सनातनी गुड और पूंजीबादी चीनी jaggery vs sugar
पूंजीबाद मने ऐसा तन्त्र विकसित करना जिससे सारा पैसा कुछ लोगो तक सीमित हो जाये | उदहारण के लिए चीनी मिलें | सनातन भारत में चीनी के स्थान पर गुड का प्रयोग होता था | किसान गन्ना उगता था वो या तो आप गुड तैयार करने के लिए कुल्हाड़ चला लेता या अपना गन्ना किसी कुल्हाड़ पर बेच देता था | , काफी कुल्हाड़ होने के कारण किसी एक मिल मालिक का एकाधिकार ना होता , पर्यावरण दूषित नहीं नहीं होता था | ग्राहक को यह लाभ था की गुड उसके सामने बन रहा है उसको सही दाम पर रसयन रहित गुड मिल जाता था | एक कुल्हाड़ पर काम करने के लिए 5 दस लोगो की आवश्यकता होती | एक गाँव के आस पास ५ -१० कुल्हाड़ होते | और केवल कुल्हाड़ पर एक गाँव के ५०-६० व्यक्ति रोज़गार प्राप्त करते थे | कुल्हाड़ तो एक उद्धरण है | इस तरह भारत में कोई बेरोज़गारी और धन की असमान बाँट की कोई समस्या नहीं थी | यह थी सनातन व्यवस्था जो इस बात को यकीनी बनाती थी कि धन की आसमान बाँट ना हो , बेरोज़गारी ना हो ,पर्यावरण से छेड़छाड़ ना हो और देश की सारे संसधानो पर किसी एक व्यक्ति का नियंत्रण ना हो |
और अब अंग्रेजों के आने के साथ भारत में पूंजीवादी व्यवस्था का आगमन होता है जिसमे चीनी मिलें भी शामिल हैं | भारतीयों ने गुड के स्थान चीनी प्रयोग शुरू कर दी बिना सोचे समझे |हमेशा की तरह इस बार भी भारतीयों इस सिद्धांत `ना खाता न बही ,जो अंग्रेज कहे वो ही सही ` अपनाया | और सनातन गुड को छोड़ पूंजीवादी चीनी अपना ली | अब कुल्हाड़ की तरह चीनी की मिलें सस्ती तो स्थापित होती नहीं थी | चीनी की मिल के लिए बहुत ही बड़ी जगह चाहिए | मशीनरी खरीदने ले बहुत पैसा चाहिए | चीनी मिल बनाने के लिए बहुत बड़ी बिल्डिंग चाहिए | विजली चाहिए | बहुत सारा गन्ना और केमिकल खरीदने के लिए और तैयार माल को रखने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए | कुल मिलाकार एक चीनी की मिल के लिए बहुत सारा धन चाहिए | आईये अब आईये पूंजीबादी चीनी के दुषप्रभाव जान लेते हैं | चीनीमिलों संख्या कम होने के कारण गन्ने का भाव अब चीनी मिलें तय करने लगीं जिससे किसानो अपना उत्पाद चीनी मीलों द्वारा तय कम कीमत पर बेचना पड़ता है और भुगतान के लिए लम्बे समय का इन्तजार करना पड़ता है | कुल्हाड़ पर गन्ना उचित दाम पर और भुगतान सह समय पर होने के कारण किसान को कभी आत्महत्या नहीं करनी पड़ती थी और दूसरी तरफ चीनी का दाम में चीनी मिलें तय करने लगी जिस कारण आम आदमी की लूट होने लगी |
अगर हम सनातनी व्यवस्था जैसे कुल्हाड़ को फिर से पुर्नजीवित करें तो हम कई समस्यों से निजात पा सकते है जैसे बेरोज़गारी , प्रदूषण , धन की असमान बाँट , किसानो की भुखमरी और उपभोगता लूट और चीनी से होने बाली बीमारिया आदि | हमें अपनी समस्यों का हल भारत की सनातन व्यवस्था में से निकालना पड़ेगा | अगर हम उस पछमी पूंजी वादी व्यवस्था को अपनाएगें जिसके कारण यह सारी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं तो हम और नई समस्याओं को निमत्रण देंगे |
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