सनातन और विज्ञान क्या है ?
सनातन और विज्ञान क्या है ?
------------
जिसमें निम्नलिखित तीनों विशेषताएं है वो ही सनातन है । यही विज्ञान की भी सही परिभाषा है ।
1. जो सच है अर्थातजो आज भी उतना ही कारगर है जितना आज से लाखों साल पहले था और आज से हज़ारों साल बाद भी उतना ही कारगर रहेगा अर्थात जो निरंतर है ।
------------
जिसमें निम्नलिखित तीनों विशेषताएं है वो ही सनातन है । यही विज्ञान की भी सही परिभाषा है ।
1. जो सच है अर्थातजो आज भी उतना ही कारगर है जितना आज से लाखों साल पहले था और आज से हज़ारों साल बाद भी उतना ही कारगर रहेगा अर्थात जो निरंतर है ।
2. जो निर्विकार है जिसमे कभी कोई विकार नही उत्पन्न नही हो सकता।
3. जो पूर्णतय: प्राकृतिक है जो प्रकृति को किसी भी तरह हानि नहीं पहुँचाता ।
इन तीनो पैमानो पर जो चीज़ खरी उतरती है वही विज्ञान है और सनातन है ।
इन तीनो पैमानो पर जो चीज़ खरी उतरती है वही विज्ञान है और सनातन है ।
उदहारण के लिये आयुर्वेद सनातन है , विज्ञान है ।
1. आयुर्वेद आज भी उतना कारगर है ,जितना आज से लाखों साल पहले था । दूसरी तरफ 1945 में एलोपैथी की जान कहे जाने वाले पहले एंटीबायोटिक पेन्सिलिन का अविष्कार हुआ । जिसका प्रभाव 5 वर्ष तक रहा । फिर टेट्रासाइक्लिन जोकि एक एंटीबायोटिक था उससे बैक्टेरिया ने 10 वर्ष में ही immunity हासिल कर ली । अब अंतिम एंटीबायोटिक चल रहा है । एक बार यह एंटीबायोटिक खत्म तो फिर एलोपैथी भी खत्म । इसलिए एलोपैथी विज्ञान के और सनातन के निरंतरता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती ।
दूसरी तरफ किसी भी आयुर्वेदिक दवा का प्रभाव लाखों वर्षों के बाद भी खत्म नहीं हुआ । इसलिए निरंतरता के पैमाने पर आयुर्वेद खरा उतरता है । इसलिए आयुर्वेद विज्ञान है सनातन है । एलोपैथी नहीं ।
2. सनातन और विज्ञान के दूसरे पैमाने पर भी आयुर्वेद खरा उतरता है । आयुर्वेद की कोई भी औषधि में आज तक कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ । आयुर्वेद ने आज तक कोई भी दवा वापिस नहीं ली । अर्थात आयुर्वेद में लाखों वर्षों से कोई विकार उत्पन्न नही हुआ । दूसरी तरफ एलोपैथी में एक दवा पहले धूम धड़के के साथ शुरू कर दी जाती है फिर कुछ समय बाद उसे हानिकारक बता कर वापिस ले लिया जाता है उदहारण के लिये nimesulide जो एलोपैथी ने कुछ वर्ष पहले लॉन्च की थी आज कल liver को अत्याधिक नुकसान पहुंचाने के कारण आज विश्व भर में प्रतिबन्धित है । इसलिये क्योंकि एलोपैथी में विकार उत्पन्न होते रहते हैं इसलिए एलोपैथी सनातन और विज्ञान के दूसरे पैमाने पर खरी नहीं उतरती । इसलिये allopathy ना तो सनातन है ना विज्ञान है ।
3. तीसरा सनातन और वैज्ञानिक होने के लिए किसी भी पद्धति या व्यवस्था को प्रकृति के अनुरुप होना चाहिये अर्थात उससे प्रकृति की किसी भी प्रकार से क्षति ना होती हो । उदहारण के लिये chemical युक्त टूथपेस्ट । आजकल जो पेस्ट बनाएं जाते हैं उनमे प्रयुक्त रसायनों के कारण अगर वह पेट में चले जाएं तो नुकसान पहुँचाते हैं । इसलिये पेस्ट पर चेतावनी लिखी होती है । दूसरा पेस्ट में प्रयुक्त केमिकलों से जीवनदाई जल प्रदूषित होता है ,इसलिये chemical पेस्ट
सनातन और विज्ञान के पैमाने पर खरा नही उतरता । दूसरी तरफ घर में बना हुआ आयुर्वेदिक मंजन में क्योंकि केवल जड़ी बूटियां प्रयोग की जाती हैं इसलिये अगर यह गलती से बच्चों के पेट में चला जाए तो कोई नुकसान नहीं करता बल्कि कुछ लाभ ही करेगा अगर जल में चला जाये तो जल को दूषित नहीं करेगा । इसलिए आयुर्वेदिक मंजन विज्ञान और सनातन की इस अवधारणा पर खरा उतरता है । chemical पेस्ट नहीं ।
