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मई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धर्मस्य मूलः अर्थ

चाणक्य ने कहा है कि धर्म का मूल अर्थ और अर्थ का मूल राज्य है I सोचने वाली बात क्या है कि यहां पर अर्थ का मतलब क्या है । इस सूत्र में अर्थ से अभिप्राय है अर्थ तंत्र I किसी भी धर्म को बचाने के लिए उस देश का अर्थतंत्र उस धर्म को शूट  करना चाहिए । जैसे कि सनातन वैदिक धर्म की पालना के लिए संस्कृत और गाय अत्यंत आवश्यक है ।लेकिन इसलिए गाय और संस्कृत का संरक्षण तभी हो सकता है ।जब गाय और संस्कृत की जरूरत हो ।आजकल की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में गाय और संस्कृत की कोई जरूरत नहीं है। गाय और संस्कृत की जरूरत केवल सनातन अर्थव्यवस्था में पढ़ती है ।उदाहरण के लिए हम पूंजीवादी एलोपैथिक सिस्टम और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को देख लेते हैं। एलोपैथी का चिकित्सा प्रणाली में एलोपैथी की सारी पुस्तकें इंग्लिश भाषा में लिखी हुई है , और एलोपैथिक का जन्म भी भारत से बाहर हुआ है ।अगर हम एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली को आगे बढ़ाते हैं तो इसके लिए संस्कृत की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। भारत की सरकार अपने हेल्थ बजट का लगभग 98   प्रतिशत पूंजीवादी एलोपैथिक अवस्था पर खर्च करती है   दूसरी तरफ आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में

क्यों सूख गया अराल सागर

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क्यों सूख गया अराल सागर  ----------------------- उज्बेकिस्तान में एक सागर था और अराल  ।1950 के दशक में एक कृषि विज्ञानिक ने सोचा कि अराल सागर के आसपास विकास किया जाए। तो उसकी सलाह पर अराल सागर को जो नदियां पानी देती थी , उनके बहाव को मोड़कर वहां पर कपास और धान की फसल को उगाए जाने लगीं। धीरे धीरे अराल सागर में पानी की कमी होने लगी और आज की तरीख में अराल सागर बिल्कुल सूख गया है अराल अब पानी के स्थान पर सिर्फ नमक और रेत बची है। जो वहां पर लगातार उड़ती रहती है। इस विनाश को विकास का नाम देकर आपके आगे परोसा जा रहा है ।क्या आप भी अपने क्षेत्र में ऐसा ही विकास चाहते हैं,  इस तरह देखा आपने कि कैसे  आजकल की पूंजीवादी खेती के कारण एक पूरे का पूरा सागर  सूख सकता है । भारत में भी यही  तरीके की पूंजीवादी खेती होती है जिसमें एक स्थान पर केवल एक ही फसल को लगातार किसान को भी बीजने पर मजबूर किया जाता ।

पूंजीपति बैंकिंग सिस्टम से होता विकास

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नमस्कार मित्रों आज हम चर्चा करेंगे कि  पूंजीवादी बैंकिंग  सिस्टम से कैसे विकास हो रहा है। बैंकिंग असल में करती क्या है ?इसके लिए मैं आपको एक उदाहरण देकर समझाना चाहूंगा । मान लो एक देश में 10000  चावल निकालने की  सनातन चक्कियां  है। मान लो इन चक्कियों  के मालिकों ने वर्ष भर में मेहनत करके 250000 रुपया कमाया । और यह कुल 10000X250000= 250 करोड़ बैंकों में जमा करवा दिया । अब यह बैंकिंग सिस्टम करता क्या है कि यह ढाई सौ करोड़ किसी बड़ी पूंजीपति चावल निकालने वाली कंपनी XYZ LTD को उधार दे देता है ।जिससे  चावल निकालने का बहुत बड़ा प्लांट लगा सके ।अब यह XYZ लिमिटेड इन 250 करोड़  रूपए से इन 10000 चक्की वालों को खत्म कर देगी । अब सोचने वाली बात यह है कि यह ढाई सौ करोड़ रूपया किनका है उन  चक्की वालों का जिन्होंने इस पैसे को  बैंको में जमा करवाया और बेरोजगार कौन हुए वहीं चक्की वाले जिन्होंने यह रुपया बैंकों में जमा करवाया। पहले जो ढाई सौ करोड रुपए का मुनाफा 10000 लोगों को होता था वह अब एक पूंजीवादी कंपनी को होगा । खाने के लिए पहले हम को क्या मिलता था ? चावल | बड़ी कंपनी लगने के बा

हिन्दू कौन है | who is hindu ?

मित्रो धर्म को जानने के लिए हम धर्मों को दो भागों में बाँट सकते हैं  अब्रहमिक धर्म ========== १. यहूदी  २.इसाई  ३. इस्लाम  भारतीय (हिन्दू )धर्म ==================== १. सनातन धरम २. जैन  ३. बोद्ध ५. सिख  ५. और अन्य भारतीय धर्म मित्रो धर्मों का ये बिभाजन पुर्नजनम में आस्था , और आत्मा की श्रेष्ठता के आधार पर किया गया है  ‪#‎अब्रहमिक_धर्म‬ जेसे यहूदी ,इसाई और इस्लाम धर्म पुर्नजनम को नहीं मानते और ये मानते हैं की शरीर पवित्र है और आत्मा से श्रेष्ठ है इसलिए ये शरीर को सम्भाल कर रखते हैं अर्थात शारीर को दफनाया जाता है .दूसरा ये मानते हैं के जानवरों में कोई आत्मा नहीं होती इसलिए जानवरों को मारने से कोई पाप नहीं लगेगा . ये धर्म बाले लोगो शारीरक सुख अधिक से अधिक चाहते हैं क्योकि इनके लिए शारीर सर्वश्रेष्ठ है इनकी संस्कृति भी भोग की संस्कृति है ये लोग अधिक से अधिक शारीरक सुख चाहतें जेसे अधिक से अधिक व्यक्तिओं / औरतों के साथ सेक्स , शराब , और भोतिक सुख आदि  ‪#‎भारतीय_धर्म‬_(हिन्दू_धर्म)जेसे सनातन ,जैन ,बोद्ध आर्य समाज आदि ये मानते है व्यक्ति का बार बार तब तक पुर्नजनम होता है जब

