सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम
नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के बारे में। हम चर्चा करेंगे कि कैसे सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम से हरेक पैमाने पर अच्छा है। सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम कैसे उपभोक्ता के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के अंतर को जाने के लिए सबसे पहले हम एक उदाहरण लेते हैं l
इस लेख को पूरी तरह समझने से लेख के साथ जो हमने चार्ट लगाया है उसे ध्यान से देखें ।
मान लो पंजाब में एक शहर है संगरूर ।इसके इर्द गिर्द लगभग 500 व्यक्ति कुल्फी बनाने के धंधे में लगे हुए हैं। यह लोग गांव से दूध लेकर रात को जमा देते हैं और सुबह तैयार कुल्फी शुरू शहर में आकर बेच देते हैं ।इस तरह आपको ताजा कुल्फी खाने को मिलती है ।यह सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम का एक उदाहरण है।
दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में संगरूर शहर के गावों का दूध पहले 72 किलोमीटर दूर लुधियाना में बसंत आइसक्रीम के प्लांट में ट्रकों में भर भर के भेजा जाता है ।वहां पर इस प्रोसेसिंग करके इसकी कुल्फी जमाई जाती है ।उसके बाद यह कुल्फी फिर से ट्रकों में भर भर के संगरूर शहर में बिकने के लिए भेजी जाती है!
सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में आपको खाने के लिए क्या मिला कुल्फी और पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में आपको खाने के लिए क्या मिला कुल्फी ।इस तरह अंतिम उत्पाद में कोई अंतर नहीं है
अब इस उदाहरण के माध्यम से हम सारी अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास करेंगे
ट्रांसपोर्टेशन
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जैसे कि आपने देखा कि सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में नाममात्र ट्रांसपोर्टेशन के संसाधनों की जरूरत पड़ती है दूसरी तरफ पूंजीवादी processing सिस्टम बिना ट्रांसपोर्टेशन एक कदम भी नहीं चल सकता । पहले कच्चा माल दूर-दूर से एकत्र किया जाता है ।फिर तैयार माल को ट्रांसपोर्टेशन के साधनों की मदद से दूर-दूर तक उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है l पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के कारण हुई सड़कों पर यातायात बढ़ता ही जा रहा है और इस बढ़ते हुए यातायात को विकास के नाम पर बेचा जा जा रहा है लेकिन यह यातायात विकास नहीं है
यातायात के साधनों के अत्याधिक प्रयोग के कारण बहुत ही प्रदूषण फैलता है लेकिन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होने के कारण सरकार ट्रांसपोर्टेशन को नियंत्रण नियंत्रित करने के स्थान पर उसको विकास के नाम पर बढ़ावा देती है ।इसीलिए आपको बड़े से बड़े ट्रक पर बिना किसी सिक्योरिटी के लाखों का लोन चुटकियों में मिल जाता है ।ताकि पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम को सस्ता ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम मुहैया कराया जा सके ।
Packing /plastic
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सनातन processing सिस्टम में प्लास्टिक और पैकिंग की कोई जरूरत नहीं पड़ती ।दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रशासन सिस्टम बिना पैकिंग और प्लास्टिक के एक कदम भी नहीं बढ़ सकता । पूंजीवादी आइसक्रीम को वितरित करने के लिए प्लास्टिक और पैकिंग की बहुत जरूरत पड़ती है ।इसीलिए आजकल चाहे सारे समुद्र नदियां, सीवरेज प्लास्टिक से भर गए हो फिर भी विकास के नाम पर प्लास्टिक पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता ,क्योंकि अगर प्लास्टिक पर प्रतिबंध लग जाए तो पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम की कमर टूट जाएगी ।इस तरह आपने देखा कि पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम से पर्यावरण कितना दूषित होता है ।प्लास्टिक में लाख बुराइयों से ही कार्य है पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है l वह दिन दूर नहीं जब प्लास्टिक इस धरती को खत्म कर देगा ।
बैंकिंग
