बाढ़ अच्छी है

बाढ़ क्यों अच्छी है
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पोस्ट का टाइटल देख कर कई मित्रों के मन में यह प्रश्न जरुर उठेगा। कि यह क्या बेहूदा बात है कि बाढ़ अच्छी है । पहले जब बाढ़ आती थी। तो वह जल के साथ पहाड़ों की उपजाऊ मिटटी भी साथ में लेकर आती थी ।बाढ़ का पानी सारे क्षेत्र में एकसमान रूप से खड़ा हो जाता था ।15 20  दिनों बाद जब पानी उतरता था।तो एक तो भूमिगत जल रीचार्ज हो जाता था ।दूसरा पहाड़ों की उपजाऊ मिटटी खेतों में रह जाती थी। फिर जब इस पर फसल पैदा होती थी ।उसको ना तो किसी गंदे यूरिया की जरूरत होती थी और नाहि किसी अन्य रासायनिक उर्वरक की ।लोग छोटे छोटे गांवों में रहते थे ।यह गांव अक्सर किसी ऊंचे स्थान पर बसे होते थे ।बाढ़ का पानी गांव को कोई नुकसान नहीं करता था । 15 20 दिनों की बात होती थी । सब घरों में सनातन HOME स्टोरेज होती थी ।साल भर का अनाज घरों में ही स्टोर होता था ।कोई चिल पों नहीं होती थी । सारा काम प्रकृति से फ्री में करवाया जाता था ।प्रकृति और इंसान का पूर्ण सामंजस्य था । मनुष्य ने अपने आप को प्रकृति के अनुसार ढाला हुआ था ।यह था बाढ़ को अपने लाभ के लिए प्रयोग करने की सनातन व्यवस्था ।जोकि प्रकृति की अनुरूप थी । क्योंकि सनातन सभी  जीवों,पेड़ पौधों, जंगलों,जानवरों,नदीओं,पहाड़ों आदि को मनुष्यों के बराबर मानता है। इसलिए सनातन व्यवस्थाओं के संरचना इस प्रकार की गयी है ।कि मनुष्य के द्वारा किसी अन्य के अधिकार का अतिक्रमण ना हो ।इसलिए सनातन व्यवस्थाएं कभी प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करती ।हमारे यहाँ चूहा पकड़ने के लिए भी पिंजरा लगाया जाता है ।चूहे को भी मारा नहीं जाता । यह सनातन व्यवस्था की खूबसूरती है।कि वह चूहे के RIGHT TO LIVE के सिद्धांत को पूर्ण सम्मान देती है ।मच्छरदानी के पीछे भी यही सिद्धांत काम करता है । इन्हीं सनातन व्यवस्थाओं ने भारत को सन 1700  तक विश्व का  नंबर एक अमीर देश बना कर रखा था।

इसके बाद आया अंग्रेजों का दौर । अंग्रेजों के आगमन के साथ पूंजीवादी  व्यवस्थाओं क दौर शुरू हुआ ।  कहां तो सनातन व्यवस्थाएं प्रकृति के अनरूप बनायीं जातीं थीं ।अब अंग्रेजों ने प्रकृति को अपने अनुसार ढालना शुरू किया। ताकि अधिक से अधिक मुनाफा कुछ चंद पूंजीपतियों तक पहुंचाया जा सके । अंग्रेजों ने भारत में बांधों का निर्माण शुरू करवाया । जिसमे नदियों के जल को नियंत्रण करके बाढ़ को लगभग काबू कर लिया गया।अब बाढ़ के साथ जो उपजाऊ मिट्टी बहकर आती थी ।वह इन बांधों के पीछे जमा होनी शुरू हो गयी ।खेत में जो सनातन प्राकृतिक  व्यवस्था के माध्यम से अपने आप उर्वरक पड जाते थे ।उसके स्थान पर किसानों को हरित क्रांति,मॉडर्न खेती के नाम पर रासायनिक उर्वरक चिपकाये गए। अब यह रासायनिक उर्वरक कौन बनाता है? उतर है  पूंजीवादी कम्पनीयां ।किसान गरीब होने लगा और पूंजीवादी कम्पनीयां अमीर होने लगी ।जो काम प्रकृति फ्री में करती थी । वह अब पैसे खर्च कर के भी नहीं होता ।पूंजीवादी इनफार्मेशन warfare सिस्टमों,जैसे कि टीवी और समाचार पत्रों ने इन बांधों,हरित क्रांति, रासायनिक उर्वरकों को विकास की चासनी में डुबो कर ऐसे पेश किया। कि जैसे पहले भारत के लोग भूखे मरते हों । अंग्रेजों के आने से पहले सन 1700 तक भारत विश्व के कुल उत्पादन में लगभग 25 % हिस्सा रखता था ।जो अंग्रेजों द्वारा भारत का विकास करने के कारण 1950 में केवल 4% रह गया । नदियों पर बांध बन गए । वह अब छोटे नालों जैसीं दिखती हैं ।बांधो के निर्माण के कारण भारत की जैव विवधता को भी बहुत नुक्सान पहुंचा। जिस सनातन भारत में कभी अकाल नाम का शब्द भी नहीं सुना था। उसकी खेती का अंग्रेजों ने इतना विकास किया। कि वहां पर हर साल अकाल पड़ने लगे ।बंगाल का अकाल इसका एक उदाहरण है ।1947 के बाद भी यही तंत्र चल रहा है और देश बर्बाद हो रहा है । जिसको  विकास, development, growth,Gdp आदि भारी भरकम शब्दों की मीठी चाशनी में डुबोकर बेचा जा रहा है ।

इस तरह हमने देखा कि कैसे पूंजीवादी व्यवस्था जो की अंग्रेजों की देन है ।उसका मुख्य उद्देश्य कुदरत को पूंजीवादी कम्पनीयों के अनुसार ढालना है । जबकि सनातन व्यवस्था में मनुष्य द्वारा, अपने आप को कुदरत के अनुसार ढाला जाता है । इसलिए हमें नदियों पर नियन्त्रण करने के स्थान पर, अपने आप पर नियंत्रण करना चाहिए ।

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