पूंजीवादी लैंड मैनेजमेंट vs सनातन लैंड मैनेजमेंट

सनातन भारत में चार   चीजें बिल्कुल ही मुफ्त थी एक   शिक्षा , दूसरी थी चिकित्सा , तीसरा था न्याय और चोथा था   काम करने के लिए जमीन। सनातन भारत में जमीन के लिए सनातन व्यवस्था प्रचलित थी | अगर आप भी अगर आज भी आप किसी जमीन की REGISTRY   को देखो तो आप देखोगे   की जमीन की रजिस्ट्री की भाषा अरबी है | इससे पता लगता है कि मुसलमानों के आने के बाद ही भूमि की खरीद बेच   शुरू हुई | उससे पहले सनातन भारत में भूमि की खरीद बेच नहीं होती थी | इसका एक और प्रमाण यह है कि आज भी लाल डोरा और   लाल लकीर के अंदर बड़ी जमीन की रजिस्ट्री होती | अगर आप पूछेंगे कि इस जमीन की रजिस्ट्री क्यों नहीं होती तो इसका उत्तर है कि यह गांव मुसलमानों के आने से पहले ही बसे हुए थे | इस कारण मुसलमानों ने इस जमीन को छोड़ दिया , इसको और नक्शे पर एक लाल लकीर खीच दी | इसलिए   लाल लकीर   अंदर अंदर वाली जमीन की रजिस्ट्री नहीं होती | सनातन भारत में जमीन की सारी OWNERSHIP भगवान के पास होती थी | तभी हमारे यहां एक कहावत प्रचलित है सब भूमि गोपाल की | सनातन भारत में एक न्यूनतम जमीन रहने और काम धंदे आदि के लिए सब को मुफ्त मिलती थी | इसस

क्या यह विकास है या विनाश

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तरक्की  आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि तरक्की आखिर है किस बला का नाम ? तरक्की कहते किसे हैं ?क्या सड़क बनने को तरक्की कहते हैं ?क्या आप फ्लाईओवर ,पुल बनने को तरक्की कहते हैं ?क्या बड़ी बड़ी गाड़ियों को तरक्की कहते हैं?क्या बड़ी-बड़ी इमारतों और बड़े बड़े शहरों पर बनने को विकास कहा जाएगा ?अगर यह सब तरक्की है तो आम आदमी पहले से दुखी क्यों है? पहले तो यह सब नहीं था परंतु लोग इतने सुखी और खुश क्यों थे ?क्या यह तो नहीं की तरक्की की आड़ में कुछ और गोरख धंधा चल रहा है ?आइए सबसे पहले हम जान लेते हैं कि असल में तरक्की  क्या होती है ।तरक्की को हम विभिन्न पैमानों पर नाप सकते हैं। स्वास्थ्य --------- सबसे पहले हम देखेंगे कि स्वास्थ्य के मामले में क्या हम तरक्की में हैं या गिरावट में? क्या आज के लोगों की सेहत आज से 50 वर्ष पहले के लोगों से अच्छी है?  क्या आज कल के लोग अपने से 50 पहले वर्ष पहले के लोगों की तुलना में कम बीमार है ?अगर हम इस पैमाने पर देखेंगे तो पाएंगे कि आज लोग अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक बीमार है ।उनकी सेहत दिन-प्रतिदिन गिर रही है ।आजकल के नौजवान को 30 वर्ष की आयु में ही  ब्ल

पूंजीवाद और कम्युनिज्म एक सिक्के के दो पहलू हैं

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पूंजीवाद और कम्युनिज्म का मूल मन्त्र है MASS PRODUCTION BY LIMITED NO OF UNITS . दूसरी और सनातन माडल का मूल मन्त्र है SMALL PRODUCTION BY UNLIMTED NO OF UNITS . पूंजीवाद और communism की मूल अवधारणा एक है परन्तु सिर्फ ownership में अंतर है | पूंजीवाद में देश के संसाधनों पर कुछ व्यक्तियों का नियंत्रण होता है अपरोक्ष रूप से लोकतंत्र के नाम पर देश यही चंद पूंजीपति चलाते हैं । लोकतंत्र तो समाज को बांटने का षड्यंत्र है । सारी नीतियां इन्हीं चंद पूंजीपतियों के लिए बनाई जाती हैं । कम्युनिज्म में भी देश के सारे संसाधनों पर कुछ चंद लोगों का अधिकार होता है । यहां पर यह चंद लोग सरकार चला रहे होते हैं । पूंजी वाद में पूंजीपति सरकार के बाहर होते हैं लेकिन कम्युनिज्म यही पूंजीपति सरकार के अंदर होते हैं और खास बात यह है कि कम्युनिज्म में इन चंद लोगों को कोई पैसा भी नहीं लगाना पड़ता । कुल मिलाकर अगर पूंजीवाद नागनाथ है तो कम्युनिज्म सांप नाथ है । दोनों का प्रमुख उदेश्य देश के सारे संसाधनों पर कुछ व्यक्तियों पर नियंत्रण करना है । पूंजीवाद और कम्युनिज्म पेप्सी और कोका कोला की तरह है दोनों में कोई अंतर न