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सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम लिए बैंकिंग की कोई आवश्यकता नहीं है l दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम बिना banking के यह कदम भी नहीं चल सकता ।उपरोक्त उदाहरण में जो किसानों को दूध की पेमेंट पहुंचाने के लिए भी बैंक की जरूरत पड़ती है और जो तैयार माल मंडियों में बिकने जाता है उसको इकट्ठा करने के लिए भी बैंक की जरूरत पड़ती है। बड़े-बड़े प्लांट लगाने के लिए भी बैंक लोन देता है जैसे कि जैसे कि मान लो पंजाब में 15000 छोटे-छोटे सनातन कुल्फी के निर्माता है इन 15000 लोगों ने मालो 1 साल में ₹100000 बैंक में जमा करवा दिया। आप बैंक के पास 150 करोड़ रुपए इकठ्ठा हो गया अब यह 150 करोड रूपया बैंक किसी बड़ी कुल्फी निर्माता को बिना किसी सिक्योरिटी के लोन के रूप दे देता है ।अब यह पूंजीवादी आइसक्रीम की फैक्ट्री 15000 स्वदेशी के निर्माताओं को बेरोजगार कर देती है । इस तरह आपने देखा कि सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम को बैंकिंग की कोई जरूरत नहीं है ।जबकि दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम के लिए बैंकिंग एक रीड की हड्डी की तरह काम करता है ।इसलिए सारे बड़े बड़े अर्थशास्त्री, सरकार बैंकिंग को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं और बैंकिंग को को ही विकास कहा जाता है।
केमिकल्स
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क्योंकि सनातन पर सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में कुल्फी को रात में जमा कर सुबह हर हालत में बेच दिया जाता है ।इस तरह की सनातनी कुल्फी को किसी तरह केमिकल की जरूरत नहीं है। दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम में पहले संगरूर से लुधियाना तक दूध पहुंचाने में कम से कम 1 दिन लग जाता है फिर लुधियाना के कुल्फी प्लांट में कम से कम एक दिन में तैयार होती है और एक-दो दिन उसको वितरण केंद्रों तक लेकर जाने में लग जाते हैं और पूंजीवादी कुल्फी पर कम से कम 6 महीने की एक्सपायरी डेट लिखी होती है ।अब सोचने वाली बात है कि दूध ज्यादा से ज्यादा दो-तीन दिन में खराब होने लग जाता है ।फिर यह कुल्फी 6 महीने तक कैसे बची रहती है तो इसका उत्तर है इसमें preservatives और अन्य केमिकल डाले जाते हैं । यह केमिकल और अन्य रसायन शरीर के लिए घातक है। इस तरह आपने देखा कि पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम बिना हानिकारक केमिकल्स के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता यह केमिकल हमारे शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं ।
मशीनरी
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अगर आपके घर में 4 लोगों का खाना बने तो आप आटा हाथ से गूंथ सकते हैं लेकिन अगर आपको 400 व्यक्तियों का खाना तैयार करना पड़े तो आप आटा हाथ से नहीं गूंथ सकते आपको मशीनरी का सहारा लेना ही पड़ेगा ।सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में क्योंकि उत्पादन का स्तर छोटा होता है। इसलिए सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में नाम मात्र की मशीनरी की जरूरत पड़ती है। दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रोसेसिंग ।सिस्टम में मशीनरी मुख्य आधार है उत्पादन का मुख्य आधार है इस उदाहरण में सारे पंजाब का दूध प्रोसेसिंग करके कुल्फी बनाने में मशीनरी की जरूरत पड़ेगी ही पड़ेगी । मशीनीकरण को ही विकास का नाम दे दिया गया जबकि यह मशीनीकरण पूंजीवादी प्रोसेसिंग सिस्टम की जरूरत है आपको अंतिम उत्पाद क्या मिला यह ही महत्वपूर्ण है। मशीनीकरण विकास नहीं है।
Gdp
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मान सारे पंजाब में कुल्फी के व्यवसाय में 15000 लोग लगे हुए हैं और यह 15000 लोग 1 साल में ₹100000 की बचत कर लेते हैं । सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम से देश की जीडीपी ₹1 भी नहीं बढ़ेगी ।क्योंकि यह 15000 लोग की आमदन सरकार की किसी भी खाता बही में नहीं आती ।दूसरी तरफ अगर एक कुल्फी की बड़ी फैक्ट्री खुल जाए और यह सारे लोग बेरोजगार हो जाएं तो यह 150 करोड़ रुपया एक ही फैक्ट्री को बनेगा । इस तरह देश की जीडीपी 150 करोड़ रूपए बढ़ जाएगी।इस GDP के फर्जी आंकड़े को विकास का नाम दे दिया गया है और देश की सारी योजनाएं इस जी फर्जी जीडीपी के आंकड़े को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। जीडीपी विकास नहीं है।
