पोल्ट्री फार्मिंग और पूंजीवाद का अंत END OF POULTRY FARMING AND CAPITALISM



पोल्ट्री फार्मिंग और पूंजीवाद का अंत
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दोस्तो जैसे की आप सब जानते हैं कि आजकल मुर्गियां और अंडे पोल्ट्री फार्म में उगाए जातें हैं मुर्गियों को पिंजरों में बंद रखा जाता है । उन cages में इतनी जगह भी नहीं होती कि मुर्गियां ढ़ंग से हिलजुल सकें । क्या मुर्गियों को कुदरत ने केज्स में पैदा किया है ?अगर हम 50 इंसानों को एक 100 वर्ग फुट के कमरे में बंद कर दें केजेस बना कर और खाना पानी देतें रहें तो वह 100 इंसान कितने दिन तक जिंदा बच पाएंगे । उत्तर है थोड़े दिनों में ही इंसान संक्रमण से मर जायेगें । तो फिर प्रश्न उठता है कि मुर्गियां क्यों नहीं मरती । तो इसका उत्तर है कि उनको एंटीबायोटिक दिया जाता है प्रतिदिन ता कि उनमें संक्रमण ना फैले । विश्व का लगभग 80% एंटीबायोटिक मीट इंडस्ट्री में कंज्यूम होता है । एक नवीन शोध के अनुसार एंटीबायोटिक के दिन अब गिने चुने रह गए । अब अंतिम एंटीबायोटिक चल रहा है । जो चार पांच साल में बेकार हो जाएगा । धीरे धीरे बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के प्रति इम्यूनिटी हासिल कर लेते हैं । जब यह अंतिम एंटीबायोटिक का प्रभाव शुन्य हो जाएगा तो एलोपैथी के साथ साथ पोल्ट्री फार्मिंग का अंत भी हो जाएगा । यह पोल्ट्री फार्मिंग पूंजीवाद की  देन है   पूंजीवाद इस सिद्धांत पर चलता है Mass Production by limited Number of units । पोल्ट्री फार्म पूंजीवाद का एक उपक्रम है जिसमें बहुत सारी मुर्गियों को एक स्थान पर उगाया जाता है । यह पूरी तरह अप्राकृतिक है इसका अंत निश्चित है ।। अगर पूंजीवाद बच गया तो प्रकृति नष्ट हो जायेगी । नहीं तो प्रकृति पूंजी वाद को नष्ट कर देगी ।

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