धर्मस्य मूलः अर्थ
चाणक्य ने कहा है कि धर्म का मूल अर्थ और अर्थ का मूल राज्य है I सोचने वाली बात क्या है कि यहां पर अर्थ का मतलब क्या है । इस सूत्र में अर्थ से अभिप्राय है अर्थ तंत्र I किसी भी धर्म को बचाने के लिए उस देश का अर्थतंत्र उस धर्म को शूट करना चाहिए । जैसे कि सनातन वैदिक धर्म की पालना के लिए संस्कृत और गाय अत्यंत आवश्यक है ।लेकिन इसलिए गाय और संस्कृत का संरक्षण तभी हो सकता है ।जब गाय और संस्कृत की जरूरत हो ।आजकल की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में गाय और संस्कृत की कोई जरूरत नहीं है। गाय और संस्कृत की जरूरत केवल सनातन अर्थव्यवस्था में पढ़ती है ।उदाहरण के लिए हम पूंजीवादी एलोपैथिक सिस्टम और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को देख लेते हैं। एलोपैथी का चिकित्सा प्रणाली में एलोपैथी की सारी पुस्तकें इंग्लिश भाषा में लिखी हुई है , और एलोपैथिक का जन्म भी भारत से बाहर हुआ है ।अगर हम एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली को आगे बढ़ाते हैं तो इसके लिए संस्कृत की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। भारत की सरकार अपने हेल्थ बजट का लगभग 98 प्रतिशत पूंजीवादी एलोपैथिक अवस्था पर खर्च करती है दूसरी तरफ आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में