंने तुरंत ही गौरैया को Four pests से हटने के आदेश जारी कर दिए. और गौरैया की जगह अब खटमल मारने पर जोर देने को कहा. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. टिड्डी और दूसरे कीड़ों की आबादी तेजी से बढ़ी. गौरैया तो पहले ही मारी जा चुकी थीं, जो उनकी आबादी पर लगाम लगाती. कीड़ों को मारने के लिए तरह-तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा, लेकिन पैदावार बढ़ने के बजाय घटती ही रही. और आगे चलकर इसने एक अकाल का रूप ले लिया, जिसमें करीब 4.5 करोड़ लोग भूखे मारे गए।
चीन के इस भयंकर अकाल से बचने के लिये आम चीनी नागरिकों ने जंगली जानवरों को खाना शुरू कर दिया । जिसको जो जानवर मिला सांप ,कुत्ता ,चूहा ,चमगादड उसने भूख मिटाने के लिये वह खाना शुरू कर दिया । क्योंकि यह कम्युनिस्ट आकाल कई सालों तक चला । किसानों ने भी भयंकर अकाल से बचने के लिये अपने खेतों को animal farms में बदल दिया । जो बच्चे अकाल के दौरान बड़े हुए उन्होंने कभी इन जंगली जानवरों के अलावा अपने आहार कुछ देखा ही नही । इस तरह अच्छे भले सभ्य चीनी समाज की food habits इन कम्युनिस्टों ने बदल दीं और चीनियों को जंगली बनने पर मजबूर कर दिया ।
अब इस कम्युनिस्ट चीन में urbanisation के चलते और चीनी लोगों की food habits में कम्युनिस्टों द्वारा जंगली जानवरो के चलते चीनी में हर जानवर चाहे वो चमगादड़ हो ,चाहे कॉकरोच सब की mass production होती है जिसको animal farming कहते है । इस animal farming के चलते कभी bird flu ,कभी स्वाइन फ्लू आदि होते रहते हैं । इसलिए हमारा सुझाव है कि कोरोना वायरस को कम्युनिस्ट वायरस कोरोना कहा जाए क्योंकि यह निरंतर आते वायरस कम्युनिस्ट विचारधारा जोकि मानवता और प्राकृति के विरुद्ध है ,उसके कारण उत्पन्न हो रहें है । कोरोना वायरस के बारे में विस्तार से जानने के लिये हमारा ब्लॉग पढें https://sanatanbharata.blogspot.com/2020/02/carona-virus.html?m=1
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यह सारा पागलपन एक सिरफिरे कम्युनिस्ट माओ के एक विशेष अभियान great leap forward का हिस्सा थी जिस के तहत चीन की महान संस्कृति को नष्ट कर दिया गया । जोकि कम्युनिज्म का विशेष सिद्धान्त है जिसके तहत आपके धर्म ,संस्कृति सभ्यता को नष्ट किया जाता है । क्योंकि कम्युनिस्ट आपके धर्म ,संस्कृति और सभ्यता को अपने रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट मानते हैं जिसको नष्ट करने के लिये theory of crticism अर्थात आपके धर्म संस्कृति को गाली दी जाती है ।
सोवियत संघ के अवसान के बाद कम्यूनिस्ट चीन ने अर्थव्यवस्था के पूँजीवादी मॉडल को अपना लिया लेकिन शासन और प्रसाशन व्यवस्था के लिये कम्युनिस्ट मॉडल अपना लिया । इस तरह दो राक्षसों के मिलन से जो महाराक्षस पैदा हुआ वह आज का चीन है जिसमें पूँजीवाद और कम्युनिज्म दोनों के दुर्गुण हैं । यहां पर मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूँ दोनों पूँजीवाद और कम्युनिज्म मॉडल दोनों सगे भाई है। विस्तार से जानने के लिये हमारा यह ब्लॉग पढें https://sanatanbharata.blogspot.com/2019/05/mass-production-by-limited-no-of-units.html?m=1
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