संदेश

अगस्त, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सनातन संस्कृति को पुर्नस्थापित करने का मार्ग

चित्र
अगर तुमको लगता कि तुम्हारी संस्कृति महान तो उसको जी कर दिखायो किसने रोका है तुम्हे`` ======================================================== आजकल मैं आजकल की पूंजीवादी न्याय व्यवस्था और सनातन न्याय व्यवस्था के बारे में लिखने की सोच रहा था कि लिखते लिखते इस बात का कारण पता लगा कि क्यो आजकल लोग संस्कृत, वेद आदि पढ़ाने में रुचि नही लेते। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो संस्कृति व्यावहार में नही होती वह समाप्त हो जाती है। तो क्या आज संस्कृत , हमारे वेद, दर्शन आदि हमारे व्यावहार में शामिल. हैं उत्तर है नही। क्या कारण हैं कि हमारे वेद दर्शन संस्कृत आदि हमारी रोजाना जिंदगी मे शामिल नही हैं I जैसे न्याय दर्शन को ही ले लो Iएक आम आदमी के जीवन में न्याय दर्शन की क्या जरूरत Iएक आम आदमी न्याय दर्शन क्यों पढे मुझे एक कारण बता दो। आजकल की जिंदगी में न्याय दर्शन पढकर हमारा क्या लाभ । चाणक्य आगे कहते हैं कि अगर तुम्हारी संस्कृति और तुम्हारा पतन हो रहा है तो उसके कारण तुम स्वयं हो। अगर तुम्हारी संस्कृति महान थी तो उसका पतन क्यों हो गया। तुम्हारे पतन का कारण तुम स्वयं हो ``Iअगर तुमको लगता कि तुम्हार

पूंजीवादी कोल्ड ड्रिंक vs सनातनी ताज़ा जूस

चित्र
अगर आप एक बोतल कोल्ड ड्रिंक के स्थान पर एक गिलास ताज़ा जूस पीते हैं तो आप 1. एक प्लास्टिक की बोतल का कूड़ा कम पैदा कर रहें हैं । 2.आप एक फल का पेड़ का संरक्षण कर रहें हैं क्योंकि जूस के लिए पेड़ बीजना ही पेडेगा। 3.आप कोका कोला या पेप्सी के मलिक को और आमीर बनाने के स्थान पर किसी गरीब की रोज़ी रोटी का प्रबन्ध कर रहे हो । 4.आप भूमिगत जल को गंदा नहीं कर रहे हो । क्योंकि कोल्ड ड्रिंक आदि के उत्पादन में बहुत अधिक रसायनों का उपयोग होता है । इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी जो भूमिगत जल या नदियों के जल को प्रदूषित करता है । 5. आप किसी किसान की आत्महत्या को रोक रहे हो ।क्योंकि कोल्ड ड्रिंक में किसी भी ऐसी वस्तु का प्रयोग नहीं होता जो खेत से आते हों ।

स्वदेशी आयुर्वेदिक दंत मंजन और पूंजीवादी रसायनिक पेस्ट

1 .अगर आप रसायनिक पेस्ट जैसे कोलगेट पेप्सोडेंट के स्थान पर घर में बना आयुर्वेदिक दंत मंजन प्रयोग करते हैं तो आप जैव विविधता को बढ़ावा देते हैं क्योंकि आयुर्वेदिक दंत मंजन में 30 प्रकार की जड़ी बूटियों का प्रयोग होता है यह जड़ी बूटियां विभिन्न प्रकार के पौधों और वृक्षों से से प्राप्त होती हैं | 2. अगर आप आयुर्वेदिक दंत मंजन प्रयोग करते हैं तो आप किसानों को खुशहाल करते हैं क्योंकि यह जड़ी बूटियों किसी किसान के खेत से ही आएंगी। दूसरी तरफ अगर आप रसायनिक पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, तो इनमें किसी की जड़ी बूटी का प्रयोग का प्रयोग नहीं होता रासायनिक पेस्ट में में प्रयोग होने वाले केमिकल जैसे सोडियम लॉरिल सल्फेट आदि बड़े बड़े पूंजीपतियों की खदानों से आते हैं । 3. आपके आयुर्वेदिक मंजन के मंजन के प्रयोग करने के कारण किसानों को विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां जैसे नीम तुलसी आदि बीजनी पड़ेगी ।जिससे बहुत सारे जीव जंतुओं का संरक्षण होगा जोकि इन विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों पर निर्भर रहते हैं। 3. आयुर्वेदिक मंजन घर में बनाने पर आप प्लास्टिक का कचरा काम पैदा करते हैं । 4 . घर में बने हुए आयुर्

