सारे विश्व में english calender क्यों हावी हो रहा है।
हम सबके मन में एक प्रश्न अक्सर उठता होगा कि आजकल प्रचलित अंग्रेजी कैलेंडर इतना अवैज्ञानिक होने बाबजूद सब देशों में प्रचलित क्यों हो गया है। भारत को छोड़ो , भारतीय तो हैं ही अंग्रेजों के गुलाम । रुस, जर्मनी, जापान , फ्रांस, चीन आदि देश भी क्यों मजबूर हैं कि अंग्रेजी कैलेंडर को ढो रहे हैं। विक्रमी पञ्चाङ्ग इतना वैज्ञानिक होने के बाबजूद प्रचलन में क्यों नही है ? इन सब प्रश्नों का उत्तर केवल एक संस्कृत के श्लोक में निहित है ,धर्मस्य मूल: अर्थ । अर्थात धर्म का मूल अर्थतन्त्र है । जैसा अर्थतन्त्र होगा धर्म भी उसी के अनुसार होगा । अगर अर्थतन्त्र विदेशी होगा तो धर्म नही बचेगा । यहाँ पर धर्म से अभिप्राय पूजा पद्धिति से नही है । आजकल विश्व में कौन से अर्थ तंत्र चल रहा है ? तो उसका उत्तर है । पूंजीवादी अर्थतन्त्र । पूंजीवादी अर्थतंत्र का मुख्य उद्देश्य विश्व के सारे संसाधनों पर कुछ चन्द पूंजीपतियों का नियन्त्र करवाना है। इस अर्थव्यवस्था का डिज़ाइन ही इस तरह से किया गया है । यह पूंजीवादी अर्थतन्त्र दो सिद्धान्तों पर टिका हुआ है । पहला है Globalisation अर्थात global consumption global production अर्थात कुल विश्व का उत्पादन किसी एक जगह होगा और transportation के माध्यम से उसको विश्व के विभिन्न देशों में पहुँचाया जाएगा । और दूसरा है mass production by limited number of units अर्थात विश्व का कुल उत्पादन कुछ चन्द बडी कंपनीओं द्वारा किया जाएगा । इन सिद्धान्तों को विस्तार से समझने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें ।https://sanatanbharata.blogspot.com/2019/…/blog-post_5.html…
अब इस पूँजीवादी सिस्टम में diversity की कोई जगह नही है। अगर सँसार में diversity अर्थात विविधता रहेगी तो कंपनियों में mass production नही हो सकता । उदहारण के लिए Ladies suit में uniformity एकरूपता ना होने के कारण भारतीय ladies readymade suit का mass production संभव नही है इसलिए भारतीय परिधानों के स्थान पर tv ,movies द्वारा लड़कियों के लिये jeans paint आदि को प्रमोट किया जाता है । फिल्मों में भारतीय साड़ी पहनी महिला को काम वाली बाई दिखाया जाता है ।और जीन्स पहनने वाली को मॉडर्न दिखाया जाता है । वो इसलियें क्योंकि जीन्स आदि का mass production हो सकता है भारतीय पारिधनो का नही ।
इस तरह diversity पूंजीवाद की अवधारणा के विपरित है । आजकल इस diversity को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा । आजकल सारा संसार पेंट शर्ट पहनता है । इसलिए आजकल विश्व में एक तरह भाषा ,एक तरह की भूषा ,एक तरह का खान पान, एक तरह का taxatation, एक तरह की न्याय व्यवस्था ,एक तरह की allopathy चिकित्सा वयवस्था ,एक तरह का education system ,एक तरह का संगीत ,और एक तरह के कैलेंडर को लागू किया जा रहा है तांकि पूंजीवादी कंपनियों को चलाने में कोई रुकावट ना हो । इससे आगे बढकर विश्व में एक करेंसी ,एक सरकार की अवधारणा पर काम हो रहा है ।
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