1. आयुर्वेद आज भी उतना कारगर है ,जितना आज से लाखों साल पहले था । दूसरी तरफ 1945 में एलोपैथी की जान कहे जाने वाले पहले एंटीबायोटिक पेन्सिलिन का अविष्कार हुआ । जिसका प्रभाव 5 वर्ष तक रहा । फिर टेट्रासाइक्लिन जोकि एक एंटीबायोटिक था उससे बैक्टेरिया ने 10 वर्ष में ही immunity हासिल कर ली । अब अंतिम एंटीबायोटिक चल रहा है । एक बार यह एंटीबायोटिक खत्म तो फिर एलोपैथी भी खत्म । इसलिए एलोपैथी विज्ञान के और सनातन के निरंतरता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती ।
दूसरी तरफ किसी भी आयुर्वेदिक दवा का प्रभाव लाखों वर्षों के बाद भी खत्म नहीं हुआ । इसलिए निरंतरता के पैमाने पर आयुर्वेद खरा उतरता है । इसलिए आयुर्वेद विज्ञान है सनातन है । एलोपैथी नहीं ।
2. सनातन और विज्ञान के दूसरे पैमाने पर भी आयुर्वेद खरा उतरता है । आयुर्वेद की कोई भी औषधि में आज तक कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ । आयुर्वेद ने आज तक कोई भी दवा वापिस नहीं ली । अर्थात आयुर्वेद में लाखों वर्षों से कोई विकार उत्पन्न नही हुआ । दूसरी तरफ एलोपैथी में एक दवा पहले धूम धड़के के साथ शुरू कर दी जाती है फिर कुछ समय बाद उसे हानिकारक बता कर वापिस ले लिया जाता है उदहारण के लिये nimesulide जो एलोपैथी ने कुछ वर्ष पहले लॉन्च की थी आज कल liver को अत्याधिक नुकसान पहुंचाने के कारण आज विश्व भर में प्रतिबन्धित है । इसलिये क्योंकि एलोपैथी में विकार उत्पन्न होते रहते हैं इसलिए एलोपैथी सनातन और विज्ञान के दूसरे पैमाने पर खरी नहीं उतरती । इसलिये allopathy ना तो सनातन है ना विज्ञान है ।
3. तीसरा सनातन और वैज्ञानिक होने के लिए किसी भी पद्धति या व्यवस्था को प्रकृति के अनुरुप होना चाहिये अर्थात उससे प्रकृति की किसी भी प्रकार से क्षति ना होती हो । उदहारण के लिये chemical युक्त टूथपेस्ट । आजकल जो पेस्ट बनाएं जाते हैं उनमे प्रयुक्त रसायनों के कारण अगर वह पेट में चले जाएं तो नुकसान पहुँचाते हैं । इसलिये पेस्ट पर चेतावनी लिखी होती है । दूसरा पेस्ट में प्रयुक्त केमिकलों से जीवनदाई जल प्रदूषित होता है ,इसलिये chemical पेस्ट
सनातन और विज्ञान के पैमाने पर खरा नही उतरता । दूसरी तरफ घर में बना हुआ आयुर्वेदिक मंजन में क्योंकि केवल जड़ी बूटियां प्रयोग की जाती हैं इसलिये अगर यह गलती से बच्चों के पेट में चला जाए तो कोई नुकसान नहीं करता बल्कि कुछ लाभ ही करेगा अगर जल में चला जाये तो जल को दूषित नहीं करेगा । इसलिए आयुर्वेदिक मंजन विज्ञान और सनातन की इस अवधारणा पर खरा उतरता है । chemical पेस्ट नहीं ।
अगर आप को कोई भी चीज़ को देखना है कि यह विज्ञान है या नही तो आप उसको इन तीन पैमानों पर कस सकते हैं । उदहारण के लिये नमस्ते विज्ञान है और सनातन है क्योंकि इसमें कोई दोष अभी तक सिद्ध नही हुआ जबकि हाथ मिलना विज्ञान नही है क्योंकि इसमें कई दोष हैं
इसी तरह अर्थव्यवस्था का आजकल का पूंजीवादी मॉडल पूरी तरह विज्ञान के विरुद्ध है क्योंकि इसने प्रकृति का नुक्सान ही किया है और इसमें हज़ारों दोष जैसे बेरोज़गारी ,महंगाई, प्रदूषण आदि उत्पन्न हो गए हैं । दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था का सनातन मॉडल मॉडल पूर्णतः दोष मुक्त है इसलिये विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है । और अधिक जानकारी के लिये हमारा ब्लॉग पढें sanatanbharata.blogspot.com
इसी तरह अर्थव्यवस्था का आजकल का पूंजीवादी मॉडल पूरी तरह विज्ञान के विरुद्ध है क्योंकि इसने प्रकृति का नुक्सान ही किया है और इसमें हज़ारों दोष जैसे बेरोज़गारी ,महंगाई, प्रदूषण आदि उत्पन्न हो गए हैं । दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था का सनातन मॉडल मॉडल पूर्णतः दोष मुक्त है इसलिये विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है । और अधिक जानकारी के लिये हमारा ब्लॉग पढें sanatanbharata.blogspot.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें