पूंजीवादी लैंड मैनेजमेंट vs सनातन लैंड मैनेजमेंट




सनातन भारत में चार  चीजें बिल्कुल ही मुफ्त थी एक  शिक्षा ,दूसरी थी चिकित्सा ,तीसरा था न्याय और चोथा था  काम करने के लिए जमीन। सनातन भारत में जमीन के लिए सनातन व्यवस्था प्रचलित थी | अगर आप भी अगर आज भी आप किसी जमीन की REGISTRY  को देखो तो आप देखोगे  की जमीन की रजिस्ट्री की भाषा अरबी है| इससे पता लगता है कि मुसलमानों के आने के बाद ही भूमि की खरीद बेच  शुरू हुई| उससे पहले सनातन भारत में भूमि की खरीद बेच नहीं होती थी |इसका एक और प्रमाण यह है कि आज भी लाल डोरा और  लाल लकीर के अंदर बड़ी जमीन की रजिस्ट्री होती |अगर आप पूछेंगे कि इस जमीन की रजिस्ट्री क्यों नहीं होती तो इसका उत्तर है कि यह गांव मुसलमानों के आने से पहले ही बसे हुए थे| इस कारण मुसलमानों ने इस जमीन को छोड़ दिया ,इसको और नक्शे पर एक लाल लकीर खीच दी | इसलिए  लाल लकीर  अंदर अंदर वाली जमीन की रजिस्ट्री नहीं होती |सनातन भारत में जमीन की सारी OWNERSHIP भगवान के पास होती थी |तभी हमारे यहां एक कहावत प्रचलित है सब भूमि गोपाल की | सनातन भारत में एक न्यूनतम जमीन रहने और काम धंदे आदि के लिए सब को मुफ्त मिलती थी | इससे अधिक जिसको जितनी भूमि की आवश्यकता होती थी वह LAND REVENUE  लगान चुका कर भूमि ले सकता था  और उस पर अपना उद्योग धंधा शुरू कर सकता था ।पूंजीवादी व्यवस्था में जमीन की खरीद बेच  होने के कारण और जमीन पर इस पर मैक्सिमम सीलिंग ना होने के कारण जमीन कुछ लोगों तक ही सीमित रह गई है |
सरकार को चाहिए कि वह देश की कुल जमीन को 5 वर्गों में विभाजित करें 
.agriculture land
.residential land
.commercial land
.industrial land
.forestland
 इस वर्गीकरण के बाद सरकार को चाहिए कि इन 5 तरह की जमीन की अधिकतम  सीमा तय करें जो एक व्यक्ति रख सकता हूहो । जैसे कि मान लो सरकार Residential Land  की अधिकतम सीमा 100 गज प्रति व्यक्ति तय कर दे और अगर एक व्यक्ति के परिवार में 4 सदस्य हैं ।तो वह परिवार 400 गज से अधिक  ना तो खरीद सकता है ना ही किराए या lease पर ले सकता है। जैसे सरकार दाल आदि अनाजों की अधिकतम स्टॉक सीमा तय करती है इसी तरह जमीन  की भी अधिकतम सीमा तय होनी चाहिए
 इस अधिकतम सीमा के बहुत ही अधिक लाभ हैं जो कि निम्न निम्नलिखित हैं


Cost of living जीवन जीने की लागत में कमी

अगर सरकार उपरोक्त दर्शाए के तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दें ,तो मध्यम और गरीब वर्ग की जीवन जीने की लागत में बहुत ही अधिक कमी हो जाएगी ।आजकल के पूंजीपति लैंड मैनेजमेंट सिस्टम के कारण गरीब और मध्यम वर्ग अपनी सारी जिंदगी की बचत का 50% हिस्सा घर खरीदने में लगा देता है। अगर सरकार उपरोक्त बताए गए तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर देती है तो जमीन की कीमतें लगभग 10% ही रह जाएंगे जिस कारण मध्यम और गरीब वर्ग की जीवन जीने की लागत बहुत ही कम हो जाएगी अगर जीवन जीने की लागत कम हो गई तो जीवन की आपाधापी भी खत्म हो जाएगी l
 भ्रष्टाचार में कमी

अगर सरकार उपरोक्त बताए गए तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर देती है तो भ्रष्टाचार में बहुत ही ज्यादा कमी आ जाएगी ।आजकल काला धन के निवेश का सबसे बड़ा माध्यम जमीन ही है। अगर जमीन पर अधिक जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी जाए तो भ्रष्ट लोगों को निवेश करने के  बहुत ही बड़े माध्यम से हाथ धोना पड़ेगा।

अगर काले धन को जो कि भ्रष्टाचार से अर्जित किया गया है उसको जमीन में से लगने से निवेश होने से रोक दिया जाए तो लोगों को भ्रष्टाचार करने से भी रोका जा सकता है। अगर आप ने भ्रष्ट तरीके से कुछ पैसा अर्जित कर भी गये, तो उसको उसका क्या करोगे जमीन तो उसे ले ही नहीं सकते ।अगर जमीन नहीं ले सकते अगर जमीन नहीं ले सकते ,तो भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाने का झंझट करने का क्या फायदा।

बेरोजगारी में कमी

अगर उपरोक्त तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी जाए तो जमीन की कीमत  केवल 10% ही रह जाएगी । जैसे कि मान लोअगर आज कल किसी बेरोजगार युवक ने कोई दुकान खोलनी है तो उसको दुकान चलाने के लिए माल तो 500000 रुपए का रखना होता है ,लेकिन उसको दुकान खरीदने के लिए उसको कम से कम 25 से 30 लाख रुपए खर्च करने पड़ जाते हैं ।इस कारण उसको मजबूरन मैं नौकरी आदि करने के लिए दूर-दूर भड़कना पड़ता है । अगर जमीन पर उपरोक्त तरीके से अधिकतम सीमा तय कर दी जाए तो यह 25- 30 लाख रुपए का खर्च कम हो कर दो ढाई लाख का रह जाएगा ।जिस कारण देश में से बेरोजगारी का खात्मा हो जाएगा

मैन्युफैक्चरिंग हब
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अगर सरकार जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दे तो इंडस्ट्रियल लैंड की कीमत भी 10% रह जाएगी। सन १५००  तक भारत दुनिया का नंबर वन अमीर देश था और भारत की जीडीपी की  हिस्सेदारी लगभग 25% थी । इस  25% जीडीपी की सबसे बड़ी वजह थी कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री बहुत ही विकसित थी ।अगर भारत को दुनिया की Manufacturing Hub  अब बनाना है तो उपरोक्त बताए हुए तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा की सीमा की सीमा तय कर देनी चाहिए। इससे होगा क्या। इससे जमीन की कीमतें कम हो जाएंगी ।मान लो आप एक नया कारखाना खोलना चाहते हो ।तो आपके लिए आपको भूमि में बहुत ही अधिक निवेश करना पड़ता है। कई बार तो जमीन  करोड़ों रुपए की आती है ।जिस कारण भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पिछड़ रही है । इससे भी देश में बेरोजगारी की समस्या का अंत हो जाएगा

भूमिहार और सीमांत किसानों को लाभ
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भूमि हर किसान वो किसान होते हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं होती। वह जमीन को पट्टे पर लेकर खेती करते हैं ।लेकिन जमीन का पट्टा साल दर साल बढ़ता जाता है आजकल  पंजाब में लगभग ₹10000 बीघा जमीन का पट्टा चल रहा है। इस कारण भूमिहर किसानों को बहुत ही अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।सीमांत किसान वह किसान है जिनके पास बहुत ही कम जमीन होती है। अगर सरकार कृषि  कृषि भूमि की अधिकतम सीमा जैसे कि 100 जैसे कि 100 एकड़ तय कर दे तो कृषि भूमि की जमीन की कीमत भी बहुत ही कम हो जाएगी। और सीमांत और भूमि हर किसान भी कृषि भूमि खरीद सकेंगें । आज कृषि भूमि की अधिकतम सीमा तय हो ना होने के कारण। जिन लोगों ने कृषि नहीं करनी होती वह भी अपना काला धन कृषि भूमि में निवेश कर देते हैं ।जिस कारण कृषि योग्य भूमि की कीमतें बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है और छोटे और सीमांत किसानों की समस्याएं बहुत ही अधिक हो गई हैं।

 जैव विविधता का संरक्षण:-
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सरकार को चाहिए कि वह जमीन को  उपरोक्त बताए हुए 5 हिस्सों में विभाजित करें और जो हिस्सा फॉरेस्टर के लिए आरक्षित हो ,उस की खरीद बेच की किसी को इजाजत ना हो ।फॉरेस्ट लैंड को कोई ना तो खरीद सकता हो ना ही पट्टे पर ले सकता हो । अगर सरकार यह कर देती है तो जंगल और जंगली जानवरों का संरक्षण होगा ।हमारे जिले तालाब नदियां आदि जो कि दिन प्रतिदिन  सूख  रही हैं, उनकी भी रक्षा होगी और जंगली जीवो का भी  संरक्षण होगा ।अगर जंगल और जंगली के लिए सरकार उपरोक्त तरीके से फॉरेस्ट लैंड आराक्षित कर देती है तो लोगों को बहुत ही अधिक लाभ होगा ।सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लोग लोगों को घर बनाने के लिए  लकड़ी आदि मुफ्त में उपलब्ध हो जाएगीआजकल क्योंकि जंगल आदि काट दिए गएं हैं ,तो इसलिए लकड़ी नजदीक के जंगलों में उपलब्ध नहीं है ।इस कारण आजकल लकड़ी के लिए पहाड़ों पर लकड़ी को काटा जाता है ।जिस कारण इस कारण बहुत ही नुकसान होता है ।दिन प्रतिदिन बाढ़ आदि का खतरा बढ़ता जाता है। जंगलों के समाप्त होने से  इलाज के लिए जरूरी कई जड़ी-बूटियों भी अब उपलब्ध नहीं है ।
अगर सरकार उपरोक्त बनाए हुए तरीके से जंगलों का और जंगली जीवो का संरक्षण करती है तो इससे हमें  बहुत  आर्थिक लाभ भी हो सकते हैं।