प्रदूषण
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जैसे कि आपने देखा कि सनातन प्रोसेसिंग सिस्टम में केमिकल्स बिल्कुल जरूरत नहीं पड़ती दूसरी तरफ पूंजीवादी प्रशासन सिस्टम में केमिकल और रसायनों की अत्याधिक आवश्यकता होती है यह केमिकल और रसायन जल को दूषित करते हैं फिर यह दूषित जल को नदी नालों में प्रवाहित कर दिया जाता है या फिर आजकल धरती में के अंदर इस गंदे जल को डाल दिया जाता है इस गंदे जल से कैंसर आदि की समस्याएं उत्पन्न होती हैं फिर इस गंदे को साफ करने के लिए Ro लगाए जाएं है । और फिर विकास के गुण गाए जातें हैं कि देखो कितनी तरक्की हो गई अब हम RO का पानी पीते है ।सरकारी मानकी करण सरकार की की एक एजेंसी fassai करती है जो रिश्वत लेकर किसी को भी fassai का सर्टिफिकेट दे देती है । आप fassai के प्रमाणित हज़ारो उत्पाद मिलावटी मिल जाएंगे । दूसरा सरकार कानून बनाकर मिलावट को legal कर देती है । उदहारण के रूप में घटिया पाम oil , सरसो के तेल में मिलना legal है । आटे , packaged fruit जूस में chemical , पानी चीनी ,artifical flavours मिलना legal है। कभी सरकार द्वारा certified आवंले के तेल की बोतल घुमा कर पढ़ लें बहुत बारीक शब्दों में लिखा होता है कि इसमें mineral oil है आँवले का नाम बदनाम करने के लिये ही इसका तेल का नाम आँवले का तेल रखा गया है ।
सरकार सर्टिफिकेट युक्त कुछ उत्पादों का हाल देख लो आपको सरकारी certificate की सच्चाई सामने आ जायेगी ।
1. पांच दिन पुराना दूध नाम है ताज़ा
2. जिस जूस 85% नकली flavours है नाम है real
2. जिस fruit juice में कुछ natural नहीं है नाम है B Natural
3. कई महीने पुराना अट्टा जिसने कभी चक्की का मुंह नही देखा हो नाम है चक्की फ्रेश अट्टा
5. जिस water में से सारे mineral निकाल लिए गए हों उसका नाम है mineral water
दूसरी तरफ कुटीर उद्योग जिसको हम सनातन अर्थव्यवस्था कहतें हैं उसका certification स्थानीय समाज करता है वह भी निःशुल्क और बिना रिश्वत के । और हर रोज़ यह certificate renew होता है । इसका उदहारण है ।
फलाने का देशी घी बहुत बढ़िया है ।
फलाना कोहलू वाले के यहां आज पाम आयल उतरा है यह दुकान बंद कर पाम आयल मिलाते है।
आजकल उस हलवाई की पूरियों में वह बात नहीं जो एक महीने पहले थी क्योंकि उसका अमुक कारीगर अपने गांव गया हुआ है ।
क्योकि सनातन अर्थव्यवस्था में सब समान आपकी आँखों के सामने बनता है या सनातन समाज के सामने बनता है इसलिये आप उसको किसी भी समय raid मार कर चेक कर सकते हो । लेकिन क्या बड़े उद्योग आपको यह चेक करने देतें हैं कि उनके यहां क्या वन रहा है ।
1. कुल्हाड पर गुड़ ,देशी खांड आदि आपके सामने निकाला जाता है और आप किसी भी समय उसको check कर सकतें है प्रश्न पूछ सकतें है । क्या चीनी मिल में चीनी आपके सामने बनती है ।
2.ढाबे में खाना दुकान के सामने बनता है और होटल में बंद कमरे में ।
3. आटा चक्की पर आटा आपके सामने निकलता है लेकिन क्या यह पैकेटबंद आटे के केस में सम्भव है।
4.ताज़े जूस की दुकान पर आप गिध्द की तरह देखते रहते हो कि इसमें पानी ना मिला दे या अन्नानास ना मिला दे । जबकि पैकेटबंद फ्रूट जूस के पैकेट पर ही छोटे छोटे अक्षरों में लिखा होता है कि इसमें 85% पानी ,चीनी और atifical flavours हैं ।
हमारे यहाँ एक बड़ी रिफाइण्ड की मिल है वह अपना तेल खुद नहीं इस्तेमाल करते जो सरकारी सर्टिफिकेट fassai द्वारा प्रमाणित है एक कोहलू से गुपचुप तरीके से नौकर भेज कर निकलवातें है ।
बाकि कोई बड़े शहर में यह सब संभव ना होने का तर्क ना चेंपें क्योंकि बड़ा शहर तो खुद एक समस्या है और समस्या का अंबार है ।
बहुत ही ज्ञान वर्धक और आखे खोलने वाला लेख है।
जवाब देंहटाएंशानदार लेख!🙏
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