सनातन संस्कृति को पुर्नस्थापित करने का मार्ग
अगर तुमको लगता कि तुम्हारी संस्कृति महान तो उसको जी कर दिखायो किसने रोका है तुम्हे``
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आजकल मैं आजकल की पूंजीवादी न्याय व्यवस्था और सनातन न्याय व्यवस्था के बारे में लिखने की सोच रहा था कि लिखते लिखते इस बात का कारण पता लगा कि क्यो आजकल लोग संस्कृत, वेद आदि पढ़ाने में रुचि नही लेते। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो संस्कृति व्यावहार में नही होती वह समाप्त हो जाती है। तो क्या आज संस्कृत , हमारे वेद, दर्शन आदि हमारे व्यावहार में शामिल. हैं उत्तर है नही। क्या कारण हैं कि हमारे वेद दर्शन संस्कृत आदि हमारी रोजाना जिंदगी मे शामिल नही हैं I जैसे न्याय दर्शन को ही ले लो Iएक आम आदमी के जीवन में न्याय दर्शन की क्या जरूरत Iएक आम आदमी न्याय दर्शन क्यों पढे मुझे एक कारण बता दो। आजकल की जिंदगी में न्याय दर्शन पढकर हमारा क्या लाभ । चाणक्य आगे कहते हैं कि अगर तुम्हारी संस्कृति और तुम्हारा पतन हो रहा है तो उसके कारण तुम स्वयं हो। अगर तुम्हारी संस्कृति महान थी तो उसका पतन क्यों हो गया। तुम्हारे पतन का कारण तुम स्वयं हो ``Iअगर तुमको लगता कि तुम्हारी संस्कृति महान तो उसको जी कर दिखायो किसने रोका है तुम्हे``। यह अंतिम पंक्ति ही सारी समस्यायों का हल है । मान लो हम चाहते हैं कि लोग न्याय दर्शन पढ़ें तो हमे क्या करना होगा तो हमे वर्तमान आयतित पूंजीवादी न्याय व्यवस्था के सामने अपनी सनातन न्याय व्यवस्था का मॉडल रखना होगा । कहीं ना कहीं हम सनातन व्यावस्थायों का पूंजीवादी व्यवस्थयों का तुलनात्मक माडल रखने मे असफल रहें हैं। हम हमेशा पूंजीवादी न्याय व्यवस्था की कमियां निकालते रहते हैं लेकिन हम कभी सनातन न्याय व्यवस्था का मॉडल पेश ही नहीं कर पाये। इसलिए आजकल मैं पूंजीवादी व्यवस्थाओं और सनातन व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा हूं हमारे सनातन मॉडल चाहे कि वह न्यायिक व्यवस्था पर हो, चाहे शिक्षा व्यवस्था पर ,चाहे वह इन्वेस्टमेंट मॉडल हो ,चाहे गवर्नेस का मॉडल, चाहे टैक्सेशन का मॉडल चाहे ,सरकार चुनने का, जमीन का प्रबंधन का मॉडल हो चाहे, इस सामाजिक व्यवस्थाओं का मॉडल और चाहे फूड प्रोसेसिंग का मॉडल ,सब मॉडल मौजूद है और वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्थाओं से कहीं अच्छे और ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित है इन सारी सनातन व्यवस्थाओं के कारण सनातन भारत लगातार 10000 वर्षों तक दुनिया का विश्व गुरु और अमीर देश रहा है | हमें इन सब मॉडलओं का अध्ययन करना पड़ेगा और उनको पुनः स्थापित करना पड़ेगा जैसे कि हमने पूंजीवादी एलोपैथी मॉडल के सामने अपना सनातन वैदिक आयुर्वेदिक मॉडल दुनिया के सामने रखा हमने पूंजीवादी एलोपैथी मॉडल के सामने अपना सनातन योग का मॉडल रखा दुनिया जब एलोपैथी से दुखी होने लगी तो दोबारा अब आयुर्वेद और योग की ओर मुड़ने लगी |अब इससे हुआ क्या कि लोगों को आयुर्वेद और योग आदि को समझने के लिए संस्कृत और हमारे धर्मशास्त्र पढ़ने में रुचि होने लगी ||मैंने कहीं पढ़ा था कि एक अंग्रेज व्यक्ति को एलोपैथिक डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था कि तुम जिंदा नहीं बच पाओगे |उस व्यक्ति ने आयुर्वेद और योग के माध्यम से अपनी उस बीमारी का इलाज कर लिया फिर उस व्यक्ति की रुचि जागी यह योग और आयुर्वेद आया कहां से है तो उसको पता लगा यह योग और आयुर्वेद सनातन वैदिक धर्म की देन है ,तो तो उसने संस्कृत सीख कर हमारे धर्म ग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया और सनातन हिंदू धर्म को अपना लिया कहने का तात्पर्य यह है कि हमें दुनिया के सामने अपने मॉडल रखने होंगे दुनिया को। पूंजीवादी व्यवस्थाओं का विकल्प देना पड़ेगा जब लोग बाग़ पूंजीपति व्यवस्थाओं से त्रस्त होंगे वह अपने आप सनातन व्यवस्थाओं की तरफ मुड़ेंगे । और उन की रुचि हमारे धर्म ग्रंथों संस्कृत आदि में जागेगी सारा विश्व फिर एक बार सत्य सनातन धर्म की और मुडेंगे और भारत पुनः विश्वगुरु बनाने की और अग्रसर होगा । आगे आपके लिए चाणक्य सीरियल का वह प्रकरण है जिसको आधार बनाकर यह आर्टिकल लिखा गया है । धन्यवाद ।