देश की धन संपदा (wealth)  में वृद्धि
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पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में निवेश के  मुख्य साधन, बैंक शेयर्स ,म्यूच्यूअल फंड और जमीन है। अगर अगर हम बैंक, शेयर्स म्यूचल फंड और जमीन आदि में निवेश करते हैं। तो देश में बाहर से कोई भी धनसंपदा देश के भीतर नहीं आती ।जैसे कि मान लो हम भारतीयों ने 1 साल में 100000 करोड रुपया बचाया है। अगर इसे हम बैंक शेयर्स मुचल फंड और जमीन आदि में निवेश करते हैं ।तो इससे देश के बाहर से कोई भी चीज नहीं आती। उल्टा होता क्या है कि इससे देश में महंगाई बढ़ जाती है ।जैसे कि उदाहरण के लिए अगर यह एक लाख करोड़ पर हम जमीन में निवेश कर दें, तो जमीन की कीमतें बढ़ जाएंगी ।देश की कुल जमीन  तो उतनी की   उतनी ही रहेगी।  इस तरह के निवेश से  कोई बाहर से नई जमीन तो देश में  तो आएगी नहीं। अगर सरकार जमीन की  अधिकतम सीमा तय कर देती है ,तो लोगों को मजबूरन सोने में निवेश करना पड़ेगा। तो बाहर से सोना देश के अंदर आएगा । जिस कारण देश पुणे सोने की चिड़िया बन जाएगी। हमारे पूर्वज भी इसलिए सोने में निवेश करते थे। इस सनातन इन्वेस्टमेंट मॉडल के कारण भारत सन १७००  तक सोने की चिड़िया बना रहा। इसको सनातन इन्वेस्टमेंट मॉडल कहते हैं । सनातन इन्वेस्टमेंट मॉडल के बारे में विस्तार से चर्चा हम किसी अन्य लेख  में करेंगे ।अगर मान लो यही एक लाख करोड़ पर हम सोने में निवेश करते हैं तो देश में 100000 करोड रुपए की नई धनसंपदा आएगी।

सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था की वापसी
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अगर सरकार उपरोक्त बताए हुए तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर देती है। तो इससे सनातन परिवार व्यवस्था फिर से मजबूत हो जाएगी आजकल हो क्या रहा है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के कारण देश के लोगों की जीवन जीने की लागत बहुत ही अधिक हो रही है। इस जीवन जीने की लागत में भी 50% जीवन जीवन की लागत ,जमीन की ऊंची कीमतों के कारण हो रही है। अगर जमीन की कीमतों में कमी हो जाए तो जीवन जीने की लागत कम हो जाएगी । सारी दुनिया में इस समय जमीन को लेकर सबसे अधिक संघर्ष है ।मान लो अगर  एक  परिवार  दो भाई मिलकर रह रहे हैं ,तो उनको हमेशा यह डर लगा रहता है कि दूसरा भाई मेरे हिस्से की जमीन ना खा जाये ।इस कारण परिवार भी घटित होते रहते हैं अगर जमीन की कीमत में कमी और जाए तो तो सनातन संयुक्त परिवार व्यवस्था बच सकती है ।
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम की वापसी
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सनातन प्रशासन सिस्टम जैसे कि बड़ी बड़ी पूंजीवादी  चीनी मिलों की जगह सनातनी  कुल्लाड़ ,सनातनी चकिक्यां  आदि के लिए आजकल सस्ती जमीन उपलब्ध नहीं है। इसलिए सनातन प्रोसेसिंग   सिस्टम की जगह पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम  ने ले ली है ।अगर उपरोक्त में दर्शाए गए तरीके से जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी जाए, तो फिर से सनातन प्प्रोसेसिंग सिस्टम शुरू हो जाएगा जिससे महंगाई, बेरोजगारी ,गरीबी, भ्रष्टाचार और प्रदूषण का  अंत हो सकता है।
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम को विस्तार से जानने के लिए हमारा सनातन होम स्टोरी होम स्टोरेज और पूंजीवादी होम स्टोरी पर दिया हुआ लेख लिखा हुआ लेख पढ़ें।


 |सनातन व्यवस्था का मूल आधार है कि देश के संसाधनों पर कुछ चंद पूंजीपतियो का नियत्रण न हो

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