वर्ण वयवस्था का सच

अगर आर्य बाहर से आए थे तो शूद्र समुदाय के गोत्र ब्राह्मण समाज में कैसे मिलते हैं जैसे गौतम गोत्र ब्राह्मण समाज में भी है और शूद्र समाज में भी है । इससे पता चलता है की प्राचीन भारत में जब मनुस्मृति के अनुसार सामाजिक व्यवस्थाएं चलती थीं जिसके अनुसार वर्ण जन्म के आधार पर नहीं अपितु काम के आधार पर होता था । जो गौतम गोत्र के व्यक्ति पढ़ाने या चिकित्सा का कार्य करते थे वह ब्राह्मण वर्ण में आ जाते थे जो service सेक्टर , manufacturing sector में गौतम गोत्र के व्यक्ति गए वह शूद्र वर्ण के हो जाते थे । इस्लाम के आने के बाद जब मनुस्मृति के स्थान पर इस्लामिक कानून शरिया भारत पर लागू किया क्या तो वर्ण जन्म के आधार पर के दी गई । इसी व्यवस्था को अंग्रेजों ने बढ़वा दिया ताकिं हिन्दू समाज एक ना हो जाए । अंग्रजों के बाद कांग्रेस ने भी संविधान के माध्यम से जन्म के आधार पर caste system जारी रखा । जो आज तक चल रहा है। जब 1000 साल से मनुस्मृति चल ही नहीं रही तो मनुस्मृति को क्यों कोसा जाता है समझ में बात आती नहीं

बाढ़ अच्छी है

बाढ़ क्यों अच्छी है --- पोस्ट का टाइटल देख कर कई मित्रों के मन में यह प्रश्न जरुर उठेगा। कि यह क्या बेहूदा बात है कि बाढ़ अच्छी है । पहले जब बाढ़ आती थी। तो वह जल के साथ पहाड़ों की उपजाऊ मिटटी भी साथ में लेकर आती थी ।बाढ़ का पानी सारे क्षेत्र में एकसमान रूप से खड़ा हो जाता था ।15 20  दिनों बाद जब पानी उतरता था।तो एक तो भूमिगत जल रीचार्ज हो जाता था ।दूसरा पहाड़ों की उपजाऊ मिटटी खेतों में रह जाती थी। फिर जब इस पर फसल पैदा होती थी ।उसको ना तो किसी गंदे यूरिया की जरूरत होती थी और नाहि किसी अन्य रासायनिक उर्वरक की ।लोग छोटे छोटे गांवों में रहते थे ।यह गांव अक्सर किसी ऊंचे स्थान पर बसे होते थे ।बाढ़ का पानी गांव को कोई नुकसान नहीं करता था । 15 20 दिनों की बात होती थी । सब घरों में सनातन HOME स्टोरेज होती थी ।साल भर का अनाज घरों में ही स्टोर होता था ।कोई चिल पों नहीं होती थी । सारा काम प्रकृति से फ्री में करवाया जाता था ।प्रकृति और इंसान का पूर्ण सामंजस्य था । मनुष्य ने अपने आप को प्रकृति के अनुसार ढाला हुआ था ।यह था बाढ़ को अपने लाभ के लिए प्रयोग करने की सनातन व्यवस्था ।जोकि प्रकृति की अनुरूप थी ।