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आजकल मैं आजकल की पूंजीवादी न्याय व्यवस्था और सनातन न्याय व्यवस्था के बारे में लिखने की सोच रहा था कि लिखते लिखते इस बात का कारण पता लगा कि क्यो आजकल लोग संस्कृत, वेद आदि पढ़ाने में रुचि नही लेते। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो संस्कृति व्यावहार में नही होती वह समाप्त हो जाती है। तो क्या आज संस्कृत , हमारे वेद, दर्शन आदि हमारे व्यावहार में शामिल. हैं उत्तर है नही। क्या कारण हैं कि हमारे वेद दर्शन संस्कृत आदि हमारी रोजाना जिंदगी मे शामिल नही हैं I जैसे न्याय दर्शन को ही ले लो Iएक आम आदमी के जीवन में न्याय दर्शन की क्या जरूरत Iएक आम आदमी न्याय दर्शन क्यों पढे मुझे एक कारण बता दो। आजकल की जिंदगी में न्याय दर्शन पढकर हमारा क्या लाभ । चाणक्य आगे कहते हैं कि अगर तुम्हारी संस्कृति और तुम्हारा पतन हो रहा है तो उसके कारण तुम स्वयं हो। अगर तुम्हारी संस्कृति महान थी तो उसका पतन क्यों हो गया। तुम्हारे पतन का कारण तुम स्वयं हो ``Iअगर तुमको लगता कि तुम्हारी संस्कृति महान तो उसको जी कर दिखायो किसने रोका है तुम्हे``। यह अंतिम पंक्ति ही सारी समस्यायों का हल है । मान लो हम चाहते हैं कि लोग न्याय दर्शन पढ़ें तो हमे क्या करना होगा तो हमे वर्तमान आयतित पूंजीवादी न्याय व्यवस्था के सामने अपनी सनातन न्याय व्यवस्था का मॉडल रखना होगा । कहीं ना कहीं हम सनातन व्यावस्थायों का पूंजीवादी व्यवस्थयों का तुलनात्मक माडल रखने मे असफल रहें हैं। हम हमेशा पूंजीवादी न्याय व्यवस्था की कमियां निकालते रहते हैं लेकिन हम कभी सनातन न्याय व्यवस्था का मॉडल पेश ही नहीं कर पाये। इसलिए आजकल मैं पूंजीवादी व्यवस्थाओं और सनातन व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा हूं हमारे सनातन मॉडल चाहे कि वह न्यायिक व्यवस्था पर हो, चाहे शिक्षा व्यवस्था पर ,चाहे वह इन्वेस्टमेंट मॉडल हो ,चाहे गवर्नेस का मॉडल, चाहे टैक्सेशन का मॉडल चाहे ,सरकार चुनने का, जमीन का प्रबंधन का मॉडल हो चाहे, इस सामाजिक व्यवस्थाओं का मॉडल और चाहे फूड प्रोसेसिंग का मॉडल ,सब मॉडल मौजूद है और वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्थाओं से कहीं अच्छे और ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित है इन सारी सनातन व्यवस्थाओं के कारण सनातन भारत लगातार 10000 वर्षों तक दुनिया का विश्व गुरु और अमीर देश रहा है | हमें इन सब मॉडलओं का अध्ययन करना पड़ेगा और उनको पुनः स्थापित करना पड़ेगा जैसे कि हमने पूंजीवादी एलोपैथी मॉडल के सामने अपना सनातन वैदिक आयुर्वेदिक मॉडल दुनिया के सामने रखा हमने पूंजीवादी एलोपैथी मॉडल के सामने अपना सनातन योग का मॉडल रखा दुनिया जब एलोपैथी से दुखी होने लगी तो दोबारा अब आयुर्वेद और योग की ओर मुड़ने लगी |अब इससे हुआ क्या कि लोगों को आयुर्वेद और योग आदि को समझने के लिए संस्कृत और हमारे धर्मशास्त्र पढ़ने में रुचि होने लगी ||मैंने कहीं पढ़ा था कि एक अंग्रेज व्यक्ति को एलोपैथिक डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था कि तुम जिंदा नहीं बच पाओगे |उस व्यक्ति ने आयुर्वेद और योग के माध्यम से अपनी उस बीमारी का इलाज कर लिया फिर उस व्यक्ति की रुचि जागी यह योग और आयुर्वेद आया कहां से है तो उसको पता लगा यह योग और आयुर्वेद सनातन वैदिक धर्म की देन है ,तो तो उसने संस्कृत सीख कर हमारे धर्म ग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया और सनातन हिंदू धर्म को अपना लिया कहने का तात्पर्य यह है कि हमें दुनिया के सामने अपने मॉडल रखने होंगे दुनिया को। पूंजीवादी व्यवस्थाओं का विकल्प देना पड़ेगा जब लोग बाग़ पूंजीपति व्यवस्थाओं से त्रस्त होंगे वह अपने आप सनातन व्यवस्थाओं की तरफ मुड़ेंगे । और उन की रुचि हमारे धर्म ग्रंथों संस्कृत आदि में जागेगी सारा विश्व फिर एक बार सत्य सनातन धर्म की और मुडेंगे और भारत पुनः विश्वगुरु बनाने की और अग्रसर होगा । आगे आपके लिए चाणक्य सीरियल का वह प्रकरण है जिसको आधार बनाकर यह आर्टिकल लिखा गया है । धन्यवाद ।
आपके विचार प्रामाणिक है,राष्ट्र,ऐव धर्म के प्रति कार्य करनेवाली अनेकविध संस्थाओ से जुडकर एक विचारधारा बनाकर एक महान कार्य हो शकता है,कृपया संपर्क करे,
जवाब देंहटाएंप्रदीप पाटील,9324723216